यादों में आज भी जिन्दा है अप्पाजी
” ठुमरी की मल्लिका, पद्मविभूषण गिरिजा देवी जी”

“शकुन तुम मिठाई लेकर मत आना माँ मना कर रही है।” तो क्या लेकर आये ? हमने उनकी बेटी डॉ. सुधा दत्त से पूछा। उधर से आवाज आयी तुम्हारे होटल में क्या बनता है ? हमने आदतन बताना आरम्भ कर दिया- चाउमीन ,मंचूरियन ,फ्राइड राईस ,चिली पनीर ,स्प्रिंग रोल , वेज पकोड़ा ,पनीर पकोड़ा। पनीर पकोड़ा का नाम सुनते ही उनकी बेटी बोली ” माँ को पनीर पकोड़ा बहुत पसंद है तुम पनीर पकोड़ा ले आना। ” २१ अक्टूबर यानि की भाईदूज हम रसोई घर में मूंग की दाल की कचौड़ी बना रहे थे। हमने कुछ कचौड़ी और चटनी उनके लिए पैक की सोचा उन्हें घर का बना खाना पसंद आता है ये भी उन्हें दे देंगे। वैसे भी जब कभी उनके घर जाना होता तो कुछ न कुछ विशेष बना कर ले जाते क्योंकि हम जानते थे की वे खाने और खिलाने की शौक़ीन है। खाना भी अच्छा पकाती है। इस उम्र में भी वो कुछ करती ही रहती है। दूसरी तरफ उनकी बेटी खाना पकाने के नाम से ही दूर भागती है। अपनी बेटी की इस आदत पर उन्होंने एक बार हमसे कहा था की ” ये कुछ भी खा लेती है , ये ब्रेड से भी पेट भर लेती है, लेकिन हमे दाल -रोटी -सब्जी यानि की पूरा खाना चाहिए। जब हम उनके घर पहुंचे तो वह अपने तीन -चार शिष्यों के साथ अपने नए घर में बैठी हुयी बड़ी ही खुश लग रही थी। सुधा दीदी फोन पर बताया था की माँ ने घर बदल लिया है अब हम लोग प्रथम तल्ले से नीचे यानि की भू तल वाले घर में आ गए है। हमने उनकी बेटी को कचौड़ी -चटनी दी तो अप्पा जी ( गिरिजा देवी ) ने पूछा ” शकुन इसमें लहसन -प्याज तो नहीं है , हम शनिवार को लहसुन -प्याज नहीं खाते। ये सुनकर हमने हॅसते कहा की ” अप्पा जी तब आप कल खाइयेगा क्योंकि चटनी में लहसुन पड़ा है। सुधा दीदी बोली शकुन हम इसे कल माइक्रोव में गरम करके खा लेंगे। बात -चीत के दौरान सहसा वे बोली ” हमारी तबियत बहुत ख़राब लग रही है , सर में भी दर्द हो रहा है। ” हमने पूछा की कितनी देर से आपने कुछ नहीं खाया है इस पर उन्होंने जवाब दिया की तीन चार घंटे हो गए है। दरअसल नए घर में सामान ज़माने के चक्कर में सभी कुछ समय पर नहीं हो पा रहा था सुधा दीदी अकेले व्यवस्था में लगी हुयी थी। उनकी बात सुनकर सुधा दीदी जल्दी से पनीर पकोड़े गरम करके ले आयी। अप्पा जी ने पकोड़े खाते हुए पूछा शकुन तुम्हारे होटल में मांस -मच्छी भी बनता होगा। हमने जवाब दिया की बंगाल में रहकर शाकाहारी खाने से गुजारा कैसे होगा। इस पर उन्होंने पुनः पूछा तो शाकाहारी लोगो के लिए बर्तन अलग होंगे। हमने उनके संदेह का समाधान करते हुए कहा कि शाकाहारी खाना पकाने के बर्तन अलग है। ये सुनकर वे पुनः स्वाद लेकर पनीर पकोड़ा खाने लगी।
वे अपने इस नए घर से काफी संतुष्ट थी क्योंकि अब उन्हें सीढ़ियां चढ़ना नहीं था। दूसरे घर के ऊपर ही हॉस्टल छात्र -छात्राओं की आवाजाही लगी रहती। अकेलापन नहीं लगता। घर दिखाते समय सुधा दीदी ने जब अपना कमरा दिखाया तो बोली शकुन आजकल हम और माँ दोनों एक साथ सो रहे है। माँ के कमरे से लगे स्नान घर में अभी गीजर चालू नहीं हुआ है इसलिए। उनकी बात सुनकर हमने कहा ठीक ही तो है आप दोनों एक संग सोयेगी तो ज्यादा अच्छी नींद आएगी। सुधा दीदी बोली नहीं माँ को अपना कमरा चाहिए. इधर अप्पा जी शिकायत कर रही थी की बाथरूम में न साबुन रखने की जगह है न कपडे टांगने की, गीजर भी काम नहीं कर रहा है।
