Saturday , December 6 2025

एकदंत गजमुख लंबोदर

गणपति-वंदन

 

 

ऊँ जय गणपति धरैं सुवेशा,

हरहु पाप-त्रैताप कलेशा ।

अति मनहर छवि नैन विशाला,

ध्यावैं विधि-हरि-हर त्रैकाला ।

शेष दिनेश सुरेश खगेशा ,

पूजें सुर नर असुर नरेशा।

ऊँ जय गणपति धरै सुवेशा,

हरहु पाप- त्रैताप कलेशा।।(1)

 

एक दंत गजमुख लम्बोदर,

शेष वदन नर वर अति सुन्दर।

शुभदर्शी, नहिं तनिक अंदेशा।

शिवगृह पाय सके न प्रवेशा।

ऊँ जय गणपति धरै सुवेशा,

हरहु पाप-त्रैताप कलेशा ।।(2)

 

मातु वचन लै देव हराये,

मानस-सुत शिवपुत्र कहाये।

श्रृष्टि चलै इक डिगै न रेशा,

तुम्हें ध्याय दुःख ताय न लेशा।

ऊँ जय गणपति धरै सुवेशा,

हरहु पाप-त्रैताप कलेशा।।(3)

 

मूलचक्र पर वास गणेशा,

प्रथम पूज्य शिव दियो संदेशा।

सुरन मध्य तुम लगत निशेशा,

देव तुमहि त्रैलोक विशेषा।।

ऊँ जय गणपति धरैं सुवेशा ,

हरहु पाप-त्रैताप कलेशा ।।(4)

        – रचयिता-रणजीत सिंह सोलंकी(साक्षी)

से.नि.-प्रधानाचार्य, बिधूना ,औरेया उ. प्र

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