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शब्द भी कम है उकेरने को शख्सियत…

पूर्व राज्यपाल ( पश्चिम बंगाल) स्वर्गीय केशरीनाथ त्रिपाठी की प्रथम पुण्यतिथि पर विशेष…


२०१४ जुलाई की बात थी, बंगाल के राजयपाल के चयन की बात चल रही थी। नामों की सूची में आपका भी नाम था। उनका नाम देखकर हमें बहुत ख़ुशी हो रही थी और साथ ही अंतरमन से उनके नाम पर मुहर लगने की ईश्वर से प्रार्थना भी। बंगाल के राजयपाल के लिए जैसे ही त्रिपाठी जी के नाम की घोषणा हुई वैसे ही सर्वप्रथम फोन आया स्वर्गीय जुगल किशोर जेथलिया जी का – ” शकुन जी , आपके त्रिपाठी जी बंगाल के राजयपाल बन गए। ”

त्रिपाठी जी से मेरा परिचय २००८ में एक सज्जन के मार्फ़त हुआ था जो हमें एक प्रतिष्ठित व्यक्ति के घर ले कर गए जहाँ त्रिपाठी जी ठहरे हुए थे। मुझे अपनी पत्रिका ” द वेक” के लिए उनका साक्षात्कार लेना था। बमुश्किल हम उनसे एक या दो ही प्रश्न कर सके तभी उक्त सज्जन ने कहा -” शकुन जी, अब बस करिये। ” उनके अचानक दिए गए आदेश पर मै सकपका गयी। त्रिपाठी जी ने तुरंत हमें अपने पास बैठने के लिए कहा और मेरे पूछे गए प्रश्नों का इत्मीनान से जवाब दिया। उनके इस व्यवहार ने मेरे मन के अंदर एक विशेष जगह बना ली थी । प्रयागराज पहुंचकर उन्होंने अपने काव्य संग्रह हमे भिजवाए। उन संग्रहों से ली गयी कवितायें अक्सर ” द वेक” पत्रिका में छपने लगी, जिन्हे हिंदी साहित्य जगत के लोगों ने काफी सराहा।

२०१३ में, भारतीय बाल कल्याण संस्थान कानपुर द्वारा हमें व् मेरे पति मनोज त्रिवेदी जी को आमंत्रित किया गया. उक्त समारोह के मुख्य अतिथि त्रिपाठी जी थे। आयोजन समाप्त होने के उपरांत उन्होंने हमसे सवाल किया कि अब आपका क्या कार्यक्रम है. उस वर्ष प्रयागराज में कुम्भ का मेला चल रहा था। कोलकाता से मेरी सासु माँ कुम्भ नहाने के लिए आई थी। हमने उन्हें बताया की हम लोग थोड़ी देर में प्रयागराज के लिए निकलेंगे। उन्होंने पूछा – ‘रहने की व्यवस्था है?’ ‘ ‘नहीं ‘ हमने जवाब दिया। त्रिपाठी जी बोले – ‘लाखों लोगो की भीड़ में आपको रहने की जगह कहा मिलेगी?’ उनकी बात सुनकर हम चुप रह गए। उन्होंने कहा – ‘ ठीक है जब आप निकलियेगा तो हमें फोन करियेगा।’ जब हम रास्ते में थे तभी उनका फोन आ गया कि आपके रहने की व्यवस्था हो गयी है।

बंगाल के राज्यपाल बन जाने पर अब उनसे अक्सर मुलाकात और बातचीत भी होने लगी। उन्हें अपने कार्यक्रमों में भी आमंत्रित किया और आपने सहर्ष स्वीकृति भी दी। २०१६ में मैंने एक कार्यक्रम ( आपकी लिखी कविताओं पर स्कूली बच्चों द्वारा नृत्य) आपकी अनुमति से नवम्बर मास में रखा, कार्यक्रम के चार दिन पहले आपके ऑफिस से फोन आया कि- ‘त्रिपाठी जी बात करना चाहते है!’ बात करने पर आपने अपनी मजबूरी बताते हुए कहा कि मुझे अत्यंत आवश्यक कार्य से उसी तारीख़ को निकलना है जिस तारीख को मेरा कार्यक्रम था. अपनी विवशता जाहिर करते हुए आपने कहा कि ” अगर जिस दिन मुझे जाना है उसी दिन कार्यक्रम रहेगा तो मैं मुश्किल से आधा घंटे का समय दे पाऊँगा यदि आप इसे दिसंबर में करेगी तो मैं आपको पूरा समय दूंगा साथ ही आपने तीन -चार तारीख भी बताई। आपकी सज्जनता और मेरी दुविधा,, कुछ पल के लिए ऐसा लगा कि मेरे पैरो के नीचे से जमीन खिसक गई. क्योंकि उस कार्यक्रम में ठुमरी की मल्लिका स्वर्गीय गिरिजा देवी जी आ रही थी और कानपूर से उनकी शिष्या शालिनी वेद, त्रिपाठी जी की कविताओं को स्वर देने के लिए उपस्थित होने वाली थी। मैंने उक्त कार्यक्रम को त्रिपाठी जी द्वारा सुझाई एक तिथि को तय किया और वो कार्यक्रम अत्यंत सफल कार्यक्रम हुआ इस कार्यक्रम की विशेषता ये थी कि त्रिपाठी जी कार्यक्रम की समाप्ति तक उपस्थित रहे।

