किसी को जब मारते है तो फोटो खींच कर नहीं रखते – कर्नल कुणाल भट्टाचार्य

” द वेक ” द्वारा राजस्थान कॉमर्स हाउस के सूचना केंद्र में एक गोष्ठी ” फिर दस्तक, विश्व युद्ध विभीषिका की” का आयोजन किया गया. कार्यक्रम का आरंभ द वेक के प्रबंध संपादक मनोज त्रिवेदी ने स्वागत भाषण देकर किया।
प्रधान वक्ता रिटायर्ड कर्नल कुणाल भट्टाचार्य ने कहा कि ” किसी को जब मारते है या कोर्ट में ले जाते है तो फोटो खींच कर नहीं रखते; जो प्रमाण मांगते है वो देश के साथ खड़े नहीं है । भारत युद्ध नहीं करता उसे बाध्य किया जाता है ऐसी स्थिति में भारत ने अपनी सुरक्षा के लिए कदम उठाया तो गलत क्या किया ।
विशिष्ट वक्ता पूर्व कमांडर इन नेवी, सत्यजीत राय ने कहा कि ” सारा विश्व, युद्ध की जकड़ में, हम इससे कैसे इनकार कर सकते है कि युद्ध नहीं चल रहा। फौजी कभी लड़ना नहीं चाहता लेकिन जो आराम से बैठे है उन्हें युद्ध चाहिए। वर्तमान परिदृश्य में युद्ध की परिभाषा बदल गई है अब लड़ाई खनिज पदार्थो और अपने उत्पादों को बेचने की है जैसे कि दवाईया और हथियार।
ओजस्वी वक्ता डॉक्टर फुआद हलीम, ने कहा ; युद्ध कई तरह के होते है कुछ युद्ध निरंतर चलते है जैसे कि भुखमरी का। पहले हमें भुखमरी से मुक्ति पाने का प्रयास करना चाहिए।
प्रसिद्ध शायर एवं उर्दू अखबार मर्सरीक के संपादक; साबिर हलीम : अमन पसंद कभी जंग नहीं चाहते, जंग से किसी को फायदा नहीं किन्तु झूठ -सच का प्रोपेगेंडा, लोगो को भ्रमित करता है। समझौते हमेशा झुक कर ही किये जाते है। समाज में कवि -शायर का अहम् रोल वो ही लोगो की मानसिकता को बदल सकते है।
भाजपा पार्षद ,विजय ओझा: आदिकाल से युद्ध चला आ रहा है , रामायण एवं महाभारत इसके उदाहरण है। युद्ध वजूद बचाने का ,संपत्ति का और विस्तारवादी मानसिकता को लेकर होते है। “क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो, ” इन पंक्तियों के साथ उन्होंने स्वयं को मजबूत बनाने पर जोर दिया।
रिटायर्ड जज, उत्तम कुमार शाह के अनुसार युद्ध के पीछे तीन कारण होते है ; जो देश खुद की बादशाहत कायम रखना चाहते है वे उभरते हुए देशों के प्रति ईर्ष्या रखते है , उनकी बाजारवाद नीति और दूसरे देशों की तरक्की को सहन नहीं कर पाना है.
कार्यक्रम के अध्यक्ष ताजा चैनल के डायरेक्टर एवं छपते – छपते हिंदी दैनिक के संपादक विशंभर नेवर ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा, ‘ युद्ध में हजारों जवान मारे जाते है उनकी मृत्यु पर बहुत से लोग शोक भी प्रकट नहीं करते क्योंकि उनके अनुसार सैनिक का मतलब शहादत है। जबकि इस मानसिकता के लोग भूल जाते है कि एक फौजी का भी परिवार होता है। उन्होंने टी आर पी के पीछे भागने वालों के ऊपर तंज कसते हुए कहा कि- ” भारत- पाक युद्ध ख़त्म अब ज्योति मल्होत्रा के पीछे है।”
धन्यवाद ज्ञापन सदीनामा पत्रिका के संपादक जितेन्द्र जितांशु ने देते हुए विश्व युद्ध के अनेक पहलुओं पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम में शुभ्रा त्रिवेदी , शौर्यांक, यास्मीन खान ने गीत प्रस्तुत किये।
द वेक की संपादिका शकुन त्रिवेदी ने कार्यक्रम का कुशलता पूर्वक संचालन करते हुए कवि साहिर लुधियानवी की कविता का उदाहरण दिया
” टैंक आगे बढ़े या पीछे हटें कोख धरती की बाँझ होती है, जश्न जीत का हो या हार का शोक, जिंदगी मय्यतों पे रोती है।।”
कार्यक्रम में उपस्थित थे सुशील पुरोहित, मीनाक्षी सांगनेरिया, फादर सुनील रोजेरिओ, नरेश शाह , श्रद्धा टिबरेवाल , आरती भारती, प्रदीप धानुक,शशि कांत उपाध्याय, विपुल सिंह आदि।
