आपिस (ऑफिस)
घर – बाहर की समस्याओं से संघर्ष करने की कहानी
- महिला सशक्तिकरण, सुनते ही ” या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता” लक्ष्मी रूपेण संस्थिता ” जैसे श्लोक दिमाग में गूंजने लगते है.
महिला किसी जॉब में है तो घर से लेकर बाहर तक सभी को लगता है कि महिलाओं के लिए जॉब करना कितना आसान है ऊपर से प्रत्येक महीने आने वाली आमदनी उनके जीवन स्तर को बढ़ाने के साथ -साथ उनके व्यक्तित्व में एक अलग सी चमक देती है। जबकि किसी भी आत्मनिर्भर नारी के लिए आवश्यक है एक घरेलु सहायक की जो उसके बच्चे और घर को सम्हाल कर उसे ऑफिस के काम करने के लिए स्वतंत्र रखे।
निर्देशक अभिजीत गुहा और सुदेशना राय द्वारा निर्देशित बांग्ला फिल्म ” आपिस” (ऑफिस) स्त्री संघर्ष की कहानी है। एक पढ़ी -लिखी महिला जो बड़ी कंपनी में काम करती है,
जिसकी दिनचर्या में आये दिन आयोजित होने वाली पार्टियां, मीटिंग्स, वर्क प्रेशर ऊपर से घरेलू सहायिका की निजी जिंदगी की उलझने जो अक्सर उसे छुट्टी लेने पर मजबूर करती है। इन सभी झंझावतों से टूटती -जूझती हुई कामकाजी महिला की कहानी .
घर और बाहर की जिंदगी में ताल -मेल मिलाती, समस्याओं के समाधान ढूंढती, अपने सपनों को बिखरते देखती आदि ऐसी न जाने कितनी विवशताएं एक स्त्री के जीवन में आती है जिन्हे “आपिस: फिल्म में बखूबी दिखाया गया है। दूसरी और पुरुषों का अहम् , बुरी संगत में बहकना और अपने अनुसार जीवन जीने की आदत का भी चित्रण बहुत ही सजीवता से किया गया है। यहाँ तक की घरों के लिए घरेलू सहायक उपलब्ध कराने वाली एजेंसियों की छोटी सी भूमिका भी बहुत कुछ कह जाती है।
सब कुल मिला कर एक साफ -सुथरी सामाजिक विषय पर आधारित फिल्म है। इस फिल्म में बड़े से लेकर छोटे कलाकार तक ने अपनी भूमिका से न्याय किया है किन्तु घरेलु सहायिका और उसके पति ने अपनी भूमिका से दर्शकों को काफी प्रभावित किया है. फिल्म की नायिका भी अपने रोल से दर्शकों के दिलों पर एक कामकाजी महिला के जीवन की उथल -पुथल की अमिट छाप छोड़ती है। निर्देशन कुछेक दृश्यों को छोड़कर प्रभावी है। एक अच्छी फिल्म जिसे परिवार के साथ देखा जा सकता है।

– Shakun Trivedi