वरिष्ठ लेखक डॉ. प्रेम शंकर त्रिपाठी, प्रो कुमुद रंजन, डॉ लक्ष्मी शंकर त्रिपाठी, रजनी द्विवेदी, रोली सिंह
काशी । 5अक्टूबर को माधव फाउंडेशन सारनाथ एवं भारतीय जन जागरण समिति उत्तर प्रदेश के तत्वावधान में सिगरा स्थित एक सभागार में “हर घर पुस्तकालय: आज की आवश्यकता”, विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हुआ जिसमें काशी के साहित्यकार, प्रबुद्ध जन, कवियों और कलाकारों ने भाग लिया। “कुमार सभा पुस्तकालय”, कोलकाता के पूर्व अध्यक्ष एवं वरिष्ठ लेखक डॉ. प्रेम शंकर त्रिपाठी ने मुख्य अतिथि पद से बोलते हुए कहा कि हम तकनीक के साथ अवश्य कदमताल मिलाकर चल रहे हैं लेकिन पुस्तक संस्कृत कभी समाप्त नहीं होगी और यदि पुस्तके हैं तो पुस्तकालयों की अस्मिता भी बनी रहेगी। अतीत से वर्तमान और भविष्य तक को एक सूत्र में जोड़ने का काम करती हैं पुस्तकें ।समाज को संस्कारित भी करती हैं यही पुस्तकें । अध्यक्षता करते हुए पूर्व न्यायाधीश डी.एल. श्रीवास्तव ने कहा कि हमारे संस्कारों का निर्माण हमारे शास्त्रों और अच्छे साहित्य में छिपे मानवीय मूल्य करते हैं इसलिए छोटा ही सही हर घर में एक पुस्तकालय होना आवश्यक है । विशिष्ट अतिथि पद से बोलते हुए पूर्व संयुक्त शिक्षा निदेशक ओ .पी. द्विवेदी ने कहा कि तकनीक की दुनिया में रोज परिवर्तन हो रहे हैं परंतु पुस्तक की संस्कृति कभी न समाप्त होने वाली संस्कृति है । विषय की स्थापना करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार नीरजा माधव ने कहा कि पुस्तकें सदाजीवा पौधे की तरह से हैं, जो धूप में सूख भले जाता है परंतु उसका अस्तित्व समाप्त नहीं होता है और थोड़ा सा जल पाते ही वह फिर हरा भरा हो जाता है। तकनीक के कारण आज नई पीढ़ी में पुस्तकों के प्रति रुझान भले कम हुआ हो लेकिन पुस्तकों की महत्ता ग्लोबल है प्राचीन काल से है और आगे भी रहेगी। काशी पुरातन ग्लोबल शहर है। यहां की पुस्तक संस्कृति और पुस्तकालयों की प्राचीनता सर्वविदित है। हर घर में भी छोटा ही सही पुस्तकालय होना ही चाहिए। परंतु यह जरूरी नहीं है की सभी के घरों में सभी पुस्तकें उपलब्ध ही हों। इसके लिए उस शहर के जो प्राचीनतम पुस्तकालय हैं, उनकी शरण में लोगों को जाना ही पड़ता है क्योंकि अक्षय ज्ञान समेटे हैं पुस्तकालय। स्वागत करते हुए राष्ट्रपति सम्मान से सम्मानित डॉक्टर बेनी माधव ने कहा कि काशी की परंपरा संवाद और शास्त्रार्थ की परंपरा रही है। यह क्षमता मनुष्य में पुस्तकों के बिना संभव नहीं। चर्चित नवगीतकार डॉ अशोक सिंह , हिमांशु उपाध्याय, सुरेंद्र बाजपेयी, देवेश द्विवेदी, राजीव सिंह, कवीन्द्र नारायण आदि ने अपनी रचनाओं के माध्यम से काशी के साहित्यिक परिवेश को जीवंत कर दिया। संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन मनोज श्रीवास्तव ने किया। कार्यक्रम में प्रो कुमुद रंजन, डॉ लक्ष्मी शंकर त्रिपाठी, रजनी द्विवेदी, रोली सिंह, नीलम सिंह, कृष्ण कुमार , आनंद चौबे,राहुल सिनहा आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किये।