मोबाईल से पोर्न फिल्म, वीडियो हटवा दीजिये – आपकी नन्हीं

मेरी उम्र तीन साल बोलना भी नही जानती ठीक से। तुतला कर बात समझाती हूं नही कोई समझे तो रूष्ट हो जाती हूं
मनाने पर दुलराने पर मान जाती हूं, एक चाकलेट पाकर जहां चाहो चली जाती हूं। उसी चाकलेट से मुझे बहलाया था अपनी गंदी हरकत का शिकार बनाया था।
मैं पांच साल की हूं स्कूल जाती हूं, बच्चों के संग घुल मिल कर रहती हूं। टीचर भी अच्छी है, भैया भी अच्छे है
भैया भी अच्छे है अपनी बदनीयती का खेल वे खेले है। अब मैं स्कूल जाने से डरती हूं, सहमी सहमी सी रहती हूं।
मैं 10 वर्ष की। मेरी बाल सुलभ किलकारी पर मेरे मम्मी -पापा बल -बल जाते, अड़ोसी पड़ोसी भी प्यार करते नहीं अघाते। उन्ही में से थे एक जिनको कहती थी मैं अंकल वो मुझसे करते गंदी गंदी हरकत।
मै 14 साल की हूं, मैने कभी भी अंग प्रदर्शन वाले भौड़े कपड़े नही पहने। मै अपने दोस्तो के घर भी नही जाती। स्कूल से घर, घर से ट्यूशन और फिर घर। यही मेरा रूटीन था। किंतु एक दिन एक गाड़ी एकदम करीब आकर रूकी, गाड़ी में खींचा और लेकर गई कराने जहन्नुम की सैर। बाद में मुझे मरा जान कर फेंक दिया एक निर्जन स्थान पर.
क्या मुझे समाज के जिम्मेदार नागरिक, समाज के रक्षक, ठेकेदार बताएंगे कि हम बच्चों की क्या गलती थी जो हमारे साथ इतना घिनौना काम किया गया। हमने तो किसी के साथ प्यार का नाटक नहीं खेला, किसी को धोखा नहीं दिया। किसी की वासना जगाने के लिए उत्तेजक कपडे नहीं पहने, अभद्र व्यवहार नहीं किया। किसी के यहाँ देर रात पार्टी में नहीं गए। किसी की बाइक या कार में बैठ कर उसके साथ लुभावनी बातें नहीं की। हमें तो ये भी पता नहीं कि दुनियां और दुनियादारी होती क्या है.
आजकल बहुत शोर चल रहा है कि बेटी को नाचना नहीं तलवार चलाना सिखाओं। उसे आत्म रक्षा कैसे करनी है ये बताओं। लेकिन मेरे नन्हे हाथों से दूध का गिलास तो संभलता नहीं। कब सोना है कब जागना ये भी बताना आता नहीं। नहाने -धोने जैसे कामों के लिए भी मम्मी पर निर्भर हूँ। अब आप ही बताये हम ६ महीने से लेकर ५ वर्ष तक की बच्चियों को अपनी सुरक्षा कैसे करनी है।
मेरे माता- पिता मेरी सुरक्षा के लिए अच्छे से अच्छे स्कूल में एडमीशन दिलाते है। भारी -भरकम फ़ीस को भरने के लिए खुद मशीन बन जाते है। इसके बाद भी स्कूल में अगर मै सुरक्षित नहीं तो मेरी सुरक्षा की जिम्मेदारी कौन लेगा।
कहने को तो बड़े – बड़े कानून है , लेकिन अपराधियों में नहीं इनका कोई खौफ है। ऐसे आपराधिक मानसिकताओं वालों के पाशविक कृत्यों से हमे कौन बचायेगा।
कहते है कानून के हाथ बहुत लम्बे है , खोज के अपराधी को निकाल ही लेते है लेकिन जहाँ अपराधियों की पहुंच ऊपर आलाकमान तक हो वहां अपराध निर्वाध होते है। अपराधी खुद को स्वंभू समझ लेते है। कानून भी बदल जाते है, न्यायिक फैसले भी कुछ और हो जाते है. पीड़ित परिवार और पीड़िता अकेले पड़ जाते है और समाज की नजर में गुनहगार कहलाते है।
कानून बनाने वाले अंकल, समाज में अपनी अकड़ और पकड़ रखने वाले भैया, आपसे मेरी एक ही विनती है की आप कानून कड़े करे या नहीं किन्तु सारे फसाद की जड़ पोर्न फिल्म ,मोबाईल से हटवा दीजिये। अश्लीलता के बाजार को बंद करवा दीजिये। मेरे जैसी नन्ही – मुन्नियां भी सुरक्षित हो जाएगी। स्कूल -कालेज जाने वाली दीदियां भी शांति से पढ़ पायेगी।
विनती के साथ आपकी नन्हीं

– शकुन त्रिवेदी