अब हुए अपने अलविदा
मुसाफिर अपने हुए*
कितने आए
कितने चले गए
जिन्दगी की राहों पे
चलते चलते
मुसाफिर मिलते गए
किसी ने पूछा
हाल क्या है?
कैसे दिन चल रहे?
अच्छे तो हो |
फिर ऐसे लोग भी मिले
लेकिन कतराए निकल पड़े
इन्हे समय न था
दो चार बातों का
हाय हैलो का
जैसे जैसे दिन गुजरे
महसूस होने लगा
काफी दिन गुजर चुके
जिन्हें हमने अपनाया था |
अपनों जैसा
वे भी निकल पड़े
वे चल बसे |
जिन्दगी के अंतिमन मोड़ पे
सोचने पर मजबूर हो जाता
हम आए थे नंगे पाँव
अब नंगा जाना पड़ेगा
धन – दौलत शोहरत
शान-शौकत, ताकत
कुछ भी रहेगा नही
दम तोड़ते वक्त
सिर्फ एक शक्ति काम आयेगी
प्यार की, दूसरों को अपनाने की
जो थे कभी मुसाफिर
अब हुए अपने | अलविदा |