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आपरेशन सिंदूर के साथ नेतृत्व भारत के हाथों हो सकेगा

प्रतिनिधिमंडल ने पाकिस्तान के साथ आतंक विरोधी वैश्विक युद्ध की भी आधारभूमि तैयार की

सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल की सातों टीमें विदेश यात्रा समाप्त कर लौट चुकी है। हमारे देश में ऐसे कदमों की हमेशा भूतकाल की घटनाओं से तुलना की जाती है। इसके बारे में भी सामान्य प्रतिक्रिया थी कि पहले भी विदेश में प्रतिनिधिमंडल भेजे गए हैं।

भारत छोड़िए, क्या आधुनिक विश्व के इतिहास में किसी देश ने एक साथ इतना बड़ा प्रतिनिधिमंडल 33 देश की यात्राओं पर इतने कम समय में अपने देश का पक्ष रखने के लिए भेजा था? वास्तव में केवल भारत नहीं संपूर्ण विश्व की दृष्टि से यह अभूतपूर्व कदम था। चूंकि कि हर मुद्दे व नीतियों की संकुचित राजनीतिक वैचारिक दृष्टि से मूल्यांकन करने का घातक चरित्र भारत में विकसित है इसलिए गहराई से सोचने का माद्दा धीरे-धीरे क्षीण हो रहा है।

इस कदम की भी देश के अंदर जितनी व्यापक आलोचना हुई वह सामने है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने तो इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 11 वर्षों की कूटनीति और विदेश नीति के मोर्चे पर विफलता का प्रतिबिंब बता दिया। किसी ने नहीं सोचा कि पाकिस्तान के दो समर्थक देशों को छोड़कर भारत के विरुद्ध दुनिया से एक स्वर नहीं आया। तो फिर विदेश में इतने बड़े कूटनीति का अभियान की आवश्यकता क्या थी?

आप पहलगाम हमले के बाद भारत की संपूर्ण प्रतिक्रियाओं और ऑपरेशन सिंदूर तथा उनसे जुड़ी हुई रक्षा व राजनयिक गतिविधियों , विदेश की प्रतिक्रियाओं तथा इस समय संपूर्ण विश्व की स्थितियों को एक साथ मिलाकर देखें तो निष्कर्ष वही नहीं आएगा जैसा हमारे देश में तात्कालिक तौर पर निकाला गया है।

मोदी सरकार विरोधी नेता विशेषकर कांग्रेस की पूरी बुद्धि इसमें लगी है कि ऑपरेशन सिंदूर में भारत की क्षति को सामने लाया जाए या लोगों के अंदर भाव पैदा किया जाए कि हमारा नुकसान बहुत ज्यादा हुआ। कोई भी युद्ध बगैर नुकसान के नहीं लड़ा जा सकता इतनी बात मोटी बुद्धि में भी आ जाएगी। मुख्य बात अपने संकल्प और प्राप्ति की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संकल्प साफ दिखता है -चाहे जितनी क्षति हो , कूटनीतिक ,रक्षा एवं आर्थिक मोर्चे पर संपूर्ण चुनौतियों का सामना करते हुए हर हाल में आतंकवाद से मुक्ति पाना है।

ऐसा अभूतपूर्व प्रतिनिधिमंडल इसलिए नहीं भेजा गया कि केवल पाकिस्तान के विरुद्ध औपरेशन सिंदूर कि कार्रवाई के बारे में दुनिया को बताना है। भारत का मत बिल्कुल स्पष्ट है, आतंकवाद की हर घटना युद्ध मानी जाएगी और प्रधानमंत्री ने साफ कर दिया है कि कि केवल आतंकवादियों की नहीं, सत्ता और सेना की कार्रवाई मानकर ही कदम उठेगा इसमें जिसको साथ देना है दे, नहीं देना है नहीं दे।

