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पूर्णागिरी मंदिर के दर्शन के लिए जा रहे है  

अगर आप  पूर्णागिरि मंदिर (उत्तराखंड ) टनकपुर की यात्रा पर जा रहे है तो कृप्या होमवर्क कर लीजिए…

माँ पूर्णागिरि
 
अधिकतर भक्त या पर्यटक जब उत्तराखंड की यात्रा पर निकलते है  और उन्हें अपने गंतव्य से कुछ सौ किलोमीटर की दूरी पर पूर्णागिरी शक्तिपीठ के बारे में पता चलता है और यात्रा के दौरान ये भी ज्ञात होता है कि उनके पास अतिरिक्त समय है  तो खुशी और उत्साह के चलते आनन -फानन में पूर्णागिरी देवी जो 51 शक्तिपीठ में से एक है, उनके दर्शन के लिए निकल पड़ते है।  इस प्रकार की यात्राएं
हमेशा ही आनंददायक और रोमांचकारी होती है। किन्तु  बहुत बार परेशानी और चिंता का कारण भी बनती है. 
  जाने के पहले होमवर्क करना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि पूर्णागिरी मंदिर पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। 

जंगलों से घिरे इस मंदिर तक पहुंचना इतना आसान नहीं है जितना की लोगो की बातो से समझा जाता है। जंगल और जंगली जानवरों की भयावता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है पूर्णागिरी के मुख्य मार्ग के पहले ही वन विभाग की तरफ से चेतावनी वाले पोस्टर लगे दिखेंगे। 

आजकल अधिकतर तीर्थस्थल पर लोगों की सुविधा अनुसार व्यवस्था की जाती है, जैसे की  तीर्थयात्रियों को ले जाने के लिए घोड़े, पिट्ठू, पालकी , रोपवे, गाड़ी आदि।   किन्तु पूर्णागिरि में ऐसी कोई सुविधा नहीं है 
जो भी जायेगा उसे लगभग  3  किलोमीटर सीढ़ियों के मार्ग से  या फिर नए बने ढलान मार्ग से  जाना ही पड़ेगा। 
 यहाँ से ढ़लान मार्ग ख़त्म
तत्पश्चात लगभग तीन किलोमीटर जिसमे काली मंदिर से लेकर पूर्णागिरि मंदिर तक 
 खड़ी और ऊँची सीढ़िया है। इन सीढ़ियों के आलावा  यहाँ मंदिर जाने का कोई भी दूसरा विकल्प  नहीं है।  
मंदिर भी रात के 8 बजे तक बंद हो जाता है।
मुख्य गेट जहां से लोकल गाडियां तीर्थयात्रियों को मंदिर तक पहुंचाती है उन्हे भी 8 बजे के बाद गेट से बाहर जाने की अनुमति नहीं होती। अतः जो श्रद्धालु  देर कर देते है वे  मंदिर परिसर में ही सोते है। 
पूर्णागिरी मंदिर मार्ग में भक्तों के विश्राम और रात गुजारने के लिए अच्छी व्यवस्था है, छोटे – छोटे होटल खाने पीने की वस्तुओं के साथ  सेवा में तत्पर रहते है।

मंदिर मार्ग जंगल के बीच से गुजरता है किंतु सीढ़ी वाला रास्ता सुरक्षित है वहां  बिजली की सुविधा भी रहती है जबकि ढलान वाला रास्ता विद्युत प्रकाश के अभाव में सूर्यास्त होते ही  जोखिम भरा होता है। इसलिए जंगली जानवरों का खतरा रहता है।  इस रास्ते में कोई दुकान नही है।  खाने – पीने, शौच आदि की कोई सुविधा नहीं है। यही वजह है कि

यही वजह है कि मेले के समय भी ये जीव जंतु हमला कर देते है। स्थानीय लोगो ने इसकी बहुत  बार प्रशासन से शिकायत भी की है और  तीर्थयात्रियों एवं दुकानदारों की सुरक्षा की मांग भी की है. 
यूं पढ़ने -सुनने में पूर्णागिरी मंदिर यात्रा बड़ी ही दिलचस्प लगती है किंतु ये दिलचस्प 10 वर्ष से ऊपर वाले बच्चों और युवाओं के लिए है,
लेकिन जो बुजुर्ग प्रातः भ्रमण या शाम को  सैर के लिए नही   निकलते  या वे जो  वातानुकूलित ( एयर कंडीशन ) और अन्य और सुविधाओं के आदि है उनके लिए ये   यात्रा एक सजा है
 चारों तरफ हरियाली की चादर में लिपटी  शारदा नदी इस मंदिर के  नीचे बहती है, यहां की सुंदरता अद्वितीय है। 
मंदिर के नीचे बने अस्थाई आवास में एक दिन विश्राम अवश्य करना चाहिए ताकि चढ़ाई करते समय की थकान दूर हो जाए साथ ही वहां की दिव्यता को भी अनुभव किया जा सके है।

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