बिलोक इक क्षण मुझको कन्हाई
देख मैं गोपी बन हूँ आयी
जीवन बहुत मैंने भेस बदले
अब असल भेस में आई
बिलोक इक क्षण मुझको कन्हाई……
बजा तोरी बंसी मधुर
नाचूँ बंध मैं बाके ही सुर
तू न आया मोरे घर तो
देख मैं ही तोरे घर हूँ आई
तोहे कष्ट न करना पड़ेगो
माखन मैं तोरे अँगने हूँ लाई
बिलोक इक क्षण मुझको कन्हाई……..
कर ले तू कितना भी तंग
होगो न तोसे ये मोह भंग
हर श्वास प्रीत तोसे बढ़ाई
प्रेम ये क्षण भर को नाहीं
तूने ही है लियो बुलाई
दिखा न अब मोहे ठकुराई
बिलोक इक क्षण मुझको कन्हाई……..
जानहुँ कि तू नटखट है कितना
तू भी फिर सुन ले ओ किसना
बड़ा ढीट जो तू है अगर
मोको भी तू न जाने मगर
दौड़े आवेगो मोसे मिलने तू छलिया
है राधा से तोरी रपट दी लिखाई
अब जी भर बिलोकुंगी तोहे कन्हाई……..