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जो समाज को दिशा दे

जो समाज को दिशा दे समाज उसे दे …

प्रतिष्ठित पत्रकार एवं साहित्यकार डॉ. एस आनंद को सम्मानित करते अन्य पत्रकार
अभी हाल में कोलकाता के सुप्रसिद्ध व्यंगकार, विशिष्ट साहित्यकार , मंजे हुए पत्रकार  डॉ एस आनंद का सम्मान शुभ सृजन नेटवर्क एवं राजस्थान सूचना केंद्र द्वारा किया गया। 
 किसी भी विद्वान का सम्मान करना खुशी और  गौरव के पलों से अभिभूत कर देता है।  और हो भी क्यों न साहित्यकार और पत्रकार  दोनो ही समाज को सच का आईना दिखाते है, जगाते है, कड़वी सच्चाई से अवगत कराते है। आने वाली नई पीढ़ी के लिए मनोरंजक किंतु प्रेरणादायक संदेश के साथ कहानी, कविता, लेख लिखते है।
 
लेकिन इसे  विडंबना कहे या संवेदन हीनता कि हमारे समाज में हिन्दी के पत्रकारों , साहित्यकारों और कवियों को वो सम्मान नही मिलता जो बाकि की भाषाओं में साहित्यकारों और पत्रकारों को मिलता है।
 
या यू कहे कि जो समाज को दिशा देते है, ज्ञान देते है उनसे  हिंदी भाषी समाज बड़ी बेरुखी से व्यवहार करता है। उदाहरण के लिए  अध्यापक को ले लीजिए –  जनगणना, पशुगणना , चुनावी ड्यूटी आदि जैसे काम करवाए जायेंगे किंतु सम्मान नही दिया जाएगा । किसी बड़े रौबदार  या पैसे वाले व्यक्ति ने थोड़ा तरस खा कर किसी कार्यक्रम में बुला लिया तो उन्हें समय न के बराबर देंगे। हां ये ठीक है वो अपने इर्द – गिर्द खड़े किसी कर्मचारी को हिदायत देते हुए ये जरूर कहेंगे कि ” मास्साब आए है इनका ख्याल रखना।”
 
सुनते है कि चाइना, जापान, कनाडा, फ्रांस आदि अनेक देश है जहां अध्यापक का सम्मान सबसे ऊपर होता है। साहित्यकारों का सम्मान करने में फ्रांस नंबर वन पर है। 
 
आश्चर्य इस बात का है कि जिस भारत में गुरुओं और लेखकों  के सम्मान की परंपरा आदि काल से चली आई हो यहां तक हिंदू राजा हो या मुगल सभी ने कवियों और ज्ञानियों को अपने दरबार में सिरमौर बनाकर रखा हो उस देश में गुरुओं और साहित्यकारों के सम्मान में कटौती कैसे हुई। 
 
कवि, लेखक, अध्यापक, विद्वान  समाज को गढ़ते है अगर यही अस्तित्वहीन होंगे तो समाज का विकास कैसे होगा? आवश्यकता हैं  बरसों से चल रहे इस षड्यंत्र को रोकने की। विशेषकर हिंदी भाषियों के चेतने की।  
हिन्दी भाषियों को समझना होगा कि उनके बीच में अगर कोई विद्वान लेखक है, अच्छा पत्रकार है,  गुणी अध्यापक है तो उन्हें सम्मान दे। पुस्तकों को खरीद कर परिवार में पढ़ने की आदत डाले ताकि  भाषा का ज्ञान रगो मे दौड़ सके. बच्चों को भी पढ़ने – लिखने की प्रेरणा मिल सके। और आप लोगो की हिंदी भाषा अपने समृद्ध स्वरूप पर मुस्कुरा सके।

 

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