भारतवर्ष में क्रिसमस त्योहार *
कहा जाता है बंगाल को – यहाँ बारह महीने में तेरह उत्सव मनाए जाते हैं | अर्थात बंगाल में उत्सव मनाने की एक परम्परा बहुत सालों से जारी है |यहाँ ‘सर्व धर्म सम्भाव’ का सिलसिला सुदृढ़ और सशक्त है |
क्रिसमस उत्सव मनाने का जिक्र जब होता तो यहाँ के लोग कई दिनों से एवं कई दिनों तक इस उत्सव को आपसी मिलनऔर आपसी भाईचारे के भाव से मनाते है |यह हमारे लिए एक गर्व का बिषय है |
क्रिसमस मनाने के मूल में ‘ईसा मसीह’ के जन्म से है| बाइबल कहता है “आदि में शब्द था और शब्द शरीर बना”(योहन१) अर्थात वह शरीर,ईश्वर द्वारा भेजा प्रभु ईसा मसीह रहे| ईसा मसीह का पदार्पन २००० वर्ष पूर्व हुआ, वे इस जगत में “पापों से मुक्ति” दिलाने आये| ईश्वर ने मनुष्य को अपने ही प्रतिरूप बनाया, जैसा कि हम बाइबल के पहले ग्रन्थ आदि पुस्तक में पाते है| लेकिन हमारे पहले पुरखों ने (आदम और हवा) ईश्वर की आज्ञा के विरूद्ध पाप किया – वह था अहंकार का पाप और ईश्वर की आज्ञा के उलंघन का पाप, जिसे आदि पाप की संज्ञा दी गईं है|उसी आदि पाप के कलंक को मिटाने प्रभु ईसा मसीह ने अपने जीवन के कर्मो से, त्याग तपस्या और सेवाभाव द्वारा और अन्तत: क्रूस पर अपनी जान देकर मनुष्य जाति को मुक्ति दिलाई |
इसलिए क्रिसमस उत्सव मनाने का एकमात्र मकसद है – ईसा मसीह द्वारा मनुष्यों को पापों से मुक्ति या छुटकारा देना है|कुछ लोगों की धारना है कि क्रिसमस का उत्सव “मौज मस्ती” का उत्सव है| ऐसी बात नही| जब कभी किसी भी धर्म में, साल भर धार्मिक उत्सव मनाया जाता है, सभी इसमें शामिल होते है|सभी मौज मस्ती भी करते है|लेकिन सिर्फ यही उत्सव मनाने का अर्थ नहीं होता|
हम क्रिसमस का त्योहार इसलिए मनाते है कि हमारे विचार शुद्ध हों, हम अपने मन, दिल – दिमाग को चंगा करे, हम दूसरों की सेवा में अपने को न्योछावर करें, हममे अधिक से अधिक त्याग और उत्सर्ग के भाव पनपे, हम खुद की चिन्ता न करें बल्कि उन लोगों के बारे मे सोचे जो समाज में अपने अधिकारों से वंचित हैं, जो अन्याय सहते है, जिन की ताकत नहीं के बराबर हो|बाइबल में,संत मत्ती के सुसमाचार के २५वें अध्याय में हमे शिक्षा दी गई, कैसे हम उन लोगों में जाएँ जो भूखे-प्यासें है, जो दरिद्र है, बंदी है, अस्पतालों में विमारी से लड़ रहे है – ऐसा करने से हम मुक्ति पा सकते है|यही शिक्षा हमने पाया है, ईसा मसीह से|
अब तो क्रिसमस मनाने का दौर भारतीय संस्कृति का एक अंग बन गया है | सभी धर्म के विश्वासीगण ईसा मसीह की श्रद्धा करते, उनकी अराधना करते अपने घरों को फूल,मोमबत्ती और मालाओं से सजाते हैं |हमारे देश की परम्परा में ‘अनेकता में एकता’ समाहित है| कोई भी धर्म हमें एक दूसरे से अलग नही करता लेकिन धर्म के मूल भाव, धर्म के आदर्श और मूल्यबोध हमें एक दुसरे से जोड़ता है|इसलिए हमे ईसा मसीह के जन्मोत्सव का आनंद लेना चाहिए|ईसा मसीह को अपने हृदयों में स्थान दें| उन्हें अपनाने में हमारे अन्दर’अहं ब्रम्हािस्म’ के परम् आनन्द और शांति का अनुभव होगा | ईसा मसीह सिर्फ क्रिसतीय समुदाय का उत्सव नहीं बल्कि सारे जहाँ का उत्सव है | ‘ईश्वर हमारे अन्दर निवास करते है, इसका अहसास हम सबों को हो|’
यही हमारी शुभ कामना है मनुष्यजाति के लिए | हम खुश रहें ईश्वर में आनन्द मनाएँ |
फादर सुनील रोजारिओ
कलकत्ता महाधर्मप्रान्त के पुरोहित और सर्वधर्म सम्भाव – संप्रीति सेवक
२३ दिसम्बर, २०२४