गीता जयंती के शुभ अवसर पर श्लोकों, मंत्रों एवं पदों से सज्जित एक नए ढंग का कार्यक्रम ‘गीता-सुगीता’ भारतीय संस्कृति संसद ने अपने सभागार में शनिवार को आयोजित किया जिसमें गीता का सार भी था और शिक्षा भी ।
स्वर,वाद्य एवं संगीतमय प्रस्तुत इस अभिनव आयोजन का प्रारंभ संस्था की उपाध्यक्षा डॉ तारा दूगड़ के स्वागत भाषण से हुआ । डॉ दूगड़ ने कहा कि श्रीमद्भगवद्गीता जीवन व्यवहार की पाठशाला है । इस परिवर्तनशील संसार में जहाँ कुछ भी स्थायी नहीं है ,न सुख ना दुःख ,न हमारे शरीर की अवस्थाएँ तो क्यों न हम “गीता–सुगीता” के माध्यम से जीवनोपयोगी बातों , श्लोकों एवं भजनों को सुन कर जीवन के कुछ क्षणों को कृतार्थ करें ।
मंच पर चिन्मय मिशन से पधारे स्वामी जी श्री दिवाकर चैतन्य जी ने बीच बीच में गीता के चुने हुए श्लोकों को सस्वर प्रस्तुत किया । स्वामी जी का शॉल ओढ़ाकर स्वागत किया संस्था अध्यक्ष डॉ बिट्ठलदास मूंधडा ने। कार्यक्रम के बीच बीच में व्याख्यात्मक विश्लेषण अपने आप में बहुत ही अनूठा था। गीतों एवं भजनों को धुन प्रदान की संगीत प्राचार्या श्रीमती रमाजी अग्रवाल ने। उनका स्वागत किया मनीषा की अध्यक्षा श्रीमती ऊषा मोदी ने ।
पदों का प्रभावी पाठ किया नाट्यनिर्देशक एवं लेखक श्री पलाश चतुर्वेदी ने । मनमोहक स्वरों में भजनों की सम्मोहक प्रस्तुति दी ऋचा अग्रवाल एवं मीता गाडोदिया ने ।कार्यक्रम को सफल बनाने में श्री राज गोपाल सुरेका एवं शंकर लाल सोमानी सक्रिय थे ।
सर्वश्री शिव किशन दमानी ,अरुण शर्मा, नीरव शाह, विनोद बागड़ी ,अजय अग्रवाल ,सुभाष अग्रवाल , प्रह्लाद राय गोयनका, अजयेन्द्र त्रिवेदी तथा सर्वश्रीमती जमुना मूँधडा ,अर्चना अग्रवाल ,संगीता शर्मा ,दुर्गा व्यास ,नीता अग्रवाल ,लता लोहिया आदि गणमान्य लोग बड़ी संख्या में उपस्थित थे।