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हिंदी: कश्मीर से कन्या कुमारी तक

दो दशक पहले अगर कोई दक्षिण भारत की यात्रा पर जाता तो सबसे पहले  जिस समस्या से सामना होता वो समस्या होती  वहां के लोगो से संवाद कैसे स्थापित किया जाये।  लेकिन अब वो समस्या दूर हो गयी  हालाँकि वहां के लोगो  की लिंक लैंग्वेज अंग्रेजी है किन्तु बदलते समय के अनुसार वहां के  अनेक छोटे -छोटे व्यवसायियों  ने दूर -दराज से आने वाले हिंदी भाषाई  ग्राहकों से बात करने  के लिए हिंदी सीख ली और अब वे बड़ी आसानी से  ग्राहक की मांग को समझते हुए  उसकी जरुरत को पूरा करते है।  हाल के वर्षों में जितनी तेजी से दक्षिण वासी हिंदी सीख रहे है उसमे हिंदी फिल्मों, धारावाहिक और वेब सीरीज  का बहुत बड़ा योगदान है।  किन्तु हिंदी को अंतराष्टीय पटल पर लाने और उसे स्थापित करने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी टीम की अहम भूमिका है.  भारत की राजभाषा हिंदी  ११ जून २०२२ में संयुक्त राष्ट्र  (संरा) की आधिकारिक भाषा बन गई है। यूँ तो हिंदी भारत के आलावा बहुत से देशों में बोली जाती है  जैसे कि नेपाल, भूटान, मॉरीशस, फिजी, ग्याना, इंडोनेशिया, बाली, सुमात्रा, बांग्लादेश, और पाकिस्तान आदि।   किन्तु भारत में आज भी  हिंदी  राजभाषा से राष्ट्रभाषा आधिकारिक तौर पर नहीं बन पाई.  जिसके लिए आज भी हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित करने के लिए जद्दोजहद चल रही है।  परन्तु हिंदी बोलने वालों की संख्या में काफी बढ़ोत्तरी  हुई है।   

 

                      तमिलनाडु में स्थित प्रथम समुद्री सेतु पम्बन ( Pamban bridge 1914 )

 

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देखा जाये तो हिंदी बोलने वालों को अब हिंदी बोलने में शर्म  का अनुभव नहीं होता क्योंकि आज के बाजार को भी हिंदी की उपयोगिता और उसका चमकता हुआ भविष्य दिखाई दे रहा है किन्तु इसके बावजूद भी हिंदी के समक्ष 
चुनौतियों  की कमी नहीं हुई है।  दिन ब दिन हिंगलिश का बढ़ता चलन, भाषा की गरिमा का निरंतर होता पतन. हिंदी के नाम पर सभी भाषाओँ की मिलीजुली खिचड़ी का उदय और साहित्य, उसके बारे में भी मनन करने की आवश्यकता है क्योंकि  

 साहित्य की शालीन, लच्छेदार, मुहावरेदार भाषा का लोप भी जोर- शोर से हो रहा है  जिसके बारे में  सोचने वालों की काफी कमी है.  देखा जाये तो हिंदी की साहित्यिक सुंदरता को बनाये रखने के लिए इस दिशा में भी काम करने की  जरुरत है.   हिंदी  भाषियों को इस ओर मोड़ने की अत्यंत आवश्यकता है क्योंकि भाषा की खूबसूरती उसकी शालीनता एवं समृद्ध शब्द भंडार से होती है न की  चलताऊ, काम चालाऊ जोड़ -तोड़ वाली भाषा शैली से। 

आंध्रा प्रदेश के तिरुपति शहर में पद्मावती अमावारी मंदिर के सामने फूल बेचने वाली भी अपने हिंदी भाषाई ग्राहकों के साथ हिंदी में ही बात करती है

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