Monday , May 5 2025

400 पार

               400 पार का नारा

कुछ महीनो से 400 पार का नारा सुन रहे है, नारा भी अच्छा ही है किंतु चुनाव के समय वोटिंग करने वालों की घटती हुई संख्या  को देखते हुए मुझे एक छोटी सी कहानी याद आ गई :

एक बार एक महाप्रतापी  राजा, जिसका राज्य धन -धान्य से संपन्न था,  उस ने बहुत बड़ा तालाब बनवाया ताकि प्रजा को गर्मी के मौसम में पानी की कमी न झेलनी पड़े। जब तालाब बन कर तैयार हो गया तो राजा ने सोचा कि इस तालाब की पूजा इसको  दूध से भरकर करेगे बाद में ये दूध पूरे राज्य में प्रसाद स्वरूप वितरित कर दिया जाएगा। ये सोचकर राजा ने पूरे राज्य में घोषणा करवा दी कि प्रत्येक घर से एक -एक घड़ा दूध  शाम के समय इस तालाब में डाला जाए।   ताकि  इस दूध को हम पूजा के लिए उपयोग में लें सके।   राजा बहुत खुश था ये सोचकर की उसका सुन्दर सा तालाब कल दूध से लबालब भरा मिलेगा। उसका मन -मयूर अत्यंत प्रफुल्लित  होकर उसे आराम नहीं करने दे रहा था , नींद उसकी आँखों से कोसो दूर थी। 
 
ललिया ने अपने पति कन्हैया को मटकी पानी से भरते देख टोका  ” राजन ने तो मटकी भर दूध  तालाब में डालने को कहा था और तुम पानी भर रहे हो, अपने घर में दूध की कमी नहीं है फिर ऐसा क्यों ?”   
कन्हैया हँसते हुए बोला ” अरे बावरी, सबई तो दूध डारयै  हमाई एक मटकी  पानी से का फरक  पर जाइए। ” 
 
सूरज की पहली किरण पड़ते ही राजा तालाब की ओर   भागा। किन्तु तालाब के दृश्य ने राजा को  अचंभित कर दिया।  पूरा तालाब पानी से भरा हुआ था और इसका कारण ‘एक मटकी पानी की सोच’  जिसने राजा की इच्छा और पूजा दोनों को विफल कर दिया था।
 
इंडिया शाइनिंग 
 
२००४ में भाजपा ने पूरी दमखम के साथ इंडिया शाइनिंग का नारा दिया था इस नारे से जिस जीत की उम्मीद की  गई थी वो जीत तो हासिल हुई नहीं अपितु हार का आलिंगन अवश्य करना पड़ा।  आजकल भी जिसको देखो वही ४०० पार की माला जप रहा है लेकिन क्या सिर्फ ४०० पार के शोर से जीत हासिल की जा सकती है, ये प्रश्न विचारणीय ही नहीं अपितु इस पर ध्यान केंद्रित भी करना चाहिये क्योंकि कुछ बिंदु ऐसे है जिन पर बिना गौर किये भाजपा अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकती।  विज्ञापन, सोशल मिडिया की पोस्ट और  चापलूसी के स्वर जीत दिलाने में अपना रोल नहीं निभा सकते वरन जीत के लिए  सभी उम्मीदवारों को अपने आसपास सूक्ष्म दृष्टि से देखने की आवश्यकता है , स्वयं का आकलन करने की आवश्यकता है, जनता के सम्मुख उत्पन्न समस्याओं का समाधान भी करना आवश्यक है।  सिर्फ और सिर्फ अपने बड़े -बड़े कामों का बखान ही काफी नहीं है जीत का जश्न मानाने के लिए  अन्यथा ” सपना मेरा टूट गया ”  या मुझे तो लूट लिया मेरे …!  
 
