आद्योपांत रामायण—
चौथापन संतानहीन दशरथ
गुरु वशिष्ठ शरणं सिरु नाई।।
सूर्यवंश अस्त न होय दशरथ
याचना गुरु करो जतन उपाई।।
गुरु मन्तव्य श्रृंगी शरण चरण
युक्ति सुख संतान योग तब आई।।
दसरथ श्रृंगी शरणं याचना
सूर्यवंश भाग्य भविष्य अर्चना।।
श्रृंगी यज्ञ तप तब कीन्हा
त्रेता युग पावन भूमि अवध
नारायण अंश अवतरण
अवसर तब पाई।।
चैत्र मास शुक्ल पक्ष नवमी तिथि
पवन सुगंध कोटि देव संग पगटे
रघुराई।।
लीला बाल देखत हर्षित
कौसल्या माई विश्वामित्र
गुरु कि शस्त्र शास्त्र निपुनाई ।।
माया ने मति हरि लीन्हा
माया मंथरा प्रभु वन गमन
मार्ग दिखावत कैकेई माई।।
खंडित भय भ्रम संसय
ऋषि मुनि तप प्रताप
प्रभु दर्शन पाई।।
कुल्ल भिल्ल निषाद
सबरी सकल तरे चरण रघुराई
सुग्रीव मित्रता वाली वध
सुग्रीव राज सूत अंगद पाई।।
पंचवटी प्रवास मृग माया
मारीचि नाश छल कपटी
रावण कुटिलाई जगदम्बा हरण
प्रभु विषाद मोक्ष गिद्ध राज
जटायु पाई।।
सागर लांघे पवन सूत
बिभीषन मीत मिताई
वन अशोक सीता माई
हनुमान आशीष पाई।।
सेतु बांध तट रामेश्वर
ज्योतिर्लिंग शिव महिमा
गरिमा बड़ाई राम रावण
समर भयंकर दानव सकल
देव गति पाई अहंकार खंड खंड
जग जननी मुस्काई।।
राज्य अखंड विभीषण दीन्हा
सागर जल तिलक लगाई
पुष्पक धन्य राम चरण संग
लक्ष्मण सीता माई।।
पुलकित जन पुष्प वर्षाई
ढोल मृदंग वसुरी वीणा
बाजाई बाजाई साथ सिया
लखन भरत जस भाई
आएं अवध रघुराई।।
जामवंत नल नील अंगद
पवन पुत्र विजयी बानर सेना
तापस वेष विशेष सन्यासी
प्रभु धर्म द्वाजा फहराई।।
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीतांबर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।