ध्यान करने से एकाग्रता बढ़ती है, सीखने से क्षमता इस बात पर जोर देने वाले श्री श्री समीरेश्वर ब्रह्मचारी जी से एक मुलाकत उनके आश्रम ” विश्व सेवाश्रम संघ ” बिराटी न्यू बैरकपुर में हुई।
मां काली के परम भक्त, अनेक प्रतिभाओं के स्वामी, अध्यात्म से जुड़े व्यक्ति या यू कहे की एक विलक्षण व्यक्तित्व से मुलाकात एक अनोखा अनुभव था।
आपके द्वारा कही गई बात कितनी सत्य होती है उसका उदाहरण राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू है। जब वे झारखंड की राज्यपाल थी तब वे श्री श्री समीरेश्वर ब्रह्मचारी जी के आश्रम में आई थी उन्हें देखते ही आपने कहा कि ” एक दिन तुम राष्ट्रपति बनोगी। ” तब से लेकर आज तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह से लेकर कितने मुख्यमंत्री और राजयपाल आपके आश्रम में आ चुके है।
ऐसी शख्सियत के साथ एक मुलाकात कुछ प्रश्नो के साथ –
मनुष्य का संकल्प शुद्ध है तो कभी भी कोई काम नही रुकेगा
,प्रश्न, आपका जन्म एवं शिक्षा कलकत्ते में हुयी, कलकत्ते जैसे महानगर में जहाँ छात्र डाक्टर -इंजिनियर या एमबीए जैसे कोर्स करके सैटल हो जाते है वहां आप ने आध्यात्म का रास्ता अपनाया इसकी कोई खास वजह ?
* बचपन से ही “सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दु:ख भाग भवेत।।” इन पक्तिंयों ने मन में जगह बना ली , कैसे और क्यों इसका पता नहीं किन्तु तभी से विश्व सेवाश्रम संघ की स्थापना करने का दृढ निश्चय कर लिया। अध्यात्म ने मुझे बचपन से ही आकर्षित किया और मेरा मानना है की अध्यात्म से ही आप शांति ,संतुष्टि और सुख प्राप्त कर सकते है।
२ प्रश्न, आप आध्यात्म से जुड़े है और आप विश्वमाता नाम से एक बड़ा मंदिर बनवा रहे है। साथ ही आप ने बच्चों की शिक्षा के लिए स्कूल बनवाया। जरुरतमंदो को उनकी जरूरत के अनुसार सामग्री बाटते है। अध्यात्म और समाज सेवा दोनों एक साथ कैसे ?
* कोई भी साधना, देवता पूजन या इंसान पूजन बराबर ही है। ईश्वर सभी जीवों में निवास करते है। परमात्मा – जीवात्मा दोनों एक ही है ये संत या महापुरुष जानते है. स्वामी विवेकानंद ने हमेशा जीवों से प्यार करने की शिक्षा दी है। लेकिन बहुत से मनुष्य अहंकार वश कहते है कि – “मैंने दान किया या मैंने मदद की ” परन्तु वे भूल जाते है की वे कौन होते है किसी को कुछ देने वाले। मेरा मानना है कि मै कौन हूँ कुछ भी करने वाला? ये ऊपर वाले का बिश्वास और आशीर्वाद है जो वो मुझसे ऐसे काम करवा रहा है।
३ प्रश्न, किसी भी कार्य को करने के लिए आर्थिक मदद आवश्यक है, आपने मंदिर ,स्कूल आश्रम सब कैसे बनवाये ?
* मनुष्य का संकल्प शुद्ध है तो कभी भी कोई काम रुकेगा नहीं फिर वो मंदिर बनवाना हो या समाज सेवा। ये जो आपदाएं आती है हमारी चेष्टा रहती है सेवा करना। कोरोना काल में विश्वमाता मंदिर का काम रोक दिया वो फंड तुड़वाकर जरूरतमंदों की सहायता की क्योंकि उस समय मदद करना आवश्यक था। रही बात आर्थिक मदद की तो कब कौन आकर चुपचाप दान करके चला जाता है उसका पता नहीं चलता।
४ प्रश्न, आपके नाम के साथ ब्रह्मचारी जुड़ा हुआ है जबकि ब्रह्मचारी उसको मानते है जो शादी नहीं करता और ब्रह्मचर्य का पालन करता है लेकिन आपने शादी भी की है और आपकी एक बेटी भी है ?
* मुझे मालूम है कि ब्रह्मचारी का मतलब सन्यासी और सात्विक होना है। ये एक कठिन साधक और सयमी होते है। लेकिन मेरे पूर्वजों का टाईटिल ही ब्रह्मचारी था इसी लिए मेरे नाम के साथ भी ब्रह्मचारी जुड़ा हुआ है जबकि सत्य ये है कि उस दृष्टिकोण से मै ब्रह्मचारी नहीं हूँ।
५ प्रश्न, हमने आपका म्यूजियम देखा, उसमे बहुत सुन्दर प्रतिमाएं और पेंटिंग है जिन्हे आपने ही बनाया है. हमने ये भी सुना है कि आप कविता भी लिखते है, गाते भी है! इतनी सारी प्रतिभाएं एक साथ ये आश्चर्य की बात है क्योंकि बहुत से लोगो के पास एक भी प्रतिभा नहीं है। इस विषय पर आप की क्या राय है ?
* ये मेरा अनुभव है की जो ईश्वर पर विश्वास करते है ईश्वर उन्हें वह सब कुछ देता है जो भी वो दिल से चाहते है। ईश्वर को दोष न देकर ” कि मेरा ये नहीं हुआ वो नहीं हुआ या मेरा भाग्य अच्छा नहीं है। ” अपने ऊपर भरोसा करके जो भी चाहिए उस दिशा में मेहनत करे, परिणाम सुखद ही आएगा। जैसे की एक गरीब लड़की थी जिसके यहाँ दो समय खाना नहीं जुटता था. उसकी इच्छा थी कि उसके पास गाड़ी, बाड़ी सभी कुछ हो। वो पढाई में अच्छी थी उसकी शादी एक अच्छे समृद्ध परिवार में हो गयी। उसे वह सब कुछ मिल गया जो वह चाहती थी।
६ प्रश्न, आप मूल रूप से कहा के रहने वाले है ?
* मै बांग्लादेश से हूँ और मेरा टाइटिल मुखर्जी है, गोत्र भरद्वाज है. बांग्लादेश में मेरे परिवार और घर का बहुत नाम है वहां भी हमारा पुश्तैनी मंदिर है।
७ प्रश्न, आप बांग्लादेश से है और आपके परिवार के लोग भी वहां है। अभी हाल में जो बांग्लादेश में हिन्दुओं के साथ चल रहा है उस पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है ?
* ये सब देखकर अत्यंत पीड़ा होती है! हिन्दुओं को मारना, मंदिर तोडना ये तो कोई धर्म नहीं है। इस कार्य का विरोध होना चाहिए। हम देखते है कि सुशील शिक्षित युवक आंदोलन कर रहे है किन्तु उनकी भाषा -व्यवहार और कार्य निंदनीय है उन्हें देखकर लगता ही नहीं की वे शिक्षित है क्योंकि अपने से कमजोर को मारना, पीड़ा देना ये कौनसी शिक्षा का अंग है।