शरद पूर्णिमा का महत्व
बचपन में शारदीय पूर्णिमा के आने की बात सुनते ही खीर का स्वाद मन को लुभाने लगता था. कितने जतन से खीर बनती, माँ लक्ष्मी का पूजन कर उन्हें भोग समर्पित किया जाता और तत्पश्चात उस खीर को पूजा के काम आने वाली बाल्टी के अंदर रख कर आँगन में बंधी डोरी जिस पर कपडे सुखाये जाते उस डोरी पर बांध दिया जाता ताकि चूहे, बिल्ली या कुत्ते उसमे अपना मुंह न मार सके. वो रात बच्चों के लिए बड़ी मुश्किल से कटती। मुझे याद है कि बड़े बुजुर्ग उस दिन एक कहानी जरूर सुनाते कि- “शरद पूर्णिमा के दिन तीन दोस्त जो शहर में पढ़ते थे उन्होंने खीर बनाई और उसे चांदनी रात में अमृत पड़ने के लिए रख दिया। तीनो दोस्तों ने आपस में शर्त रखी कि प्रातः हम तीनों एक दूसरे को अपने – अपने सपने के बारे में बताएँगे जिसका सपना सबसे ज्यादा दिलचस्प होगा वो आधी खीर खायेगा और बाकि के दोस्त बची हुई खीर को आपस में बाँट कर खाएंगे। तीनो दोस्त जब सवेरे सो कर उठे तो उन्होंने अपने -अपने सपने को सुनाना आरम्भ किया। जब तीसरे दोस्त की बारी आई तो वो चहक कर बोला ” अरे मेरे सपने में तो माँ लक्ष्मी स्वयं आई थी। उन्होंने मुझसे कहाँ- ” वत्स तुम अभी तक जाग रहे हो उठों और प्रसाद ग्रहण करो,
मैंने कहा की मै अकेले कैसे ग्रहण कर सकता हूँ ? मेरे दोनों दोस्त भी प्रसाद ग्रहण करेंगे। माँ ने कहा “बेटे जो जागे सो पावे जो सोवे सो खोवे। ” इसलिए वत्स तुम प्रसाद ग्रहण कर मुझे प्रसन्न करो। मैंने पुनः बोला -” माँ मैं थोड़ी सी खीर खाकर आपकी आज्ञा का पालन करता हूँ। इस पर माँ रुष्ट होकर बोली ” वत्स, मेरी आज्ञा का उल्लंघन कर क्या तुम मेरा कोप झेलने के लिए तैयार हो ? बस मै डर गया और जैसे ही मैंने खीर खाना शुरू किया माता बोली -” पोंछ -पोंछ खा और मुझे इस तरह पूरी खीर मज़बूरी में खानी पड़ी।
खैर ये तो कहानी है, किन्तु इस बार शारदीय पूर्णिमा की खीर पर ग्रहण पड़ने जा रहा है जो कि लक्ष्मी भक्तों के लिए परेशानी का कारण बन रहा है। अब सवाल ये है की खीर सूतक काल में कैसे बनेगी और उसका भोग कैसे अर्पित किया जायेगा और किस प्रकार श्रद्धालु प्रसाद ग्रहण करेंगे।
इसका भी समाधान मथुरा, काशी, उज्जैन के पंडितो ने निकाल लिया है। उनके अनुसार आप सूतक काल आरंभ होने से पहले खीर बना कर माता लक्ष्मी को भोग लगा दे। और खीर में तुलसी पत्ते डाल कर रख दे। ग्रहण के दौरान खाद्य वस्तुओं में तुलसी दल या कुश डालना अनिवार्य होता है ऐसा हमारे बुजुर्ग और पंडित पुरोहित कहते आए है। अब चाहे तो ग्रहण शुरू होंने के पहले खीर चांदनी रात में रख दे और ग्रहण शुरू होने के पहले उठा ले। इस प्रकार खीर पर पड़ने वाले ग्रहण से आप खीर को बचा भी लेगी और उसका सुस्वादन भी कर लेगी साथ ही सदियों से चली आई परंपरा का निर्वाहन भी कर लेगी।
अंत में बात करते है शारदीय पूर्णिमा के महत्व की…
पहला महत्व है कि मां लक्ष्मी का जन्म (अवतरण दिवस) सागर मंथन के दौरान हुआ था। कहते है कि तब से प्रत्येक शारदीय पूर्णिमा पर मां लक्ष्मी पृथ्वीलोग पर विचरने आती है। उन्हे खुश करने के लिए श्रद्धालु पूरी श्रद्धा के साथ उनकी पूजा करते है।
दूसरा कारण : प्रेम के देवता कामदेव के अहंकार ( कामदेव को अहंकार था कि वो किसी के भी मन में काम या वासना के भाव को अपने तीर के मारनेसे जगा सकते है, जैसा की उन्होंने भगवान शिव के मन में माता पार्वती के लिए प्यार जगाया था) को तोड़ने के लिए कृष्ण ने पूरी रात गोपियों के साथ नृत्य किया था और कामदेव के प्रयास गोपियों के मन में वासना के प्रति आसक्ति के भाव को विफल किया था।