२०१९ में सहसा ही त्रिपाठी जी के ऊपर एक वृत्तचित्र बनाने का विचार आया और बस उनकी अनुमति से उसके ऊपर कार्य आरंभ कर दिया। उसकी शूटिंग कोलकाता में तीन दिन और प्रयागराज में दो दिन की थी। कोलकाता में शूटिंग सकुशल हो गई अब चिंता थी तो प्रयागराज में शूट करने की। हम चार लोगो की टीम ८ जुलाई २०१९ को प्रयागराज में सवेरे ही पहुँच गई। दिन में हम लोगो ने प्रयागराज घूमा। शाम को प्रयागराज में प्रशासन ने गंगा आरती की व्यवस्था करवाई थी। गंगा आरती का कार्यक्रम अद्भुत था। इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि त्रिपाठी जी थे। दूसरे दिन हमें त्रिवेणी पुष्प पर शूटिंग करनी थी लेकिन रात से ही काले बादल अपनी मौजूदगी दर्ज करा बैठे थे। शेड्यूल के अनुसार हमे सूर्योदय से पहले ही त्रिवेणी पुष्प पहुंचना था ताकि सूर्योदय के साथ ही हम लोग त्रिपाठी जी को नदी के किनारे विचरण करते हुए शूट कर सके. जब त्रिपाठी जी को हमने दूसरे दिन के कार्यक्रम के बारे में बताया तो उन्होंने हँसते हुए कहा कि – ” बादलों की जो स्थिति है , उसमें क्या सूर्योदय और क्या सूर्यास्त। हम आराम से ८ ( आठ ) बजे तक निकलेंगे। चूँकि रात से ही बारिश आरम्भ हो गयी थी इसलिए मौसम बहुत ख़राब हो गया था। हम लोग अपनी टीम के साथ उनके घर पहुंचे तो आप तैयार बैठे थे। कुछ लोग उन्हें शूटिंग स्थगित करने की सलाह दे रहे थे. लेकिन त्रिपाठी जी ने सबकी बातों को अनसुना कर हमसे सिर्फ इतना कहा कि – ‘ शकुन जी , कुछ समय हाथ में लेकर आना चाहिए था.’

इसके बाद ख़राब मौसम की परवाह किये बगैर ही हम लोगो के साथ त्रिवेणी पुष्प पहुंच गए। त्रिवेणी पुष्प, पानी से नहाया हुआ बहुत सुन्दर लग रहा था। हवा में पेड़ झूम रहे थे। चारों ओर हरियाली और सुन्दर सी त्रिवेणी पुष्प की इमारत देख कर मन अभिभूत हो गया। त्रिपाठी जी ने वर्षा को नजर अंदाज कर ( भीगते हुए ) हमारे निर्देशानुसार सीन शूट करवाए। ये शूटिंग लगभग तीन से चार घंटे चली। इस दौरान एक बार भी उन्होंने थकान या तबियत ख़राब हो जाने की बात नहीं कही।

दूसरों के लिए सोचना और भरसक मदद करना ये उनका स्वभाव था इसी के चलते ही त्रिपाठी जी  सफलता के शिखर पर पहुंचे थे। उनके विचार उनका संघर्ष युवाओं के लिए प्रेणादायक है।

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2 comments

  1. Vasundhara Mishra

    शकुन जी को बहुत बहुत धन्यवाद जिन्होंने आदरणीय केशरी नाथ जी त्रिपाठी जी को अपनी लेखनी और डाक्यूमेंट्री फिल्म द्वारा संजोकर रखा है। आदरणीय केसरी नाथ त्रिपाठी जी का व्यक्तित्व बहुआयामी था। उनमें राजनीति और समाज दोनों में संतुलन बनाए रखने की कला थी। उनके समय राजभवन साहित्यिक और सांस्कृतिक रुचि वाले लोगों के लिए खुल गया था जो बंगाल के हिंदी भाषियों के लिए सोने में सुहागा था। भवानीपुर एजुकेशन सोसायटी कॉलेज के दीक्षांत समारोह में उनका आना मेरे लिए आशीर्वाद ही था। मेरे अनुरोध से उन्होंने अपने काव्य संग्रह संचयिता से दो कविताएं भी सुनाई। प्रोटोकॉल से हटकर उन्होंने अपनी कविता सुनाई। मैं बनारस की हूं यह सुनकर वे मुझसे विशेष स्नेह रखते थे। उन्होंने कहा कि बनारस उनका ससुराल है और बहुत सी बातें साझा की।खान पान और सांस्कृतिक विषयों के साथ साथ बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की बातें बताईं।सच में वे एक अभिभावक और सच्चे इंसान थे।अपनी भाषा हिंदी के प्रेमी थे। सच्चे राष्ट्रभक्त थे। उनके निधन का सुनकर बहुत दुख हुआ था।उनकी पुण्यतिथि पर शत् शत् नमन -प्रो वसुंधरा मिश्र, भवानीपुर एजुकेशन सोसायटी कॉलेज, कोलकाता

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