Saturday , December 6 2025

समकालीन हिंदी साहित्य पर चर्चा

सेंट पॉल्स कैथेड्रल मिशन कॉलेज में राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न

कोलकाता, 19 नवंबर । महानगर के लगभग 160 वर्ष पुराने शिक्षण संस्थान सेंट पॉल्स कैथेड्रल मिशन कॉलेज के हिन्दी विभाग और अधिकरण प्रकाशन, दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में ‘समकालीन हिंदी साहित्य : विविध दिशाएं’ विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। समकालीन साहित्य को जीवनगत प्रवृत्तियों, तद्युगीन, तत्कालीन, समकालीनता और आधुनिक परिप्रेक्ष्य में देखने की आवश्यकता है । वैश्वीकरण और बाजारवाद के दौर में मध्यवर्गीय जीवन सिकुड़ रहा है, नौकरियों में असुरक्षा बढ़ गई है, इसीलिए मन की सवारी डिजिटल युग में आवश्यक हो गया है। ये बातें प्रथम सत्र के बतौर अध्यक्ष प्रो. सत्या उपाध्याय ने कही।

कलकत्ता विश्वविद्यालय, हिन्दी विभाग की प्रो. राजश्री शुक्ला ने ‘समकालीन हिन्दी साहित्य में चेतना-प्रवाह’ विषय पर अपने वक्तव्य में कहा कि चेतना-प्रवाह अविराम गति से वैदिक युग से प्रवाहित है। हमारा साहित्य वैदिक संस्कृति एवं चिंतन, मूल्यों और परम्पराओं आदि से गहरे रूप में अनुप्राणित है।

समकालीन साहित्य महत्त्वपूर्ण बदलावों को रेखांकित कर, सामाजिक यथार्थ के विखंडन और बाजारवाद को उभारनेवाला, सहानुभूति के विमर्श को समृद्ध करनेवाला और शिल्पगत विविधता को प्रस्तुत कर पारंपरिक जड़ताओं को तोड़ता है। उमेशचंद्र कॉलेज के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. कमल कुमार ने ‘समकालीन हिन्दी साहित्य और भारतीय साहित्य के अंतर्संबंध’ को सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में भारतीय भाषाओं की रचनाओं का उदाहरण देकर स्पष्ट किया।

राजस्थान के युवा कवि और संपादक डॉ. हरि राम मीना ने समकालीन साहित्य में पर्यावरण विमर्श के संदर्भ में जल, जंगल, जमीन और पहाड़ी क्षेत्रों के संरक्षण को अत्यंतावश्यक बताया। मिरांडा हाउस कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय की डॉ. अनु कुमारी ने ‘समकालीन हिन्दी साहित्य में मूल्य की अर्थवत्ता’ के संबंध में कहा कि हमारे समय का सबसे बड़ा संकट मूल्य का है। सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, आर्थिक मूल्य के साथ-साथ नैतिक मूल्य का महत्त्व प्रत्येक क्षेत्र में सर्वाधिक है।

दूसरे सत्र में दक्षिण बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यालय के भारतीय भाषा विभाग के प्रो. सुरेश चन्द्र ने बतौर अध्यक्ष विविध विमर्शों के ऐतिहासिक स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए वर्तमान में उसकी प्रासंगिकता पर चर्चा की। विमर्शों के अंतर्गत जो साहित्य लिखे जा रहे हैं उसमें सामाजिक न्याय, संघर्ष एवं शोषण का प्रतिरोध तथा अधिकार की रक्षा मुख्य रूप से शामिल है।

बर्दवान विश्वविद्यालय से डॉ. शशि कुमार शर्मा ने समकालीन हिंदी साहित्य को ऐतिहासिक गौरव के आधार पर पुनर्विचार करने एवं समझने की बात कही। कलिंग इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेस के डॉ. रुद्र चरण माझी ने हिन्दी और उड़िया साहित्य के व्याकरणिक संरचनाओं का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया। कॉलेज के वाइस प्रिंसिपल प्रो. विनायक भट्टाचार्य ने हिन्दी और बांग्ला साहित्य के अंतर्संबंध पर विद्वतापूर्ण विचार किया।

विभिन्न महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों से लगभग 80 प्रतिभागियों ने अपने शोध-प्रपत्र का वाचन ऑनलाइन एवं ऑफलाइन माध्यम से किया जिसकी अध्यक्षता डॉ. कमल कुमार, डॉ. विकास कुमार साव, पंचकोट महाविद्यालय; डॉ. सुनील कुमार, जगजीवन राम श्रमिक महाविद्यालय, जमालपुर ने किया। अधिकरण प्रकाशन के प्रबंधक मनीष सिन्हा ने स्वागत वक्तव्य दिया। डॉ. कमलेश पाण्डेय ने बीज वक्तव्य में समकालीन हिन्दी साहित्य पर प्रकाश डाला।

कार्यक्रम का आरंभ कॉलेज के अध्यक्ष डॉ. सुदीप्त मिड्डे के अभिभाषण से हुआ। कार्यक्रम का संचालन प्रो. आरती यादव एवं प्रो. परमजीत कुमार पंडित ने किया। कार्यक्रम को सफल बनाने में डॉ. स्नेहा सिंह, दिव्या प्रसाद, डॉ. फरहत परविन, प्रीतम रजक, रोहित राम, सामु केराई, रोहित मिश्रा, पलक सिंह, सुमन साव, सोनू महतो, विवेक तिवारी आदि की सक्रिय भूमिका रही।

About Shakun

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *