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क्या मैं अतीत का पृष्ठ बन गया

क्या मैं अतीत का पृष्ठ बन गया हूं?

दिनांक – 03.12.2004 दिन – शुक्रवार

1. टैक्सी वालों की हड़ताल के कारण कल वर्षों के बाद फ़तेहगढ़ से फ़र्रुख़ाबाद तक रिक्शे से जाना हुआ। चैराहे से भोलेपुर तक यात्रा एक रिक्शे से हुई, भोलेपुर से चैक तक दूसरे रिक्शे से जाना हुआ।

2. आज सौरभ ने सुबह फ़ोन करके इन्तज़ार करने को कहा। उसके स्क्ूटर पर ही फिर विद्यालय आना हुआ।

3. आज फिर ‘‘जागरण’’ में विद्यालय के सन्दर्भ में एक नकारात्मक समाचार प्रकाशित हुआ है। हमारे यहाँ अध्यापकों की संख्या मानक से अधिक है। हर बच्चे पर सरकार का लगभग एक हज़ार रुपये का ख़र्च आता है।

4. मेरे पास कक्षाध्यापक के रूप में रजिस्टर की ज़िम्मेदारी नहीं है।

5. लेक्चर-रजिस्टर और डायरी भरने की औपचारिकताओं का निर्वाह वर्षों से नहीं किया जा रहा है, कई अन्य की तरह ही मेरे द्वारा भी।

6. इण्टरवल के उपरान्त कक्षाएँ लगती ही नहीं हैं।

7. बारहवीं कक्षा में बच्चे प्रायः उपस्थित नहीं रहते।

8. महाविद्यालयों में भी ऐसा कहाँ होता है!

 

दिनांक – 04.12.2004 दिन – शनिवार

1. आज प्रातः मोबाइल पर विष्णु का संदेश आया कि एन. डी. टी. वी. के ‘‘अर्ज़ किया है’’ कार्यक्रम के अन्तर्गत उसकी रचनाओं का प्रसारण आज शाम 06ः30 बजे तथा फिर कल सुबह 10ः30 बजे होगा। अशोक चक्रधर के ‘‘वाह-वाह’’ की लोकप्रियता ने कविता को पुनः रजतपट पर प्रतिष्ठित कर दिया है। बलराम श्रीवास्तव के भी समय-समय पर सन्देश आते रहे हैं कि आज उसका गीत प्रसारित हो रहा है। विष्णु ने तो युवा पीढ़ी के अप्रतिम स्वर के रूप में कवि-सम्मेलन के मंच पर भी गीत को केन्द्रीय भूमिका दिलवाई है जबकि हास्य-व्यंग्य ने उसे लगभग हाशिये पर पहुँचा दिया था।

गोविन्द व्यास जी के वर्चस्व के युग में कई बार सीपीसी से मेरा काव्य-पाठ प्रसारित हुआ है, लखनऊ दूरदर्शन के एकाधिक कवि-सम्मेलनों का मैंने संचालन भी किया है। रेडिओ के अनेकों कार्यक्रमों के संचालन की स्मृति है। लेकिन इधर एक अरसे से न तो आकाशवाणी ने मुझे याद किया, न दूरदर्शन ने। सब, सहारा और एन. डी. टी. वी. की तो बात उठाना भी मेरे लिये उचित नहीं है। ………….

क्या मैं अतीत का पृष्ठ बन गया हूँ ?

 

दिनांक – 06.12.2004 दिन – सोमवार

1. आज भी सौरभ के सहयोग से विद्यालय समय से पहुँच सका। अभी टैम्पो वालों की हड़ताल ख़त्म नहीं हुई है, आज सिटी मजिस्टेªट के साथ वार्ता है – किसी समाधान की उम्मीद तो है।

2. कल से परीक्षाएँ प्रारम्भ हो रही हैं। अभी प्रधानाचार्य वाला विवाद सुलझा नहीं है। फिलहाल कार्य तो बदस्तूर चल ही रहा है। हाँ, वेतन के सन्दर्भ में इस महीने अड़चन आ सकती है।

3. पिछले दिनों एक बहुमूल्य हार गिरिजाशंकर सर्राफ़ की दूकान से लेकर मधु हम लोगों को दिखाई लाई थी, वह अपने लिये कुछ आभूषण ख़रीदने गई थी।

4. अलका को भी, मुझे भी हार अच्छा लगा। अभी तो वह मधु के पास ही है। दीपा के लिये उसे ले लेने का विचार है। अलका से कह दिया है कि हार लेकर उसकी क़ीमत (कदाचित् 7000/- रु.) सर्रार्फ़ को दे आये, पैसा बैंक से निकलवा ले।

5. अभी उस दिन मुकुल भाईसाहब के यहाँ शादी में आई इन्दिरा जी ने घर पे आकर विद्यालय चलाने के सन्दर्भ में आ रही अपनी कठिनाइयों का ज़िक्र किया। उन्हें अभी कुछ महीनों तक हर महीने 1000/- रु. की सहायता कहीं-न-कहीं से चाहिये। ………मैं उनके लिये क्या करूँ ?

ग़ज़ल

हिन्दुस्तानी औरत यानी,

घर भर की ख़ातिर कुर्बानी।

गृहलक्ष्मी पद की व्याख्या है,

चैका-चूल्हा-रोटी-पानी।

रुख़सत करने में रज़िया को,

टूट गये चाचा रमजानी।

आँचल में अंगारे बाँधे,

पीहर लौटी गुड़िया रानी।

क़त्ल हुआ कन्या भूर्णो का,

तहज़ीबें दीखीं बेमानी।

निर्धन को बेटी मत देना,

घट-घट वासी अवढरदानी।

– डाॅ॰ शिव ओम अम्बर

प्रीति गंगवार  (फर्रुखाबाद) द्वारा संकलित

 

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