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सुन लेते है तेजाबी टिप्पणियां

13.12.2004

यहां हर एक नजर उर्दू को फरियादी समझती है…

1. कल फ़ारुख़ सरल दोेपहर के भोजन के समय तक आ गये थे। वह महादेवा के आयोजन से लौट रहे थे, यहाँ से फिर उन्हें दिल्ली जाना था।

2. रात्रि 8 बजे से 10ः30 तक चली कवि-गोष्ठी। अध्यक्षता कंचन जी ने की, संचालन मुझे करना ही था। मंच पर अन्य हस्ताक्षर थे – सर्वश्री फ़ारुख़ सरल, रामशंकर अवस्थी अबोध, राजेश हजेला तथा गरिमा।

3. राॅयल क्लब के सदस्य तथा नगर के अनेकानेक गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति से (प्रारंभ से अन्त तक) यह आयोजन विशेष उल्लेख्य बन गया।

4. मैं ख़ुद महसूस कर रहा था कि पूरी गोष्ठी में सभी लोग शब्द से सम्मोहित से बैठे रहे।

5. मुझे संचालक के रूप में भी सबने पर्याप्त सम्मान दिया और मैंने भी दिल्ली वाले आयोजन की तरह कल संचालन में भी आनन्द लिया, काव्य-पाठ में भी – श्रोता-समाज हर क़दम पे मेरे साथ था।

6. चतुर्वेदी जी बहुत सन्तुष्ट थे क्योंकि उनके क्लब के सभी सदस्यों के चेहरे पर तुष्टि-भाव थे।

7. जितना मैंने कहा था (पाँच हज़ार रुपये), फ़ारुख़ को उतनी राशि सादर प्रदान की गई, वह भी पर्याप्त तुष्ट थे।

14.12.2004

1. रविवार को हयर कटिंग सैलून में ‘‘आज’’ में प्रकाशित एक आलेख में उर्दू के सन्दर्भ में मुनव्वर राना का एक शे‘र पढ़ा –

यहाँ हर इक नज़र उर्दू को फ़रियादी समझती है,

मगर ये पगली ख़ुद को अब भी शहज़ादी समझती है।

2. उर्दू का अर्थ है – फ़ारसी, तुर्की आदि शब्दों के संयोजन से बनी एक भाषा जिसके क्रियापद खड़ी बोली के हैं और जिसकी लिपि फ़ारसी है तथा जिसमें संस्कृत अथवा परिनिष्ठित हिन्दी के शब्दों का यथासंभव बहिष्कार और तिरस्कार है।

3. उर्दू का व्यावहारिक अर्थ है फ़ारसी लिपि और उर्दू के प्रेमी इसी सवाल पर बेहद अव्यावहारिक हैं, अपनी प्रकृति के अनुरूप व परिवर्तन के पक्षधर नहीं!

4. किसी शायर के साक्षात्कार में उर्दू की ओर से कहा गया एक शे‘र पढ़ा था –

मेरा चेहरा कुचलना चाहते हैं,

वो रस्मुलख़त बदलना चाहते हैं।

5. मुलायम सिंह जैसे समर्थक मिले हैं उर्दू को। आजकल जौहर विश्वविद्यालय का प्रकरण चर्चा में है।

6. एक-एक मुसलमान उर्दू का सहज समर्थक है।

7. हिन्दी के पास ऐसा शायद ही कोई राष्ट्रीय स्तर का नेता है जो अपनी आवाज़ पूरी त्वरा और घोष के साथ सामने रखे!

8. हिन्दी भाषी प्रदेशों के लोग अन्तर्मन से अंग्र्रेज़ी के गुलाम हैं। उस दिन बाहर से पधारे एक कवि मित्र नेे वार्तालाप के मध्य में बड़े उत्साह तथा गौरव के साथ बताया कि उनकी पुत्री ने अगंे्रज़ी में एम. ए. किया है।

9. मैं हिन्दी के सन्दर्भ में इधर बहुत स्पर्श-कातर हो उठा हूँ।

10. ‘‘गवाक्ष’’ के कई आलेखों में यह विक्षोभ प्रकट हुआ है।

11. हाँ, ‘‘यूथ इण्डिया’’ का नया अंक भी आ गया है। ‘‘वातायन’’ में तस्लीमा नसरीन के सवाल वाला लेख प्रकाशित हुआ है।

12. ‘‘पांचजन्य’’ ने इसे प्रकाशित करने की हिम्मत नहीं की।

13. इन्दिरा जी को परसों एक लिफ़ाफ़ा दिया, उनकी दिसम्बर की समस्या का समाधान हो गया – उस समय वह बहुत भावुक हो उठीं।

14. कल गरिमा का जन्म-दिवस है। इन्दिरा जी और गरिमा कल आई थीं। घर आने को कह गई हैं।

ग़ज़ल

असफलता को अवसाद नहीं करते,

जय को अन्धा उन्माद नहीं करते।

सुन लेते हैं तेज़ाबी टिप्पणियाँ,

हँस देते हैं प्रतिवाद नहीं करते।

निर्भय गाते हैं युग की गायत्री,

राजाज्ञा का अनुवाद नहीं करते।

झुकते हैं सन्तों के श्रीचरणों में,

सामन्तों से संवाद नहीं करते।

़फ़ाकों को भी मस्ती में जीते हैं,

बस्ती-बस्ती फ़रियाद नहीं करते।

सच कहते हैं अथवा चुप रहते हैं,

हम लफ़्ज़ों को बर्बाद नहीं करते।

– डाॅ॰ शिव ओम अम्बर

संकलन: प्रीति गंगवार, फर्रुखाबाद, उत्तर प्रदेश

 

 

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