*हिंदी को अखिल भारतीय स्वरूप प्रदान करने में बंगाल का स्थान सर्वोपरि – डॉ. तारा दूगड़*

कोलकाता : 12 नवम्बर। ‘हिन्दी के प्रयोग, प्रचार और प्रसार को अखिल भारतीय रूप देने में तथा प्रारंभ से लेकर एम.ए तक हिन्दी भाषा साहित्य के पठन पाठन की व्यवस्था करने में बंगाल का स्थान सर्वोपर रहा है।
भारतीय नवजागरण के प्रणेता राजा राममोहन राय, जस्टिस शारदा चरण मित्र, भूदेव मुखर्जी, क्षिति मोहन सेन, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, आचार्य केशव चंद्र सेन, बंकिमचन्द्र चटर्जी, स्वामी विवेकानन्द जैसे बांग्ला विद्वानों ने हिंदी भाषा की अनिवार्यता को स्वीकारा एवं उसके विकास में योगदान दिया। बंगाल हिंदी के सबसे पहले समाचार पत्र उदन्त मार्तण्ड, विशाल भारत, सुधावर्षण, मतवाला, विश्वभारती जैसे पत्रों की जन्मभूमि रहा है।
हिंदी साहित्य के विकास में बंगाल की भूमिका उस स्रोतश्विनी के समान है जिसने अपने बौद्धिक चिंतन एवम् राष्ट्र सेवा के जल से सींच सींच कर इसे पल्लवित पुष्पित किया है। हिन्दी और बांग्ला का संपर्क जन्म से ही नहीं कर्म से भी जुड़ा हुआ है। दोनों का उत्स अपभ्रंश एवं संस्कृत है।’– ये उद्गार हैं तारादेवी हरखचन्द कांकरिया जैन कालेज की प्राध्यापिका एवं कुमारसभा पुस्तकालय की साहित्य मंत्री डॉ. तारा दूगड़ के, जो काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के भोजपुरी अध्ययन केंद्र द्वारा सोमवार को राहुल सभागार में *हिन्दी और बांग्ला का अंतर्संबंध* विषय पर आयोजित “बतकही” में बतौर प्रधान वक्ता बोल रही थी।
डॉ. तारा दूगड़ ने कहा कि बंगाल के जस्टिस शारदा चरण मित्र ने हिन्दी को समस्त आर्यावर्त की भाषा माना। भारत में पाश्चात्य ज्ञान, तकनीक एवं विज्ञान का प्रवेश बंगीय गवाक्ष से हुआ। आजीविका के लिए पश्चिमोत्तर प्रदेश से बहुत से लोग बंगाल आए। हिन्दी साहित्य के बहुत से विशिष्ट साहित्यकारों ने बंगाल की धरती से अपनी रचना यात्रा को आगे बढ़ाया और वे लोग आगे चलकर हिन्दी साहित्याकाश के चमकते सितारे बन गए। उसमें पं. गोविंद नारायण मिश्र, निराला, पं. हज़ारी प्रसाद द्विवेदी, पं. बाल मुकुंद गुप्त, आचार्य कल्याण मल लोढा, आचार्य विष्णुकांत शास्त्री, पं. कृष्ण बिहारी मिश्र आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।
बहुत से बांग्ला भाषी लोग हिन्दी प्रभावी क्षेत्रों में गए, वहाँ हिंदी सीखी, हिंदी बोली। उन्होंने अपने भाषण में कहा कि भाषा के विकास, विस्तार व संवर्द्धन में भोजपुरी अध्ययन केंद्र अपने दायित्व के प्रति जागरूक है, मैं उनका अभिवादन करती हूँ।
कार्यक्रम के प्रारंभ में डॉ. दूगड़ ने मालवीय जी की मूर्ति पर पुष्पहार अर्पित कर अपनी श्रद्धा समर्पित की। तत्पश्चात भोजपुरी अध्ययन केंद्र के समन्वयक और कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रोफ़ेसर प्रभाकर सिंह ने अंग वस्त्र एवं साहित्य भेंट कर डॉ. दूगड़ का अभिनंदन किया।
कार्यक्रम का कुशल संचालन वरिष्ठ शोधार्थी सुश्री शिखा सिंह ने किया। ध्यातव्य है कि डॉ. दूगड़ कल शाम को वाराणसी से कोलकाता लौटी है। कार्यक्रम में एम.ए. एवं शोधार्थी छात्रों से सभाकक्ष भरा हुआ था।
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