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राम जाने क्या भविष्यत् है हमारे बाग़ का

चम्बली हर फूल है तो नक्सली है हर कली

सूर्य कुमार पाण्डेय ने 02 जनवरी के खादी ग्रामोद्योग के लिये कार्यक्रम का ज़िक्र किया था, उसका औपचारिक पत्र आया है। किन्तु अभी यह आमन्त्रण नहीं है, अर्थ-राशि आदि के विषय में जानकारी के लिये आया पत्र है।
2. 25 दिसम्बर के लिये इटावा से आये औपचारिक पत्र के उत्तर में मैंने 7000/- रु० (सात हज़ार रुपये) की अर्थ-राशि की अपेक्षा लिख दी थी। आज प्रातः कमलेश शर्मा का फ़ोन आया। अब वह भी इस आयोजन से सम्बद्ध हैं।
3. उसे पता था कि मैंने पत्र में क्या लिखा है। मुख्य आयोजक से बात करके उसने तुरन्त फ़ोन करने को कहा था। किन्तु फिर उसका फ़ोन मेरे विद्यालय चलने के समय तक आया नहीं था।
4. शरद कटियार कल भेंट करने आये थे। उनसे कार्यक्रम की रूपरेखा की विवेचना की।
5. विद्यालय में इन दिनों ‘‘एक ओंकार सतनाम’’ लेकर आया हूँ, इस प्रवचनमाला के कैसेट तो सुने हैं, पुस्तक पहली बार पढ़ रहा हूँ।
6. फाल्गुनी पूर्णिमा इस बार 25 मार्च को पड़ेगी। श्री रमेश तिवारी विराम तथा प्रमोद तिवारी जी को आमन्त्रित कर चुका हूँ।

05.01.2005
1. विद्यालय शीतकालीन अवकाश के उपरान्त आज तक खुला किन्तु फिर त्रिगुणायत जी गुरु गोविन्द सिंह के प्रकाशोत्सव का अवकाश कर चले गये।
2. उधर नरेन्द्र सिंह जी यादव ने कहा कि राजकीय बालक और बालिका-विद्यालय खुले हुए हैं अतः मैं अवकाश घोषित नहीं कर सकता, उनके आदेश पर घण्टा पुनः टँग गया।
3. अध्यापकगण 03ः30 बजे तक विद्यालय में बिना किसी काम के बैठे हुए हैं, यह श्रीमती अध्यक्ष महोदया के आतंक का परिणाम है।
4. पिछले दिनों उन्होंने आधे घण्टे पूर्व छुट्टी हो जाने पर सभी अध्यापकों का एक दिन का वेतन काटने की मनःस्थिति बना ली थी।
5. अभी नवम्बर के वेतन बिल पर ही हस्ताक्षर नहीं हुए हैं।
6. वार्ता-प्रसंग में आज मैंने अध्यापकों का वेतन न मिल पाने के कारण की ओर इंगित करते हुए कहा –
जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी,
सो नृप अवसि नरक अधिकारी।
7. इटावा-प्रदर्शनी के कवि-सम्मेलन के संस्मरण सुनाये।
8. आज पैक्सफेड की तरफ़ से एक ठेकेदार तिवारी जी विद्यालय के सभाकक्ष में होने वाली मरम्मत के सन्दर्भ में बात करने आये।
9. कल शायद जूनियर इंजीनियर सचान साहब भी आये।
10. संभवतः दुबे जी से किया गया अनुरोध रंग ला रहा है।

ग़ज़ल

बेतरह आहत रही ये अक्षरों वाली गली,
पर सदा अक्षत रखी है गीत की गंगाजली।
सूर कह लो मीर कह लो या निराला या जिगर,
हर ज़ुबां में जी रही है दर्द की वंशावली।
इस नगर में कौन बाँचे सतसई सौन्दर्य की,
ये नगर हल कर रहा है भूख की प्रश्नावली।
राम जाने क्या भविष्यत् है हमारे बाग़ का,
चम्बली हर फूल है तो नक्सली है हर कली।

 

संकलन : प्रीति गंगवार , फरुखाबाद ( उत्तर प्रदेश )

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