और तो और पैसे वालों को या किसी नामचीन हस्ती को टिकट देना भी  जीत सुनिश्चित नहीं  करा सकता। क्योंकि आपके आसपास का माहौल और जनता की सोच भी बहुत मायने रखती है। 
 
जैसे की –
*कुछ क्षेत्रों में थोपे हुए उम्मीदवार के साथ स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं को काम करना पड़ रहा है वो भी उन भावी नेताओं को जिन्होंने उम्मदीवारी के लिए जमीं तैयार की थी और उन्हें  टिकिट नहीं मिला 
क्या उन असफल उम्मीदवारों के मन में कुंठा नहीं होगी , क्या उनके मन में थोपे हुए उम्मीदवार को  जिताने में दिलचस्पी होगी, क्या वो थोपा हुआ उम्मीदवार भी उनके साथ सहानुभूति या उनके किये हुए कार्य 
के प्रति  प्रशंसात्मक रवैया रखेगा ? 
 
*बहुत से समर्थक तेज गर्मी और लू से भयभीत होकर घरों में बंद बैठे है और मतदान केंद्र तक जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे है। 
 
*कुछ उम्मीदवारों को लग रहा है की पार्टी ने उन्हें टिकट दे दिया है तो अब  वे सांसद बन ही गए। 
 
*कुछ क्षेत्रों में जहाँ भाजपा उम्मीदवार अपने मतदाताओं  के  साथ मुलाकात नहीं कर रहे है या चुनाव प्रचार न  करके उन्हें निराश किये बैठे है।  वहां का मतदाता भाजपा समर्थक होते हुए भी दुविधा में पड़ा है।.
 
*बहुत सी क्षेत्रीय पार्टियां  जो अपने अध्यक्षों के तटस्थ मानसिकता से मृतप्राय पड़ी थी वे अपने प्रिय अध्यक्ष के सक्रीय होते ही पुनः जोश में आ गयी। 
 
* जनता वोट देने से पहले अपने उम्मीदवार को ऐसे ही देखती है जैसे की किसी लड़की का बाप अपनी बेटी के लिए उपयुक्त वर ढूंढने के समय प्रत्येक लड़के को देखता है। 
 
*अगर भाजपा का उम्मीदवार जनता के खांचे में फिट नहीं बैठ रहा है,  इस नाते नहीं की वो ‘मोदी का प्रतिनिधि ‘ है बल्कि सांसद बनने के बाद वो उनका कार्य करेगा कि नहीं , वो उन्हें पहचानेगा की नहीं , वो उनके सुख -दुःख में शामिल होगा की नहीं ? ऐसे अनेकों सवाल होते है जो मतदाताओं के मस्तिष्क में अपना मत, मत पेटी में पहुंचाने तक चलते ही रहते है। 
 
 
चुनाव का मौसम और कम  वोटिंग प्रतिशत,  कहीं   400  पार नारा,  भी कल को इंडिया शाइनिंग वाले इतिहास को न दोहरा दे।  क्योंकि जिस तरह से कुछ उम्मीदवार अहंकार में धुत्त अपने कार्यकर्ताओं और मतदाताओं की अनदेखी कर रहे है , उद्दंडता से जवाब दे रहे ये अशोभनीय तो है ही किन्तु इस तरह से वे अपने विरोधी उम्मीदवार के जीतने के लिए जमीन भी तैयार कर रहे है। 
 
 
-शकुन त्रिवेदी 

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3 comments

  1. Bahut sarahneey vichar hai

  2. Francis S Rosario

    Aapne bahot accha likha apne sampadakiya column pe. Aapne jin muddo ko apne is editorial mein likha wo bahot prasangik hai. 400 paar jaise elan hamare prajatantra mahol
    Mein sho nita nahi . Apne sahi kaha ye nara 2004 India shining wala 100% confidence phir se na doharayi jaay. Kisi bhi democracy mein logon ke man ki jeet awshayak hai. Jo ummidwar anya party ke hain unpe Injam lagana, doshi thahrana shovniya nahin. Sabki apni maan maryada hai isliye kuch naitik adhyatmik mulyon ko lekar hamen Aga badna hai. Abhi ka jo mahol hai wo hamare liye yuddh khara kar diya. Yahan lok kalyan aur sabka sath sabka vikas kaise ho sakta. Jis tarah se hamare neta apne naitik mulyon ke bahar apna prachar chala rahen wo desh ke liye bahot khatarnak hai. Agar hum seva bhaw ko lekar age bade to sabka Bikas sambhav ho sakta hai. Niswartht seva!

  3. राजीव कुमार श्रीवास्तव

    बहुत ही सुंदर लेख। प्रेरणादायक और गहरी सोच का प्रतीक। जय हो।

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