Sunday , May 4 2025

सती सुलोचना

                             सती सुलोचना-

 

राम रावण युद्ध का

निर्णायक पल प्रहर था

आने वाला।।

 

इंद्रजीत धैर्य धीर कि

वीरता रण कौशल का

सत्य साक्षात था

रामादल करने वाला।।

 

इंद्रजीत सा पुत्र

पिता अहंकार

अभिमान कि

बलि वेदी पर था

जीवन प्राण

त्यागने वाला ।।

 

पिता पुत्र सम्बन्धो का

नव अध्यायआयाम था

लिखने वाला।।

 

प्रयास विश्वास आश

परिणाम शून्य

माता मंदोदरी निराश

जान कर्म कोख का

अतुलित बल योद्धा

पुत्र भी था साथ छोड़

कर जाने वाला।।

 

देवता पराजित

कर नही सकते

युद्ध भूमि में था

मृत्यु वरण करने वाला।।

 

चौदह वर्ष वनवासी

निद्रा त्यागी इंद्रजीत का

काल लखन लाल था

बनने वाला।।

 

इंद्रजीत इंद्र विजेता

शस्त्र प्रकांड ज्ञाता

त्याग तपस्या का

शेष अवतारी द्वय का

समर भयंकर युग भी था

देखने वाला।।

 

काल समय भी

लालाइत युद्ध भयंकर

का साक्षी बनने को

निकट था आने वाला।।

 

शेष वासुकी कन्या

सुलोचना नारी गौरव

दानवता कुल में

देव कन्या पर भारी

युग समय काल था

बतलाने वाला।।

 

उर्मिला सती नारी

सुलोचना उर्मिला द्वय के

सती धर्म कि परीक्षा का

काल प्रहर था युग

युगांतर का साक्ष्य

समक्ष था बनने वाला।।

 

लखन लाल चले

इंद्रजीत का

निर्णायक युद्ध था

होने वाला।।

 

बोले रघुवर सुनो

अनुज संदेह नहीं

इंद्रजीत का वध

तुम्हारे ही हाथों है

होने वाला।।

 

ध्यान रहे मस्तक

इंद्रजीत का युद्ध

भूमि में कहीं गिरे नही

इंद्रजीत स्वंय

एक पत्नीव्रता

पत्नी सुलोचना

सती नारी सतीत्व कि

गरिमा महिमा सारी।।

 

यदि मस्तक इंद्रजीत का

कट कर युद्ध भूमि में

गिर जाएगा सती

सुलोचना की शक्ति से

रामादल का जयकार

पराजय वर्तमान

बन जाएगा।।

 

अग्रज राम का

आदेश लखन लाल ने

किया शिरोधार्य

चला वीर दसो दिशाओं से

देवो का हुंकार हुआ।।

 

चौदह वर्ष का

वनवासी निद्रा त्यागी

शेषवतार राम रावण

युद्ध का निर्णायक

शंखनाद किया।।

 

युद्ध भयंकर

बानर दानव सेना का

रौद्र रूप भयंकर

कटते मुंड अंग

रक्त प्रवाह नदी

काल कराल हुआ।।

 

शवो का किनारा

प्रकृति परमेश्वर ने

जैसे मृत्यु को ही

अंगीकार किया।।

 

कभी इंद्रजीत कि

माया भारी कभी

लखन लाल कि

त्याग तपस्या शक्ति भारी

कुलदेवी कि अपूर्ण

आराधना इंद्रजीत का

अंत अवश्य सम्भावी।।

 

बहुत झकाया इंद्रजीत ने

लखन लाल को

इंद्रजीतअंत

समय आया ।।

 

लखन लाल का वाण

प्रहार इंद्रजीत का

मस्तक भुजाएं काट दिया

मस्तक गिरा रामादल में

भुजा सुलोचना ने

सम्मुख पाया।।

 

देख भुजा सुलोचना

करने लगी विलाप

बोली कटी भुजा से यदि

मेरे पति इंदजीत की

भुजा सत्य तुम हो

दे दो मुझे प्रमाण ।।

 

लिख दो कैसे हुआ

वध तुम्हारा युद्ध का

आंखों देखा हाल

कटी भुजा इंद्रजीत कि

लिखने लगी युद्ध वध का

स्वंय लड़ा पल पल का भाव ।।

 

समझ गयी सुलोचना

नही रहा अब दुनियां में

उसका इंद्रजीत अटल

सुहाग ।।

 

भागी दौड़ी गयी

श्वसुर दसाशन के पास

बोली मस्तक लेने जाओ

पिता श्री मेरे पति

इंद्रजीत का रामादल

सती मैं पति संग हो

जाऊंगी पाऊंगी एहिवात।।

 

कहा रावण ने सुन पुत्री

कल युद्ध भूमि में इंद्रजीत

मृत्यु प्रतिशोध में लाखो

सर कट जाएंगे।।

 

सती बोली सुलोचना

पिताश्री मुझे क्या मिल

जाएगा मेरा सुहाग इंद्रजीत

क्या फिर लौट पायेगा?

 

मुझे पति का मस्तक

रामादल से ला दो मैं

पति संग जल जाऊंगी

पति परमेश्वर बिन व्यर्थ

यह जीवन अब किस

ईश्वर से नेह लगाउंगी।।

 

दशानन ने रामादल

स्वंय जाने से किया इनकार

कहा सुलोचना तुम

स्वंय ही जाओ रामादल

पति मस्तक लाओ

मेरा जाना कहाँ उचित होगा?

 

चली सुलोचना

रामादल को

देखा जब सुलोचना को

राघव स्वंय खड़े

करुणामय बोले

सुनो सती इंद्रजीत

योद्धा जैसा दूजा

नही कोई सत्य यही है ।।

 

यह तो युग सृष्टि कि है

परंपरा जो जन्मा है

वह मरेगा जो

आया है जाएगा ।।

 

सती सुलोचना कि

सुन याचना कहा

राघवेंद्र ने लज्जित ना

करो देवी बोलो मैं

क्या करूं पीड़ा दुःख

दूर तुम्हारा हो सके

तुम्हारा ऐसा हर

प्रयत्न करूं।।

 

बोली सती सुलोचना

राघव मस्तक मेरे

पति का मेरे सती होने का

गौरव आशीर्वाद चाहिए।।

 

राघवेंद्र का आदेश

मस्तक इंद्रजीत का

सौंप दिया सती सुलोचना को

सुलोचना ने देखा

लखन लाल को बोली

ब्रह्मांड में कोई ऐसा

शूरवीर नही जो इंद्रजीत को

मार सके ।।

 

तुम्हारी पत्नी

सती नारी है

मैं भी सती नारी हूँ

अंतर मात्र इतना

इंद्रजीत पिता दशानन का

पुत्र और नमक हक को

पूर्ण किया ।।

 

दशानन ने माता सीता का

हरण करने का कुकृत्य किया

दूषित अन्न दशानन का

कारण मृत्यु इंद्रजीत बना।।

 

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।

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