मातृभूमि

तेरी स्मृति में जाग-जाग
तेरी चाहत में रही भाग
कुछ तो संकेत किया होता
कब तक गाऊँ एकांत राग
जिस पर मैंने आँखें खोली
जिस पर मेरी पाँखें डोली
मेरा पहला रुनझुन गूँजा
निकली मेरी पहली बोली
मैंने कुछ बीज लगाए थे
मैंने कुछ फूल उगाए थे
कुछ कंचे दबे-छिपे होंगे
मैंने उम्मीद जगाए थे
तुझ पर मेरा अधिकार नहीं!
अब ये निर्णय स्वीकार नहीं
उस माटी से वंचित होऊँ
फिर कैसे हो प्रतिकार नहीं!
तेरे ऋण भार से विचलित हूंँ
तेरी करुणा से विगलित हूँ
मुझ पर निष्ठा का भार धरो
मैं थाती तेरी अतुलित हूँ
मेरी माटी कर्ज चुकाने दे
लुट जाती हूँ लुट जाने दे
भावों के अकथ समंदर में
बह जाती हूँ बह जाने दे