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प्रधानमंत्री के संबोधन में सेकुलर और विरोधी

प्रधानमंत्री के संबोधन में सेक्यूलर और विरोधी

78 में स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का लाल किला से संबोधन किसी ने किसी कारण से हर वर्ष चर्चा में रहता है।

चूंकि पहली बार भाजपा  बहुमतविहीन है और सरकार बहुमत के लिए गठबंधन के साथियों पर निर्भर है, इसलिए भी राजनीति में अभिरुचि रखने वालों के लिए उनके संबोधन पर विशेष रूप से दृष्टि थी। इस समय इनमें दो विषयों की सबसे ज्यादा चर्चा है।

पहला, उन्होंने किसी संगठन या व्यक्ति का नाम न लेते हुए कहा कि देश जिस तरह प्रगति कर रहा है इसका विरोध करने वाले विकृत लोग भी हैं जो यह नहीं चाहते।  हालांकि उसमें उन्होंने कहा कि हम उन्हें भी अपने काम से दिल जीत कर साथ लेंगे। इसे प्रकारांतर से आंतरिक विरोधियों से जुड़ा माना गया इसलिए भी इसे लेकर तीखी टिप्पणियां आ रही है।

वैसे उन्होंने नाम न लेते हुए विदेशी शक्तियों को भी सीधे-सीधे कटघरे में खड़ा किया। दूसरा विषय समान नागरिक संहिता है। इसके बारे में उन्होंने कहा कि देश को अब सेक्युलर कॉमन सिविल कोड की ओर बढ़ना चाहिए।

भाषण के समाप्त होते ही विरोधियों की प्रतिक्रिया आने लगी कि जो व्यक्ति और पार्टी सेक्युलर शब्द से घृणा करती हो और इसका उपहास उड़ाती हो वह अगर लाल किले से शब्द का प्रयोग करता है तो यह हमारी विजय है।

आप देख लीजिए सिविल कोर्ड में भी सेक्यूलर शब्द सबसे ज्यादा चर्चा में बना हुआ है।विरोधी प्रधानमंत्री मोदी तथा उनकी सरकार एवं पूरे संगठन परिवार को घेरने की कोशिश कर रहे हैं। प्रश्न है कि क्या प्रधानमंत्री के भाषण का वही अर्थ है जो उनके विरोधी लग रहे हैं ?

प्रधानमंत्री के भाषण को समग्रता में देखना होगा। खंड – खंड करके एक – दो विषय या पहलू को उठा लेने से संपूर्ण तस्वीर स्पष्ट नहीं होती। उनका भाषण भारत को हर दृष्टि से सुख, शांति और समृद्धि से परिपूर्ण विश्व की प्रमुख शक्ति बनाने के सपने और कार्ययोजनाओं पर केंद्रित रहा।

स्वतंत्रता दिवस के उनके हर भाषण में आप कुछ पहलू सामान्य पाएंगे। वे लोगों के अंदर स्वतंत्रता आंदोलन के विचारों व व्यक्तित्व से प्रेरित कर देश के लिए काम करने का भाव जागते हैं, भारत राष्ट्र का एक बड़ा लक्ष्य सामने रखते हैं, अपने कार्यों का विवरण देकर विश्वास दिलाते हैं कि यह पूरा होगा और फिर भविष्य के लिए काम करने की योजनाओं पर बात करते हैं।

इस भाषण में भी आपको ये चारों पहलू पूरी तरह मिलेंगे। 2047 तक भारत को विकसित देश बनाने का लक्ष्य उन्होंने पहले से निर्धारित किया हुआ है। उन्होंने कहा भी कि जब स्वतंत्रता संग्राम में हम 40 करोड़ थे और इतने लोगों ने बलिदान का संकल्प लिया हम गुलामी से मुक्त हो गए, आज हम 140 करोड़ हैं, आज बलिदान देने की नहीं देश के लिए काम करने की आवश्यकता है,अगर हम काम का संकल्प लेते हैं तो अपने देश को विश्व का श्रेष्ठ देश बना सकते हैं।

अगर श्रेष्ठ देश बनाना है तो अनेक स्तरों पर बदलाव की जरूरत है जिनमें कानूनी, संवैधानिक व्यवस्थागत सुधार के साथ लोगों की मानसिकता तथा इसके सामने खड़े विरोधियों को पहचान कर भूमिका निर्धारित करने की भी।

उन्होंने अपनी सरकार द्वारा किये गये आर्थिक सुधारों से लेकर सामान्य व प्रोफेशनल शिक्षा, आधारभूत संरचना आदि सुधार और व्यापक बदलावों को सिलसिलेवार रखा तथा संकल्प व्यक्त किया कि ये सारी प्रक्रिया लगातार आगे बढ़ेगी।

