Sunday , May 4 2025

है बात पुरानी फिर भी है सदा नई

है बात पुरानी फिर भी है सदा नई, सुनाता हूं  घड़ी भर बैठ तो सही

 

 

है बात पुरानी फिर भी है सदा नई

सुनाता हूँ, घड़ी भर बैठ तो सही

कुछ धूल है पड़ी यादों के आईने पर

जरा हाँथ बढ़ा साफ़ करें तो सही

 

याद है! अरुणिमा से पहले का वो सवेरा

थोड़ा अँधेरा लेकिन आता हुआ उजेरा

सूरज के आने से वो आँगन का चमकना

कोयल की कूक से कानों का बेहकना

भजनों के स्वर से निर्मित नित् ऊर्जा नई

यादें अभी विशेष हैं घड़ी भर बैठ तो सही

 

गली के नुक्कड़ पर ज्ञानियों का जमघट

देश विदेश के मुद्दों पर आपसी खटपट

एक अख़बार को १२ आँखों का टटोलना

मोहल्ले में सुर्ख़ियों का लपक के मुँह खोलना

हर मन को भाती रोज की दाँस्तान वही

फिर भी मन भरा नहीं घड़ी भर बैठ तो सही

 

साँझ की बेला और चबूतरों का वो मेला

वार्ताओं की सेज पर जीवन का झमेला

दादियों के बुलावे पर ढोलकों का कसना

चाय-नाश्तों के बीच लोक गीतों का सजना

अल्हड़पन में डूबे बचपन और जवानी कहीं

खुद को खोजता वहाँ घड़ी भर बैठ तो सही

 

अँधेरे की खिड़कियों पर मोम का पिघलना

दादा- दादी की कहानियों में मन का फिसलना

कहाँ कल की चिंता थी हमें कहाँ कल का डर

माँ की गोद में बैठ हमें कहाँ किसी की फ़िकर

बाबूजी के अनुभव से मिलती नित् प्रेरणा नई

नहीं रहा शेष कुछ पाना घड़ी भर बैठ तो सही

 

कहाँ वो अब त्यौहार हैं कहाँ रहा उत्साह

जीवन्त उजाले को लीलता एकांत का स्याह

तेरी मंज़िल की दौड़ में हमराही सारे छूट रहे

अधिकारों की चाह में कर्तव्य सारे भूल रहे

माया के इस जाल में इच्छाओं का अन्त नहीं

अब कहीं और जाना नहीं घड़ी भर बैठ तो सही , घड़ी भर बैठ तो सही ……

 

    त्रिभुवन:    109/122 Jawahar Nagar Kanpur (UP)

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