07.12.2004
आज सवेरे से अलका की तबीयत ख़राब है, टॉन्सिल की पीड़ा है, बुख़ार है। विद्यालय से फ़ोन किया था, दीपा ने बताया कि विश्राम कर रही है – सौरभ ने कोई दवा लाकर दी है।
कल बॉबी के जन्म-दिवस पर दीपा के साथ प्रेमा के यहाँ गया था, अलका दिन में ही हो आई थी। रात्रि-भोजन में उसकी उपस्थिति औचित्यहीन थी क्योंकि कल उसका सोमवार का व्रत था। वहाँ से घर आया तो पता चला कि 12 दिसम्बर के आयोजन के सन्दर्भ में सुभाष चतुर्वेदी जी का फ़ोन आया था, वह अब आज भेंट करने आयेंगे। 02 जनवरी के लिये इस बीच लखनऊ से श्री सूर्य कुमार पाण्डेय का भी फ़ोन प्राप्त हुआ। खादी ग्रामोद्योग की प्रदर्शनी में होने जा रहे इस आयोजन का औपचारिक निमन्त्रण विभाग की ओर से आयेगा।
कल विद्यालय से जाते समय प्रतीक स्वयं आगे बढ़कर मुझे अपने स्कूटर से ले गया था। आज सुबह वह स्वयं घर आ गया। हड़ताल में फूट पड़ गई है, उसके शीघ्र ही ख़त्म होने के आसार हैं।
त्रिगुणायत जी दो दिन के अवकाश पर हैं, यादव साहब के नियन्त्रण में चल रही हैं परीक्षाएँ। वातावरण सौमनस्यपूर्ण है।
08.12.2004
कल महेशचन्द्र शर्मा जी के साथ ड्यूटी पड़ी थी, आज हरिपाल मिश्रा के साथ पड़ी। एक घण्टे में बारहवीं कक्षा के बच्चे अपना कार्य करके चले जाते हैं। दूसरी मीटिंग में फिर ड्यूटी नहीं लगती। धूप में अन्य मित्रों के साथ बैठकर गपशप चलती रहती है। ………
पंडित रामकिंकर जी तथा ओशो की पुस्तकें मेरे पास विद्यालय में रखी ही हैं, उनका पुनरवलोकन चलता रहता है। आज भी सौरभ विद्यालय तक छोड़ गया। सुना है कि अब कुछ टैम्पो भी सड़कों पर नज़र आ रहे हैं। आज न्यायालय का भी आदेश आ जाना चाहिये।
अवकाश के उपरान्त आज त्रिगुणायत जी विद्यालय आ गये। परीक्षाओं में ड्यूटी तो अभी नरेन्द्र सिंह यादव ही लगा रहे हैं। वेतन-बिल ज़रूर प्रधानाचार्य के हस्ताक्षर न होने से आगे नहीं बढ़ पा रहा है!
1974 से लेकर 2004 तक की यात्रा-विद्यालय में आये तीस वर्ष पूरे हो चुके हैं। एल. टी. ग्रेड में आया था, प्रवक्ता बन चुका हूँ। इससे पूर्व तीन वर्ष कर्नल ब्रह्मानन्द इण्टर कालेज शुकरूल्लापुर में व्यतीत हुए। अध्ययन-अध्यापन का परिवेश कहीं नहीं मिला अतः आत्मतुष्टि क्या मिलती, मात्र जीविका चलती रही।
कर्क लग्न में प्रबल कारक गुरु होता है किन्तु कर्मभाव में मेष राशि पर स्थित मेरे गुरु ने यह कैसी ज़िन्दगी जी है ?
ग़ज़ल
अग्नि के गर्भ में पला होगा,
शब्द जो श्लोक में ढला होगा।
दृग मिले कालिदास के उसको,
अश्रु उसका शकुन्तला होगा।
है सियासत विराट-नगरी-सी,
पार्थ इसमें वृहन्नला होगा।
दर्प ही दर्प हो गया है वो,
दर्पनों ने उसे छला होगा।
भाल कर्पूरगौर हो बेशक,
गीत का कण्ठ साँवला होगा।
संकलन : प्रीति गंगवार फर्रुखाबाद, उत्तर प्रदेश