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ये मोहल्ला जी रहा है इन दिनों फाकाकशी

18.12.2004

भीड़ खुश होकर बजाए जा रही है तालिया

कल के दोनों खलनायकों के पिता आज विद्यालय आये। एक लड़के ने तो अपने पिता के कहने के बावजूद अपनी ग़लती मानने और क्षमा माँगने से इन्कार कर दिया, दूसरे ने ज़रूर क्षमा-याचना कर ली। इन दिनों सुरेन्द्र वर्मा के उपन्यास ‘‘दो मुर्दों के लिये गुलदस्ता’’ के पृष्ठ पुनः पलट रहा हूँ। उसमें एक सूक्ति-वाक्य है – सामाजिक ढाँचा बनाये रखने के लिये अपराधी को सज़ा देना ज़रूरी है, चाहे अपराध कैसी भी विवशता में किया गया हो और अपराधी में दूसरे कैसे भी गुण हो!

…….. कल सांयकाल (बल्कि देर रात कहना चाहिए) आलोक और मधु आकर पर्याप्त समय तक बैठे रहे। मधु भगवानदास जी रस्तोगी के यहाँ लिया गया स्वर्णहार दीपा को दे गई। उसके साथ रखे पर्चे से ज्ञात हुआ कि उसकी क़ीमत 8100/- रु० है जबकि मैं पहले 6000/- रु० समझ रहा था। ………. विद्यालय से लौटते ही राजन के घर गया था। नगर के सम्भ्रान्तजनों का एक विराट् समुदाय वहाँ उपस्थित था। रमेशचन्द्र जी त्रिपाठी और आर. सी. सक्सेना जी तथा ब्रजकिशोर से बात हो गई है, कल शाम 5 बजे मेरे आवास पर महादेवी स्मृति-पीठ की ओर से स्व० माहेश्वरी जी के लिये श्रद्धांजलि-गोष्ठी हो जायेगी। ………… गोष्ठी से पूर्व पांचाल-पर्व से जुड़ी बैठक होगी, उसके लिये आलोक से भी कह दिया है। ………. चिक्कू के साथ अन्य सात युवकों ने भी इसी बैंक में इसी पोस्ट पर नियुक्ति प्राप्त की थी। लक्ष्य पूरा न हो सकने के कारण पाँच लोगों को तो हटा ही दिया गया है, इन लोगों पर भी ख़तरा मँडरा रहा है। ………

ब्रजकिशोर बता रहे थे कि कंचन जी रविवार को हिन्दी भवन में साहित्यकार संसद की बैठक कर रहे हैं, कई साहित्यकारों के चित्र हिन्दी-भवन में लगाने की योजना बना रहे हैं।

 

20.12.2004

1. दोनों अशिष्ट बच्चे आज प्रातः विद्यालय में आये यद्यपि उनकी परीक्षा नहीं थी। पर्याप्त अनुशासित और विनीत प्रतीत हो रहे थे। क्षमा माँगी।

2. मैंने उन्हें आश्वस्त किया और कहा कि गुरुजनों का क्रोध तो पानी पर खिंची लकीर जैसा होता है। तुम्हारा जितना हित संभव हो सकेगा मैं करूँगा।

3. अभी इस महीने के वेतन का बिल पास नहीं हो सका है, दो-तीन दिन में शीतावकाश हो जायेगा।

4. कल शरद कटियार का फ़ोन आया था, ‘‘यूथ इण्डिया’’ के अंक की लोकार्पण गोष्ठी 24 दिसम्बर को सम्पन्न होगी।

5. ‘‘साहित्यकार-संसद’’ की बैठक में जाते हुए भी ओमप्रकाश दुबे पर्याप्त देर घर पे बैठे रहे, बच्चे की जन्मकुण्डली दे गये।

6. सर्वश्री रमेशचन्द्र त्रिपाठी, आलोक गौड़, आर. सी. सक्सेना, ब्रजकिशोर सिंह के साथ कल शाम बैठना हुआ, पहले पांचाल-पर्व के बारे में विचार-विमर्श हुआ, फिर राजन के पिताजी के सन्दर्भ में श्रद्धांजलि-गोष्ठी हुई।

7. तदुपरान्त हम लोग राजन के आवास पर गये। वहाँ ‘‘गरुड़पुराण’’ का पाठ चल रहा था।

8. डॉ० रामकृष्ण राजपूत ने फ़र्रुख़ाबाद महोत्सव की स्थिति धीरे-धीरे पर्याप्त सुदृढ़ कर ली है, पांचाल-पर्व के साथ ऐसा नहीं हो सका!

ग़ज़ल

दीमकों के नाम हैं बंसीवटों की डालियाँ,

नागफनियों की कनीज़ें हैं यहाँ शेफालियाँ।

छोड़कर सर के दुपट्टे को किसी दरगाह में,

आ गई हैं बदचलन बाज़ार में कव्वालियाँ।

गाँठ की पूँजी निछावर विश्व पे कर बेहिचक,

गीत ने ख़ुद अपने हिस्से में लिखी कंगालियाँ।

पूज्य हैं पठनीय हैं पर आज प्रासंगिक नहीं,

सोरठे सिद्धान्त के आदर्श की अर्द्धालियाँ।

ये मोहल्ला जी रहा है इन दिनों फ़ाक़ाकशी

इस मोहल्ले को मल्हारें लग रही हैं गालियाँ।

घोंप ली भूखे जमूरे ने छुरी ही पेट में,

भीड़ ख़ुश होकर बजाये जा रही है तालियाँ।

संकलन: प्रीति गंगवार, फरुखाबाद, उत्तरप्रदेश

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