निश्चित रूप से दीर्घकालीन योजना बन चुकी है। सुनने में भले सामान्य लगे लेकिन यह बहुत बड़ा लक्ष्य है और इसके आयाम पाकिस्तान से निकलकर विश्वव्यापी हैं। विदेश गए प्रतिनिधिमंडल ने पाकिस्तान पर फोकस करते हुए उसकी आंतरिक कलह , आतंकवाद की वैश्विक स्थिति, जम्मू कश्मीर की संपूर्ण स्थिति, जिसमें पाक अधिकृत कश्मीर के भाग को चीन को दिया जाना भी शामिल है, रखा है। विश्व को बताया है कि अनेक देशों के आतंकवाद की जड़ पाकिस्तान में है और यह समाप्त नहीं हुआ है। भारत ने आतंकवाद पर अपना मत दंभी देशों के समक्ष रखा। स्वाभाविक ही प्रकारांतर से इसमें यह भी निहित है कि आतंकवाद विरोधी युद्ध पहले से ज्यादा कठिन और अपरिहार्य हो चुका है।

 

अमेरिकी नेतृत्व में नाटो और पश्चिमी देशों द्वारा आरंभ आतंकवाद विरोधी वैश्विक शुद्ध शर्मनाक रूप से विफल हो चुका है। स्वयं अमेरिका अफगानिस्तान से लेकर इराक, लीबिया, सीरिया ….से भाग चुका है। सीरिया में अमेरिका ने अपने ही द्वारा घोषित आतंकवादी को सत्ता कब्जाने में मदद की और वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप उससे हाथ मिलाने चले गए। परिणामत: आतंकवादी समूहों तथा उनको प्रश्रय देने वाले देशों का हौंसला बुलंद है , वे निर्भय हैं तथा पीड़ित देश डरे सहमे और किंकर्तव्यविमूढ़ हैं।

इसमें पाकिस्तान जैसे नाभिकीय संपन्न देश के विरुद्ध कार्रवाई तथा आर्थिक एवं कूटनीतिक घेरेबंदी विश्वव्यापी आतंकवाद विरोधी युद्ध का भारत के नेतृत्व में नये सिरे से आगे बढ़ाया जाना है। भारत ने 1996 से आतंकवाद की परिभाषा के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ में प्रस्ताव लपेश किया हुआ है। आतंकवाद के विरुद्ध बोलने वाले देश भी उसे पारित कर एक परिभाषा तय करने को तैयार नहीं। ये आतंकवाद को विश्व स्तर से समाप्त करने के लिए या हमारे लिए लड़ेंगे ऐसी कल्पना ही बेमानी है।

इसलिए भारत का लक्ष्य अपने आर्थिक व रक्षा क्षमताओं का विस्तार करते हुए आतंकवाद के वैश्विक केंद्र पाकिस्तान को इस स्थिति में लाना है जिससे भविष्य में वह इसे प्रायोजित करने की अवस्था में ही न रहे। आप देखेंगे पीओके यानी पाक अधिकृत कश्मीर पर केवल विपक्ष प्रश्न नहीं उठा रहा प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री, गृह मंत्री, विदेश मंत्री सब आक्रामक और मुखर वक्तव्य देकर उसे हासिल करने का संकल्प दोहरा रहे। यह भी बहुआयामी नीति है। इसमें पाकिस्तान के भौगोलिक और राजनीतिक विखंडन की गति को तेज करने की रणनीति शामिल दिखती है।

यानी इस समय पाकिस्तान जिस अवस्था में है इसके रहते हुए जम्मू कश्मीर की समस्या ही नहीं इस्लाम मजहब प्रेरित आतंकवाद का अंत संभव नहीं। तो जब प्रधानमंत्री ऑपरेशन सिंदूर को अखंड प्रतिज्ञा बताते हुए कहते हैं कि यह केवल स्थगित हुआ है, हमारी सेना के शीर्ष अधिकारी इसे जारी रखने की बात कहते हैं और रक्षा मंत्री इसे पूरी फिल्म का केवल ट्रेलर बताते हैं तो यह केवल लोगों की भावनाओं का दोहन नहीं है। गहराई से देखें तो ऑपरेशन सिंदूर का लक्ष्य अंग्रेजी में ‘नो मोर पाकिस्तान ‘ यानी पाकिस्तान का विखंडन या इसके भौगोलिक एवं वर्तमान राजनीतिक अस्तित्व को खत्म करना दिखेगा।

