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तरबूज सस्ते है..

       तरबूज सस्ते है..

ये क्या मां ! चार (4 )तरबूज वो भी इतने बड़े -बड़े! कौन खायेगा यहां? पहले से ही घर में तरबूज मौजूद हैं लेकिन खाने वाले मौजूद नही। अब तुम्ही बताओ मां, मैं अकेली कितने तरबूज खा सकती हूं।

 

अरे बेटा, इसमें नाराज होने वाली कौन सी बात है, बाजार में सस्ते मिल रहे थे सोचा गर्मी का मौसम है, बच्चे खायेंगे भी और जूस भी पियेंगे। मौसमी फल सेहत के लिए अच्छे होते है,

दूसरी बात तरबूज में पानी का प्रतिशत ज्यादा होता है इस लिए ये इस प्रचंड गर्मी में पानी की कमी शरीर में होने नही देगा।

 

“पानी की कमी माई फूट” . देखिए तो सही उनके लिए एक बोतल नींबू पानी, एक बोतल ग्लूकोन डी, आम का शरबत और न जाने क्या -क्या बनाकर फ्रिज में रखा है।

 

“अच्छी बात है, लेकिन इसमें फल कहां है?” “वो मम्मी ये बच्चे बहुत ही नालायक है, फल खाना ही नहीं चाहते।  इन्हे तो टिन पैक्ड फूड ही पसंद है।”  शुचा ने कहा बच्चे तुम्हारे ही है या किसी दूसरे के?  क्या मतलब ? शुचा ने विस्मय से पूछा।

तुम शुचा समझती क्यों नही हो ये तुम्हारी जिम्मेदारी है कि तुम बच्चों को ताजी फल खिलाओ ताकि वे स्वस्थ रह सके बजाय टिन पैक्ड फूड के।

देखों मां, लेक्चर देना बड़ा आसान है, जो तुम दे रही हो।तुम्हे अच्छे से पता है कि मैं वर्किंग वुमन हूं, मेरे पास समय का अभाव है। मै उतना ही कर सकती हूं जितना कर पा रही हूं। घर में बैठना हो तो ताजी फल, खाना, नाश्ता विभिन्न प्रकार का बनाती रहूं।

तुमसे बहस करना फिजूल है, शुचा। लेकिन फिर भी मैं इतना कह सकती हूँ कि जितना समय मोबाइल और बातों में लगाती हो उसका आधा भी बच्चों को दे दो तो आये दिन बच्चों को लेकर डाक्टर के पास जो भागना पड़ता है वो बंद हो जायेगा।

माँ, प्लीज ज्ञान देना बंद करिये ! “ठीक है मै जा रही हूँ , कहकर सुभद्रा उठ खड़ी हुई” । “मम्मा तरबूज लिए जाना प्लीज , यहां पड़े -पड़े सड़ जायेगे, कोई नहीं खायेगा।” ये सुनते ही सुभद्रा का ममतामयी दिल आहत हो गया उसकी नजर के सामने .

कुछ घंटो पहले का दृश्य जीवंत हो उठा। कितने प्यार से उसने तरबूज ये सोचकर ख़रीदे थे कि मासूम बच्चें खाएंगे और मौसम के फलों के बारे में जानेगे। ये भी तो शिक्षा का एक अंग है की किस मौसम में कौनसे फल -फूल अनाज पाए जाते है। इसके आलावा वो कितनी मुश्किल से बाजार से लेकर घर पहुंचीं थी। पहले पति देव की झिड़की कि ” सस्ते के नाम पर तुम पूरा बाजार उठा लाती हो और अब बेटी का ये रूप। संवेदना तो जैसे खो गयी है , इसे एक बार भी अपनी माँ का प्यार नजर नहीं आया, मेहनत नजर नहीं आयी । .

“माँ जी आप जा रही है, ये आपकी अदरक वाली चाय। ” सुभद्रा ने देखा कि शुचा किसी से मोबाईल पर बात कर रही है।

उसने बड़े प्यार से काम करने वाली के सर पर हाथ रखा और बोली -” नहीं आज जल्दी में हूँ फिर कभी। और हाँ ये तरबूज अपने घर ले जाना तेरे बच्चे है न, खुश हो जायेगें। ” ” सच माँजी, रोज बच्चे जब भी ठेले पर तरबूज बिकते हुए देखते है तो बहुत जिद्द करते है खरीदने की , लेकिन एक -एक तरबूज का जो दाम है वो हम जैसे गरीब लोग नहीं खरीद सकते। उसकी बात सुनकर सुभद्रा मुस्कुरा दी क्योंकि अब तरबूज सही जगह जा रहे थे।

 

शकुन त्रिवेदी 

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