मताधिकार या मतदान में अंतर समझने की आवश्यकता : प्रहलाद राय गोयनका

चुनाव अपने आखिरी चरण में पहुंच चुका है किन्तु अभी भी अनेक मतदाताओं की अपने मताधिकार के प्रति उदासीनता है उन्हें जागरूक करने के लिए, उनके भविष्य को बेहतर बनाने के लिए राजस्थान पत्रिका अग्र बंधू ,राजस्थान सूचना केंद्र के द्वारा एक मुहिम चलाई जा रही है ” मताधिकार या मतदान ” . इस विषय पर अनेक विचार गोष्ठियों का आयोजन किया जाता रहा है ऐसी ही एक संगोष्ठी का आयोजन राजस्थान सूचना केंद्र में किया गया जिसमें समाज के विभिन्न क्षेत्रों से प्रबुद्ध जन उपस्थित थे।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि सदीनामा के सम्पादक जितेंद्र जितांशु ने अपने वक्तव्य में आजादी के तुरंत बाद हुए चुनाव से लेकर 2024 के चुनाव तक की घटनाओं का लेखा जोखा प्रस्तुत करते हुए अनेक पहलुओं पर श्रोताओं का ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने ये भी बताया कि संसदीय इतिहास और घटनाओं से लोग पहले कितना प्रभावित होते थे क्योंकि तब वे वोट अंतरात्मा से करते थे. फिर बन्दूक पर वोट पड़ने लग गए। वोटिंग के समय कितनी धांधली होती है इसका जिक्र करते हुए उन्होंने ओम प्रकाश शर्मा की पुस्तक ” सिस्टमेटिक रिगिंग किसे कहते है का उल्लेख किया। लोकतंत्र की कमियां बताने के साथ ही एक मजबूत लोकतंत्र को देश की आवश्यकता बताया।
अग्र बंधू संस्था के अध्यक्ष प्रह्लाद राय गोयनका ने मताधिकार और मतदान का अंतर बताते हुए कहा कि जहाँ अधिकार होता है वहां कुछ भी गलत होने पर पूछा जा सकता है किन्तु मतदान करने का मतलब बिना सही -गलत जाने मतदान कर देना जिस प्रकार किसी व्यक्ति को पैसे दान में दे दो, फिर वो उस पैसे से दारू पिए, जुआ खेले आप उसे रोक नही सकते। बंगाल में रहने वाले अधिकतर हिंदी भाषाई लोगों में मताधिकार के प्रति उदासीनता का उल्लेख करते हुए कहा कि इनमें मतदान करने की प्रवृति ख़त्म हो चुकी है ये अपने कर्तव्य के प्रति जागरूक नहीं है। जबकि इन्हे संगठित होकर अपने मताधिकार का प्रयोग करना चाहिए.. उन्होंने नितिन गडकरी के एक कथन का जिक्र करते हुए कहा कि – चुनाव प्रबुद्ध वर्ग नहीं जिताते अपितु रिक्शे वाले , खोमचे वाले जिताते है। चुनाव में भय और लालच भी एक बड़ी भूमिका निभाता है. कोई भी सत्ता पार्टी का सदस्य बिल्डिंग के नीचे आकर खड़ा हो कर धमका सकता है कि अगर तुमने उनकी पार्टी को वोट नहीं दिया तो आगे क्या होगा समझ लेना। नोटा में वोट देना लज्जा की बात बताई क्योंकि ये समस्या का समाधान नहीं है।
वरिष्ठ पत्रकार सीताराम अग्रवाल ने अपने वक्तव्य में कहा कि लोग अन्याय का विरोध नहीं करते, जो चल रहा है उसी में ढल जाते है जबकि गलत के विरोध में आवाज उठाना अत्यंत आवश्यक है। चुनाव सिर्फ संसदीय और विधायकी ही नहीं होते वरन प्रत्येक संस्था में होते है उनमे भी बहुत सी खामियां होती है किन्तु उनके खिलाफ भी कोई आवाज बुलंद नहीं करता।
thewake.in की संपादक शकुन त्रिवेदी ने कहा की अगर बूथ में मतदाता का अपना मत पेटी में डालने से पहले वहां खडे एक अनजान व्यक्ति से सामना हो जो उसे उसके अनुसार बताये चिह्न पर वोट डालने के लिए बाध्य करे तो क्या इसे स्वस्थ वोटिंग परम्परा कहेंगे या फिर महिलाये अपने पति की मर्जी से मत दान करे तो इसका सीधा सा मतलब यही हुआ कि ये सही मतदान प्रक्रिया नहीं है। जहाँ दबाव हो या भेड़चाल हो वहां सशक्त लोकतंत्र नहीं हो सकता है।
कार्यक्रम का कुशलता पूर्वक संचालन करते हुए हिंगलाज दान रतनू ,सहायक निदेशक सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग ने शायर राहत इंदौरी के एक शेर “तूफानों से आँख मिलाओ, सैलाबों पर वार करो, मल्लाहों का चक्कर छोड़ो, तैर कर दरिया पार करो” सुनाते हुए कहा की प्रत्येक नागरिक को अपनी जिम्मेदारी का बोध होना चाहिए। मतदान का प्रयोग मजबूती से करे। लोकतंत्र में अगर स्वतंत्रता और सम्पन्नता नहीं है तो इसका मतलब पराधीनता है।
धन्यवाद ज्ञापन राजस्थान पत्रिका के समाचार संपादक रविंद्र राय ने देते हुए कहा की पत्रिका ने हमेशा सामाजिक ज्वलंत मुद्दों पर अपनी आवाज उठाई है। मताधिकार का प्रयोग करते समय भी मतदाताओं को
भय, लालच और उदासीनता के माहौल से बाहर निकलना चाहिए।