आठ नवम्बर २०१६ को जब नोटबंदी हुयी थी उसके कुछ दिन बाद ही एक कार्यक्रम के सिलसिले में मेरा जाना हुआ। देखा वो अपने कमरे में बहुत ही खुश बैठी थी। हमे देखते ही बोली ” देखो शकुन हमने पुराने पांच सौ के नोट चला लिए। ” वहा एक बड़ा सा झोला पतंजलि के सामान से भरा हुआ रखा था। लाग लपेट , झूठ -फरेब से दूर ,सबकी भलाई में व्यस्त रहने वाली अप्पाजी हमे देखकर अपने शिष्यों से हमेशा कहती अरे इसके सामने सम्हाल कर बात करना ये पत्रकार है पता नहीं क्या छाप देगी। जबभी हम उनकी फोटो खींचते तो टोकती ” शकुन तुम फोटो बहुत खींचती हो देखो उलटी -सीधी फोटो मत छापना।
राजनीति से दूर रहने वाली अप्पा जी प्रधान मंत्री मोदी जी के काम की बहुत तारीफ़ करती। बनारस के एक कार्यक्रम में अप्पा जी का मोदी जी से मिलना हुआ , हमने उनकी मोदी जी के साथ फोटो देखी थी अतः हमने उत्सुकता वश पूछा की क्या मोदी जी ने आपसे बात की थी। उन्होंने बताया की मोदी जी ने उनसे पूछा ” आप कैसी है ? हमने उन्हें जवाब दिया की ” अब बुढ़ापे में कैसे होंगे , इसपर मोदी जी ने उत्तर दिया की कलाकार कभी बूढ़ा नहीं होता है। अप्पा जी उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से बहुत प्रभावित हुयी थी। उन्होंने जैसा की बताया की हम उनसे मिलने गए तो वहां व्हील चेयर की सुविधा नहीं थी “अखिलेश हमे अपनी कुर्सी पर बिठा कर गाड़ी तक छोड़ने आये। उन्होंने किसी दूसरे को हाथ नहीं लगाने दिया। यही नहीं उन्होंने कलाकारों के लिए पेंशन की व्यवस्था की। अब तुम्ही बताओं शकुन क्या एक कलाकार सारी जिंदगी गाता रहेगा ,बुढ़ापे में पैसा ही पास नहीं होगा तो वो क्या खायेगा। “
हमारे बेटे की सगाई हुयी तब वो कोलकाता में नहीं थी। उनके कोलकाता वापसी पर हमने उन्हें सगाई की फोटो दिखाई, फोटो देखने के बाद बोली -” शकुन तुमने बहु को पल्ला (माथे पर पल्लू रखना जो की ईवनिंग गाउन पहनने के कारण नहीं किया था ) नहीं करवाया। ये सुनकर हम हँस दिए इस पर वो बोली देखो शकुन हम तो पुराने लोग है हम तो पल्लू ही पसंद करेंगे। २१ तारीख को हमने उन्हें अपने बेटे की शादी की खबर देते हुए कहा की आप अपनी डायरी में तारीख़ नोट कर लीजिये आपको शादी में आना है इसपर उन्होंने उत्तर दिया की हम नवम्बर में बहुत व्यस्त है उस समय (दिसंबर) हमारा कोई कार्यक्रम नहीं है हम अवश्य आएंगे। उनकी अचानक हुयी मृत्यु की खबर ने अंदर तक झकझोर दिया। हम उन्हें चलता-फिरता ,बोलते -बतियाते छोड़ कर आये थे अचानक हुयी मृत्यु की खबर पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। लेकिन जन्म -मृत्यु ईश्वर के हाथ में है जो आया है वो जायेगा भी बस यही वो मन्त्र है जो बड़े से बड़े कष्ट को भी भूलने में सहायक होता है।
संगीत रिसर्च अकादमी में उनका पार्थिव शरीर दर्शनार्थ रखा हुआ था उनकी गायी हुयी ठुमरी धीमें स्वर में बज रही थी और हमे रह- रह कर याद आ रहा था उनका मनपसंद गाना “साथी रे भूल न जाना मेरा प्यार” वहां आने -जाने वालों का ताँता लगा हुआ था ये देखकर ऐसा लग रहा था जैसे वे सब इस बात की गवाही दे रहे हो की उनके द्वारा दिए गए स्नेह को भुला पाना इतना सहज नहीं है।
‘द वेक पत्रिका द्वारा भावभीनी श्रद्धांजलि।