हमें इसमें अतिवादी सोच की गंध आ सकती है। थोड़ी गहराई से देखिए तो पाकिस्तान इस्लाम की जिस अतिवादी अवधारणा पर पैदा हुआ उसमें अंतर्निहित दोष हैं और इस कारण वह कभी पूरी तरह शांत , स्थिर और एकजुट देश नहीं बन सका । बलूचिस्तान, सिंध और खैबर पख्तूनख्वा में अहिंसक , हिंसक विखंडन अभियान चरम पर है । पीओके में भी पाकिस्तान के विरुद्ध असंतोष व्यापक है। हालांकि इन सबका मजहब इस्लाम है और इस नाते हम ऐसा नहीं मानते कि भारत के प्रति उनकी व्यापक सहानुभूति होगी।

किंतु बलूचिस्तान और काफी हद तक सिंध में हिंसक अहिंसक दोनों अभियान चलाने वाले भारत से मदद मांगते हैं। आप देखिए पिछले ढाई सालों में भारत में वांछित आतंकवादी, जिसे पाकिस्तान सौंपने को तैयार नहीं था, लगातार उसकी भूमि पर मारे जा रहे हैं और उसे समझ नहीं आ रहा कि कौन शक्तियां ऐसा कर रही है। इसके कुछ तो मायने हैं। वर्तमान फील्ड मार्शल जनरल आसिम मुनीर मोहम्मद साहब द्वारा स्थापित रियासत ए तैयबा के बाद पाकिस्तान को दूसरा शुद्ध इस्लाम यानी कलमा पर आधारित देश बताते हुए हिंदुओं सहित अन्य पंथों के विरुद्ध नफरत और हिंसा को प्रोत्साहित करने की रणनीति का दोहरा असर होगा। दूसरी ओर यह आचथण विद्रोह को भी आगे बढ़ाएगा।

1948 से अभी तक के अनुभव बताते हैं कि पाकिस्तान से किसी तरह के ईमानदार शांतिकारी कदमों को क्रियान्वित करने की उम्मीद आत्मघाती ही साबित होगा। इसलिए मोदी सरकार की मानसिकता प्रधानमंत्री के ही वक्तव्य से बिल्कुल स्पष्ट दिखाई पड़ती है। अगर विपक्ष या किसी को इसमें संदेह है तो समस्या उनकी है। भारत उस मानसिकता और व्यवहार से निकल कर आगे बढ़ चुका है, विपक्ष और मोदी सरकार विरोधी अभी तक उसी सीमित परिधि में सोचते तथा व्यवहार करते हैं।

वे कल्पना ही नहीं कर सकते कि भारत विश्व स्तर पर नए सिरे से आतंकवाद विरोधी युद्ध के नेतृत्व के लिए अपनी क्षमताओं का ध्यान रखते हुए भी अग्रसर हो चुका है और यह रास्ता न केवल पाकिस्तान और चीन के साथ समस्याओं के स्थायी समाधान का मार्ग प्रशस्त करेगा, भारत की एकता अखंडता को सुरक्षित करेगा तथा भारतीय सोच के अनुसार नई विश्व व्यवस्था निर्धारित होने की आधारभूमि बनेगी।

भारत को बाह्य समस्याओं से मुक्त करते हुए जब बिना घोषणा किये विश्व का नेतृत्व करने तथा भारी संख्या में देशों को अपने साथ लाने के व्यापक कल्पनातीत लक्ष्य पर अग्रसर हों तो किसी देश के नेतृत्व द्वारा दिये प्रतिकूल वक्तव्य पर भी त्वरित उग्र प्रतिक्रिया नहीं देते। इतने बड़े लक्ष्य के लिए देश को भी काफी कुछ परित्याग के लिए तैयार रहना होगा।

 

 

 

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