नव वर्ष -2025 भाग-1
नव कलेंडर वर्ष दो हजार पच्चीस का शुभारंभ एक जनवरी दिन बुधवार से होने वाला है नव वर्ष 2025 प्रभु यीशु स्मरण में प्रारम्भ हुआ क्रिश्चियन मतावलंबिय जो सम्पूर्ण विश्व मे बहुसंख्यक तो है ही आर्थिक सामाजिक सामरिक सभी दृष्टिकोण से सबल सक्षम एव शक्तिशाली है जिसमे यूरोपीय संघ नाटो देशों के अतिरिक्त रूस आदि देश सम्मिलित है
यह विल्कुल सत्य है कि प्रधानता प्रमुखता जन धन शक्ति को ही प्राप्त होती है यह सारभौमिक सत्य है अतः सनातन नव वर्ष संवत्सर कि प्रमाणिकता प्रासंगिकता स्वीकार्य सत्य एव सारभौमिक होने के बावजूद नव कलेंडर वर्ष का महत्वपूर्ण स्थान है और ईस्वी के नववर्ष के शुभारम्भ की महत्ता एव उसके पड़ने वाले प्रभाव बहुत प्रासंगिक होते है ।
नव वर्ष 2025 का शुभारंभ एक जनवरी दिन बुधवार से हो रहा है बुधवार सनातन मतानुसार भगवान गणेश का दिन है भगवान गणेश शुभ मंगल के देवता माने जाते है महाकाल भगवान शिव के पितृ भक्त पुत्रो में भगवान गणेश जी है उनकी दो पत्नियों में रिद्धि और सिद्धि सभी मनोकामनाओ को पूर्ण करती है सृष्टि के शुभमंगल एव प्रथम पूज्य देव श्री गणेश जी है ।
बुधवार का दूसरा पहलू यह है कि भगवान श्री कृष्ण का जन्म साप्ताहिक वार दिनों में बुधवार को ही हुआ था भगवान श्री कृष्ण ने पृथ्वी पर अपने एक सौ बीस वर्षों के निवास के दौरान प्राणि प्राण विशेषकर मानव जीवन समाज के लिए मानदंडों का निर्धारण किया है जो व्यक्तिगत जीवन सामाजिक जीवन राजनीतिक जीवन को सत्यार्थ का बोध कराता है भगवान श्री कृष्ण कि बाल लीला महायोगेश्वर का महारास एव कुरुक्षेत्र के कर्मोपदेश सभी कलयुग के लिए दिशा दृष्टि दृष्टिकोण प्रदान करते है।
क्रिश्चियन मतावलंबियों के लिए तो प्रभु यीशु के जन्म के साथ पुराने वर्ष की विदाई होती है तो प्रभु यीशु के बढ़ते कदमो के साथ नववर्ष के सूर्योदय का आभाष अनुभव अनुभूति होती है जो प्रत्येक नववर्ष के आगमन एव पुराने वर्ष बिदाई पर होता है।
प्रश्न यह उठता है कि क्या इतने शुभ मंगल शुभारम्भ के बावजूद क्या पूरा वर्ष समूर्ण संसार एव मानवता के लिए शुभ मंगल होगा यही विषय बैज्ञानिक ज्योतिष गणना के लिए बाध्यकारी होता है।
क्योकि विकास की नित नई ऊंचाइयों को छूने वाला संसार मानव समाज नित नई चुनौतियों को भी जन्म देता है हर विकास के अंतर्मन में विनाश का मार्ग निहित रहता है जैसे जलवायु परिवर्तन विकास की पराकाष्ठा से उपजी मानवजनित एव विकराल होती समस्या है जो प्राणि प्राण के अस्तित्व पर ही प्रश्न चिन्ह खड़ा करती है।
शीत युद्ध के दौरान सम्पूर्ण विश्व दो समूहों में बंटा था तो गुटनिरपेक्ष समूह भी अस्तित्व में था वर्तमान में अमेरिका चीन एव रूस महत्वपूर्ण भूमिकाओं में है तो भारत जैसे देश अपनी महत्वपूर्ण भूमिकाओं के लिए स्वंय को तैयार करने में लगे है ऐसे में 2025 में सम्पूर्ण वैश्विक धारा किस तरफ बहेगी बहुत बड़ा प्रश्न है जिसका उत्तर पूरे वैश्विक समुदाय के लिए महत्वपूर्ण है।
अमेरिका-
अमेरिका में सत्ता का परिवर्तन हो चुका है उंसे सिर्फ समय के साथ अतिस्त्व मे सक्रिय होना शेष है नया प्रशासन वैचारिक रूप से बहुत स्प्ष्ट है वह अमेरिकी हितों को सर्वोपरि रखते हुए वैश्विक हितो एव अपनी शक्ति को संतुलित करता हुआ प्रयोग करेगा जो सम्पूर्ण विश्व को दिशा दृष्टिकोण दे सकने में सक्षम होगा।
सत्ता के शिखर पर स्थापित होना फिर उखड़कर अपमानित होकर सतह पर आना पुनः संघर्षों एव जीवन की कठिन चुनौतियों से लड़कर पुनः विजयी होकर सत्ता पर काबिज होना डोनाल्ड एव ट्रम्प ने देखा जिया और अनुभव किया है जिसका प्रभाव निश्चित रूप से उनके प्रशासन एव वैश्विक स्तर पर परिलक्षित होना स्वभाविक है मेरी गणना बहुत स्प्ष्ट कहती है कि वैश्विक स्तर पर परिणाम गणपति एव कृष्णा के कर्म योग के सापेक्ष पड़ने वाले है।।
चीन-
ऐसा राष्ट्र जो दिखने में शांत अवश्य प्रतीत होता है लेकिन उसके शासक शासन प्रणाली के अंतर्मन में वैश्विक वर्चस्व कि ज्वाला सदैव जलती है जिसकी गर्मी की छटपटाहट में वह अपनी शक्ति का विस्तार करता है जिसके परिणामो की अनुभूति वैश्विक स्तर पर किया जाता है। चीन के वर्तमान राष्ट्रपति शक्तिशाली सक्षम एव सूझ बूझ के गम्भीर व्यक्तित्व होने के साथ साथ अजात शत्रु की स्थिति में है जो उन्हें आत्ममुग्ध करने के लिए पर्याप्त कारण है लेकिन उनके अंदर दीमक भी कम नही है मेरी गणना बहुत स्प्ष्ट करती है कि यदि चीन की बढ़ती आर्थिक सामरिक शक्ति से सजग रहने की आवश्यकता विश्व को है तो उतनी ही गमम्भीरता से चीन को अपने अंदर जन मानस से साथ ही साथ चीन ताईवान विवाद वैश्विक तनाव का नया कारण हो सकता है।।