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मानस की धुंध

              समीक्षा: मानस की धुंध

श्रीमती नीरजा द्विवेदी की कहानियों को पढने का अवसर मिला। मुझे कुछ सुखद अनुभव हुए। उनकी सभी दस कहानियाँ मुझे प्रेमचंद के द्वारा कहानी के प्रमुख उद्देश्यों में निर्दिष्ट ‘आदर्शवादी यथार्थ’ को चरितार्थ करती हुई मालूम पड़ी।एक दूसरा तथ्य इन कहानियों में उजागर होता है‌‌- वह तथ्य है कि आज के शंकालु समाज में यह विचित्र प्रकार की आशा जागृत करती है। कहानियों में ऐसी स्थितियां पैदा करती हैं जहां एक ओर हीन भावना से ग्रस्त युवक को कार्यनिष्ठ बनाना, या किसी निर्बल स्त्री को सबलता प्राप्त करवाना या कथाकथित निर्दय पुलिस अधिकारियों में कुछ उसको सत्यनिष्ठ बनाने के प्रयास को दर्शाना, या निस्स्वार्थ सेवा से एक तिरस्कृत पत्नी का पति को जीतना, या इस विचार का उत्पन्न करना कि गाँव को शहर से बेहतर बनाने के प्रयास दिखाना, या लड़की दिखाने की परम्परा पर एक नई दृष्टि डालना, और स्त्री को एक व्यभिचारी पति से निजाद पाने और दूसरा विकल्प सामने रखना, दहेज के विरोध में सहज स्थिति उत्पन्न करना, या दलितों, पिछड़ों या सवर्णों में समरसता लाना, या पक्षाघात या कैंसर ऐसी बीमारियों से ग्रस्त स्त्रियों द्वारा भावी पीढ़ी को मौन आशीर्वाद दिलवाना – इन कहानियों को एक नया परिवेश प्रदान करती है। कुछ कहानियाँ वास्तविक जीवन से उत्पन्न हुई हैं। इस प्रकार के विचारों को कहानी का रचनात्मक संगठन देना एक कठिन कार्य है। लेखिका ने इस चुनौती को स्वीकार किया है। यह सजग पाठक स्वयं निर्णय करेगा कि रचना के स्तर पर लेखिका किस सीमा तक सफल हुई हैं।जब किसी लेखिका का रिश्ता जीवन के सरोकारों से होता है और उसमें एक मानव संवेदना का भाव होता है तो वह भविष्य में एक अधिक सशक्त अभिव्यक्ति खोजने में सफल हो सकेंगी। मैं लेखिका के इन दस कहानियों के संग्रह ‘मानस की धुंध’ का स्वागत करता हूँ।

कृष्ण नारायण कक्कड़

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