इसी संदर्भ में उन्होंने बताया कि हमने कैसे भारत के विकास के रास्ते के 1400 से ज्यादा कानून खत्म कर दिए, छोटी-छोटी बातों पर गिरफ्तार होने और जमानत लिए जाने के कानून को भी बदला। हमने भारतीय दंड संहिता को भारतीय न्यायसंहिता बनाकर भारतीय दृष्टि से आपराधिक न्याय प्रणाली बनाई। इसी को विस्तारित करें तो सिविल कोड पर जोर देना समझ में आता है। सेक्यूलर सिविल कोड का यह अर्थ नहीं कि उन्होंने कॉमन सिविल कोड या समान नागरिक संहिता को नया नाम दे दिया। साफ है कि उन्होंने इस कानून के चरित्र की बात की। यह सच है कि अभी तक भारत की नागरिक संहिता या सिविल लौ सेक्यूलर भारत का अंग नहीं है। उसमें मजहबों की दृष्टि से मजहब के नाम पर ऐसे कानूनों की स्वतंत्रता मिली हुई है जो किसी भी सेक्यूलर देश के लिए स्वीकार्य नहीं होना चाहिए। सच यह है कि हमारा नागरिक कानून व्यवहार में सांप्रदायिक और सेक्यूलर विरोधी ज्यादा है। सबके लिए समान नागरिक कानून का मतलब ही है कि भारत की सेक्यूलर अवधारणा को संविधान के तहत पूरी तरह साकार करना। सेक्यूलरवाद का भारतीय पर्याय सर्वधर्म समभाव से है। यानी हम किसी धर्म – पंथ के विरुद्ध नहीं बल्कि सबको समान रूप से देखते हैं और व्यवहार करते हैं। इस कसौटी पर नागरिक कानून खरा नहीं उतरता। परिणाम यह हुआ है कि समुदायों के अंदर प्रगतिशील सामूहिक सोच नहीं पैदा हुई और न वर्तमान विश्व की दृष्टि से भारत को खड़ा करने के अनुरूप उनका सामाजिक सुधार ही हुआ। अगर आप 1985 के प्रसिद्ध शाहबानो मामले में उच्चतम न्यायालय के संविधान पीठ का फैसला पढ़ेंगे तो उसमें साफ तौर पर देश में मजहब और पंथ के भेदभाव से ऊपर सबके लिए समान नागरिक कानून की बात की गई है। यह भाजपा के घोषणा पत्र में भी शामिल है तो प्रधानमंत्री द्वारा इसका उल्लेख स्वाभाविक है। देखना होगा होगा कि सरकार इस दिशा में क्या करती है क्योंकि गठबंधन के साथियों को इसके लिए तैयार करना होगा।। किंतु प्रधानमंत्री ने संकल्प व्यक्त किया है और वह भी लाल किले से तो मन कर चलना चाहिए कि इसके साकार करने की हर संभव कोशिश होगी।

दूसरे मुद्दे पर निष्पक्ष होकर विचार करें तो साफ दिखाई देगा कि नरेंद्र मोदी सरकार के आने के बाद देश में राजनीतिक और गैर राजनीतिक स्तर पर बड़ी संख्या में सक्रिय व्यक्तियों और संस्थाओं के अंदर अजीब किस्म का नफरत और विरोध है।

इनमें कुछ तो भाजपा, मोदी और पूरे संघ परिवार से स्थाई नफरत पालते हैं इसलिए आपसी मतभेद रहते हुए भी इस मुद्दे पर सब एक हैं और जिन पार्टियों को सत्ता से वंचित होना पड़ा उनके साथ इनका कई स्तरों पर गठजोड़ दिखाई पड़ता है। दूसरी ओर विदेश में भी ऐसी शक्तियां हैं जो भारत को उसकी सभ्यतागत और सांस्कृति पहचान के साथ विश्व में स्थान बनाते नहीं सहन कर सकती। इनमें अंतरराष्ट्रीय स्तर के कुछ नामी एक्टिविस्ट , पूंजीपति, थिंक टैंक, एनजीओ, देश व पार्टियां भी शामिल हैं।

अपने- अपने लक्ष्य की दृष्टि से उनके बीच परोक्ष- प्रत्यक्ष एकता दिखाई देती है। भारत में एक विरोध शुरू होता है और धीरे-धीरे दुनिया का इकोसिस्टम वैसे ही आवाज निकालने लगता है। इसी तरह दुनिया में भारत के विरुद्ध कोई स्वर निकलता है तो देश के अंदर भी उसको प्रतिध्वनित किया जाता है। बांग्लादेश में हुए हिंसक असामान्य उथल-पुथल के समय भारत के अंदर की प्रतिक्रिया देखें तो आपके अंदर विरोधियों की विकृत मानसिकता का पता चल जाएगा। किस तरह भारत में भी ऐसा होने की घोषणा करते हुए लोगों को उत्तेजित करने की कोशिश की गई।

पूरा इको सिस्टम इसी नैरेटिव के साथ आगे बढ़ा। भारत की मित्र शेख हसीना तक को न रहने देने की मांग की गई। बांग्लादेश की घटना व हिंदुओं पर हमले पर देश के अंदर और बाहर व्यक्तियों, संगठनों , संस्थाओं व पार्टियों की चुप्पी बताती है कि चुनौतियां कितनी बड़ी है।

प्रधानमंत्री मोदी ने संभवतः इसी का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि हम काम करते हुए उनका दिल जीतेंगे। दिल जीते न जीते अगर आप कार्य और व्यवहार से अपने को सशक्त करते हैं तो जनता के सामने पैदा किया गया भ्रम का मायाजाल टूटता है और उनका समर्थन आधार घटता है।

 

अवधेश कुमार, ई-30, गणेश नगर, पांडव नगर कौम्प्लेक्स, दिल्ली -110092, मोबाइल – 9811027208

 

 

 

 

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