प्रसिद्द कवि एवं मंच संचालक डॉ शिव ॐ अम्बर की कुछ लोकप्रिय गजल
1.
चन्द शातिर मुट्ठियों में कैद भिनसारे रहे,
मुक्तिबोधों के यहाँ ताउम्र अँधियारे रहे।
रेशमी पल्लू रवायत का उन्हें क्या बाँधता,
जो सदा से ही दहकते सुर्ख अंगारे रहे।
राजभवनों को नहीं भाया हमारा स्वर कभी,
हम किसी उन्मादिनी मीरा के इकतारे रहे।
घर जला अपना चले लेकर लुकाटी हाथ में,
शब्द के अक्खड़ जुलाहे सृष्टि से न्यारे रहे।
2.
बड़ी मुश्किल से बालों पे सफेदी हमने पाई है,
इसे पाने को आधी उम्र की क़ीमत चुकाई है।
बिवाई पाँव की हाथों के ये छाले बतायेंगे,
हमारी जेब में गाढ़े पसीने की कमाई है।
मोहब्बत दोस्तों से की मोहब्बत दुश्मनों से की,
ये दौलत हमने अपने दोनों हाथों से लुटाई है।
अदब से बाँचना उसको कि हर कवि की हथेली पे,
विधाता ने बहुत गहरी हृदय-रेखा बनाई है।
3.
दीमकों के नाम हैं बंसीवटों की डालियाँ,
नागफनियों की कनीज़ें हैं यहाँ शेफालियाँ।
छोड़कर सर के दुपट्टे को किसी दरगाह में,
आ गई हैं बदचलन बाज़ार में कव्वालियाँ।
गाँठ की पूँजी निछावर विश्व पे कर गीत ने,
भाल अपने हाथ से अपने लिखीं कंगालियाँ
पूज्य हैं पठनीय हैं पर आज प्रासंगिक नहीं,
सोरठे सिद्धान्त के आदर्श की अर्धालियाँ।
इस मुहल्ले में महीनों से रही फ़ाक़ाकशी,
इस मुहल्ले को मल्हारें लग रही हैं गालियाँ।
4.
कि अगले ही क़दम पे खाइयाँ हैं,
बहुत अभिशप्त ये ऊँचाइयाँ हैं।
यहाँ से है शुरू सीमा नगर की,
यहाँ से हमसफ़र तनहाइयाँ हैं।
हुई किलकारियाँ जब से सयानी,
बहुत सहमी हुई अँगनाइयाँ हैं।
हमारी हर बिवाई एक साखी,
बदन की झुर्रियाँ चैपाइयाँ हैं।
नियति में आप की विषपान होगा,
जुबां पे आप की सच्चाइयाँ हैं।
– डाॅ॰ शिव ओम अम्बर