गणपति-वंदन


ऊँ जय गणपति धरैं सुवेशा,
हरहु पाप-त्रैताप कलेशा ।
अति मनहर छवि नैन विशाला,
ध्यावैं विधि-हरि-हर त्रैकाला ।
शेष दिनेश सुरेश खगेशा ,
पूजें सुर नर असुर नरेशा।
ऊँ जय गणपति धरै सुवेशा,
हरहु पाप- त्रैताप कलेशा।।(1)
एक दंत गजमुख लम्बोदर,
शेष वदन नर वर अति सुन्दर।
शुभदर्शी, नहिं तनिक अंदेशा।
शिवगृह पाय सके न प्रवेशा।
ऊँ जय गणपति धरै सुवेशा,
हरहु पाप-त्रैताप कलेशा ।।(2)
मातु वचन लै देव हराये,
मानस-सुत शिवपुत्र कहाये।
श्रृष्टि चलै इक डिगै न रेशा,
तुम्हें ध्याय दुःख ताय न लेशा।
ऊँ जय गणपति धरै सुवेशा,
हरहु पाप-त्रैताप कलेशा।।(3)
मूलचक्र पर वास गणेशा,
प्रथम पूज्य शिव दियो संदेशा।
सुरन मध्य तुम लगत निशेशा,
देव तुमहि त्रैलोक विशेषा।।
ऊँ जय गणपति धरैं सुवेशा ,
हरहु पाप-त्रैताप कलेशा ।।(4)
– रचयिता-रणजीत सिंह सोलंकी(साक्षी)
से.नि.-प्रधानाचार्य, बिधूना ,औरेया उ. प्र
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