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जब राम जागते अंतर्मन मन में तब स्वार्थ नष्ट हो जाता है
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विरहा की बेला में भी जब
विश्वास ना कोई हर पाता है
प्रेम सिद्ध तब हो पाता है
जब स्वार्थ नष्ट हो जाता है
विषम परिस्थिति भारी हों
बाधाएं कोटि हमारी हों
प्रतिकूल तरंगों में ही तो
कौशल नवीन उठ पाता है
परमार्थ जागता है जब तुझमें
तब स्वार्थ नष्ट हो जाता है
क्रोधाग्नि जब भी ज्वलन्त हुईं
मर्यादाएं भंग अनन्त हुईं
मर्यादा में तब रहकर ईश्वर
उत्कृष्ट चरित्र दिखलाता है
जब राम जागते अन्तर्मन में
तब स्वार्थ नष्ट हो जाता है