हे कांहा–
हे कान्हा केशव माधव
मधुसूदन युग मे जाने
कितने नाम तुम्हारे।।
आएं है ज़िंदगी मे
जबसे तुम्ही बसे
हर गम खुशी
पल प्रहर में
संग साथ हमारे।।
हे कान्हा केशव माधव
मधुसूदन युग मे जाने
कितने नाम तुम्हारे।।
पुकारे जब भी
कोई हृदय से
आए दौड़े
सांझ सवेरे।
समय का कोई
नही है बंधन
प्रेम भाव ही है
तेरा एक बंधन
बांध सके जो
उसको तारे।।
हे कान्हा केशव माधव
मधुसूदन युग मे जाने
कितने नाम तुम्हारे।।
सांसे धड़कनो से
नित निरंतर
शब्द स्वरों के
साथ हमारे
श्री कृष्ण गोविंन्द
हरे मुरारे ।।
हे कान्हा केशव माधव
मधुसूदन युग मे जाने
कितने नाम तुम्हारे।।
मातु पिता गुरु
सखा हमारे
हे नाथ नारायण वासुदेव
कुरुक्षेत्र है यह जीवन
नयन दृष्टि है तुम्हारे।।
कर्म धर्म का
मार्ग बताते
जन्म जीवन
रहस्य सुनाते
तमस मार्ग
जीवन में तुम्ही
बनते पथ उजियारे।।
हे कान्हा केशव माधव
मधुसूदन युग मे
जाने कितने
नाम तुम्हारे ।।
जब भी नईया
उलझे भव सागर भँबर में
तुम्ही एक जो पार लगाते।।
हे कान्हा केशव माधव
मधुसूदन युग मे जाने
कितने नाम तुम्हारे।।
अधरम् मधुरम
वचन मधुरम
नयनयम मधुरम
हसितं मधुरम
मधुराधिपते
रखिलं मधुरम
मधुर मनोहर
भाव छवि तुम्हारे।।
हे कान्हा केशव माधव
मधुसूदन युग मे जाने
कितने नाम तुम्हारे।।