Tuesday , May 20 2025

मेरी मां

       मेरी मां   

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 मेरी मां  नही गाती  थी

लोरी गीत

  रहीम, रसखान, तुलसी मीरा की प्रीत

 

जब

देती थी थपकी मुझे  सुलाने को ,

लग जाती थी गम को भुलाने में

 

फिर भी

होती थी आंखों में अधूरे कामो की चिंता

अपनों के तरकशी  तानों की पीड़ा

 

घर के अभेदी चक्रव्यूह में पिसती थी पल पल

घुटती थी  तिल तिल

और

जब टूट जाती थी, आंसुओं के सैलाब में डूब जाती थी

छिपा लेती थी मेरे मासूम चेहरे को अपने चेहरे में

दृढ़ता से लड़ती थी लगे हुए पहरों से

और मेरी मां इस तरह मेरे सुनहरे भविष्य को बुनती थी

बीमारियों को दर किनार कर मेरी खातिर जीती थी ।।

…,.,…………………………………………………….

मेरा साया बन सदा संग रहती 

 मां कुछ पलों का संसार  नहीं 

ही एक दिन का त्योहार है

कभी सांसों में समाया 

कभी यादों में बसाया 

कभी अपने अंदर ही उसका 

प्रतिबिम्ब पाया

आदत में व्यक्तित्व में 

उसकी ही छाया  

पूरब से पश्चिम , पश्चिम से उत्तर 

उत्तर से दक्षिण 

पृथ्वी  पर समंदर 

समंदर से आसमान 

आसमान  में तारे 

 तारों में ध्रुव तारा 

के मानिंद चमकती 

उसका कोई छोर है 

ही कोई तोड़ है 

मेरी माँ मेरे लिए बेजोड़ है 

सच मेरी माँ 

  कभी मुझसे दूर नहीं  होती  

 मेरा साया बन सदा संग रहती   

 सांसो में समा मेरे साथ जीती 

 

 – शकुन त्रिवेदी  (कोलकाता )

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