08.01.2005
मानस का स्वाध्याय रही माँ, श्रद्धा का पर्याय रही माँ – डॉ शिव ओम अम्बर
1. आज सुबह जयपुर से संजू का आगमन हुआ, गीतू की शादी के बाद ये यह उसका दूसरा चक्कर है, दिसम्बर में भी आया था।
2. मित्रों की यात्रा-कथाएँ –
कमलेश शर्मा अपनी पत्नी के साथ गाड़ी में किसी विवाह-समारोह से वापस किशनी आ रहे थे। राहज़नी में आभूषणादि के रूप में लगभग एक लाख रुपये की लूट हो गई। इतना ही उन्होंने अब तक कवि-सम्मेलनों में प्राप्त किया गया होगा।
अशोक चक्रधर को ‘‘वाह-वाह’’ से असम्मानपूर्ण ढंग से अलग हटना पड़ा। इससे पूर्व जामिया मिलिया विश्वविद्यालय की हिन्दी विभाग के रीडर पद वाली उनकी नौकरी भी छूटी।
3. कल कुमार विश्वास ने शुभकामना का फ़ोन किया। उस समय मैं घर पर नहीं था। विद्यालय से आकर मैंने ख़ुद मोबाइल पर बात की।
4. कुमार से पता चला कि अशोक जी के ‘‘वाह-वाह’’ से हटने के पीछे उसकी टी. आर. पी. का कम हो जाना भी था और एक दिन मुम्बई में चैनल के मालिक़ के साथ एक प्रतिष्ठित कवयित्री की बातचीत भी थी।
5. वारुणी की मादकता में कवयित्री ने अशोक चक्रधर के कार्यक्रम के सन्दर्भ में कटुतापूर्ण नकारात्मक टिप्पणी की और कदाचित् प्रतिकूल नक्षत्रों के चलते वह प्रभावी सिद्ध हुई।
10.01.2005
1. नत्थूसिंह जी ने बताया कि कल वह विजय सिंह जी के बुलावे पर यादव साहब को साथ लेकर उनसे भेंट करने गये थे।
2. सुना है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय से कोई प्रतिकूल सूचना त्रिगुणायत जी को प्राप्त हुई है, अब नरेन्द्र सिंह जी का मार्ग प्रशस्त हो रहा है।
3. त्रिगुणायत जी आज विद्यालय नहीं आये, यादव साहब की कोशिशों से विद्यालय की व्यवस्था में सुधार परिलक्षित हो रहा है।
4. सोलंकी फिलहाल आसन्न चुनाव में लालाराम दुबे जी के लिये भागदौड़ करने के कारण विद्यालय नहीं आ रहे हैं।
5. मैं आराम-आराम से उत्तर-पुस्तिकाएँ जाँच रहा हूँ।
6. परसों से विद्यालय के हिन्दी भवन में काम लगा हुआ है, छत से पानी के निकलने की व्यवस्था की जा रही है, फ़र्श के क्षतिग्रस्त हिस्से को दोबारा बनाया जा रहा है।
7. परसों रमेशचन्द्र जी त्रिपाठी के यहाँ मेज़र सुनीलदत्त के साथ पांचाल-पर्व के सम्बन्ध में बैठक हुई, उसे जारी रखने का निर्णय हुआ।
ग़ज़ल
मानस का स्वाध्याय रही माँ,
श्रद्धा का पर्याय रही माँ।
संध्या तुलसी पे सँझवाती,
प्रातः नमः शिवाय रही माँ।
विघ्नों को प्रशमित करने के,
सौ-सौ सिद्ध उपाय रही माँ।
आशीषों मंगल-वचनों का,
सम्मूर्तित समुदाय रही माँ।
पैबन्दों में भी मुसकाती,
गरिमा का अध्याय रही माँ।
पुष्ट रहे घर भर, चिन्ता में –
आजीवन कृशकाय रही माँ।