जंक फ़ूड के दुष्परिणाम
एक स्कूल में बच्चों के साथ जंक फ़ूड के दुष्परिणाम के ऊपर चर्चा चल रही थी। क्लास सिक्स से लेकर क्लास टेन तक के बच्चें शामिल थे। सबके लिए चिप्स, कुरकुरे, पिज्जा ,बर्गर पसंदीदा भोज्य। ऐसे में उनसे ये कहा जाये की ये सब उनकी सेहत के लिए सही नही है और इन्हें बंद करना होगा तो सोचिये उनकी मनोस्थिति क्या होगी। कितनो को तो ये चिंता सता रही थी की अगर इन सब पर बैन लग गया तो उनके स्वाद का क्या होगा। किसी के सामने समस्या थी की उसकी माँ के पास समय नही है रसोई में पकाने का ऐसे में वो उसे क्या खिलाएगी या वो क्या खायेगा। यही नही कुछ बच्चों के सवाल थे की टीवी आये दिन दिखा ता है की प्रत्येक खाने वाली वास्तु जहरीली हो रही है तो हम क्या खाये क्या हवा खाकर रहे.
एक बच्चें का सवाल था की बाबा रामदेव भी बाजार में उत्तर आये है अपनी मैगी और चॉकलेट के साथ तो क्या वो भी नही खाना चाहिए। किसी बच्चे का प्रश्न था की चाउमीन ,पानी बताशे ,भेलपुरी ,टिक्की चाट कितना कुछ है मजेदार और स्वादिष्ट , केवल रोटी ,दाल ,चावल से ही तो संतुष्टि नही मिल सकती। तो कोई बच्चा मैगी की तरफ दारी कर रहा था की मैगी दो मिनट में बन जाती है इतने कम समय में कोई दूसरा स्नेक्स तैयार नही हो सकता। बच्चों के इतने सारे सवालो के बीच एक छोटे से बच्चें ने पीछे की बेंच से कहा की वो घर का पका खाना खाना चाहता है लेकिन उसकी माँ के पास समय ही नही है।
बच्चों के सवालो के बाद बारी थी हम लोगो के उत्तर देने की। साथ ही उनके सवाल मन – मस्तिष्क को झिंझोर रहे थे की बाजारवाद बच्चों की सेहत के साथ कैसा खिलवाड़ कर रहा है। इनके खिलाफ न कोई कानूनी करवाई ( जैसा की बहुत से देशो ने कर रखा है ) न इन्हें बंद करने की चेष्टा। और तो और विज्ञापन कम्पनियाँ बच्चों से ही चॉकलेट ,चिप्स , मेगी आदि के कितने विज्ञापन करवाती है जो की किसी भी बाल मन को बरबस ही अपनी तरफ आकर्षित कर लेता है । लोगो के दिलो पर राज करने वाले रोल मॉडल लोकप्रिय क्रिकेट खिलाड़ी कोल्ड ड्रिंक का विज्ञापन करते है जिसे देखकर बड़े और बच्चें दोनों ही उनका अनुसरण करने लगते है। इन्हें रोकने या बंद करने के लिए सरकार, संस्थाएं,समाज कोई भी न आवश्यक कदम उ ठा ती है और न ही आवाज।
वे भी इनके स्वाद में इतना खो गए है की उन्हें इसकी जरूरत ही समझ में नही आती। अगर इतने स्वादिष्ट खाद्य पदार्थ यदि पैसा फेकने पर आसानी से उपलब्ध हो जाये तो उसमे बुराई क्या है रही बात सेहत की तो जगह -जगह नर्सिंग होम है और न जाने कितने खुलने के लिए तैयार बैठे है वैसे भी इन्हें अपना व्यवसाय तो बीमारों की तीमारदारी कर के ही बढ़ाना है जिसमे उनका सहयोग दे रहा है फ़ास्ट फ़ूड बाजार और नई पीढ़ी ।
भारत में बुराई को बढ़ावा देना कोई नयी बात नही है क्यों की हम सभी बाहर की वस्तुओं का स्वागत दिल खोल कर करते है चाहे वो परिधान हो या फिर खान- पान। बाहर की वस्तुएं इस तरह से समाज पर हावी होती है जैसे भारत में इन के आने के पहले न कोई भोजन था और न ही वस्त्र।
मिडिया भी यहाँ की जनता की कमजोरी जानती है इसलिए वही दिखाती है जिससे उसकी कमाई होती है। सेहत , समाज , सिद्धान्त , संस्कृति, बच्चे , नैतिकता ,उसके लिए सब बेकार। किया भी क्या जाये कही धन की माया तो कही बुराई की चुम्बकीय शक्ति वैसे भी बुराई का आकर्षण जबरदस्त होता है उसकी गिरफ्त में इन्सान आसानी से आ जाता है।
जो भी हो पैक्ड फ़ूड ने कार्यरत महिलाओं की जिंदगी को आसान बना दिया। गृहणियों को किचन से निजात दिला दी । अब आराम से वे मोबाईल , इन्टरनेट, व्हाट्सअप की दुनिया जी सकती है। रहा सवाल बच्चों की सेहत का तो उसके लिए तमाम तर्क है कि क्या खाये ? सभी में तो मिलावट है। सब्जियां रंग की हुयी है , त्योहारों के समय मिठाईया जहरीली हो जाती है । फलो मे चमक पैदा करने के लिए मोम चढ़ा रहता है या फिर वे हाई ब्रीड वाले होते है । गेहू चावल की बढियां पैदावार के लिए यूरिया, केमिकल वाली खाद का इस्तेमाल होता है आदि ।
ये सवाल स्वाभाविक है क्यों की आये दिन हम लोग समाचार सुनते है और देखते है मिलावट का आलम। किन्तु सवाल दागने वाली ये नही समझती की रास्ता भी इन्ही के बीच से निका लना है। मौसमी फल और सब्जियां खाने से केमिकल शरीर में उतना नही जाता जितना की
बे- मौसम की सब्जी या फल उपयोग में लाने से। दूसरी अहम बात की सेब , परवल ,टमाटर आदि को हल्के गुनगुने पानी में भिगो दे उनपर चढ़ा रंग अपने आप ही उतर जायेगा। दाल ,चावल को बनाने से आधे घंटे पहले भिगो देने से उनका केमिकल ख़त्म हो जायेगा। घर मे पकाये जाने वाले खाने में इस्तेमाल किया जाने वाला तेल अच्छी कंपनी का होगा जबकि सड़क पर बिकने वाली चाट, समोसा ,पानी बताशा आदि सस्ते तेल में बनाये जाते है क्योकि उन्हें कमाना है।
उसी जगह बच्चों के लिए घर पर पकाया जाने वाला खाना उनकी पसंद और सेहत दोनों से जुड़ा होता है। लेकिन पहले की अपेक्षा आजकल की बहुत सी माताएं आलसी हो गयी है या उनकी अपनी प्राथमिकताएं बच्चें की तुलना में ज्यादा महत्वपूर्ण हो गयी है। क्योकि अब वे किचन में जाकर बच्चें के लिए पकाने से बेहतर पिज्जा,बर्गर मंगवाना अच्छा और आसान समझती है।
आजकल काम वाली बाई को रखना फैशन में है जो महिलाये किचेन में काम करती है उन्हें हेय दृष्टि से देखा जाता है। जबकि हमारे समय में माताए घर पर ही तरह -तरह के व्यंजन बनाती थी , क्योंकि उन्हें अपने पाक शास्त्र पर प्रश्न चिह्न लगवाना पसंद नही था . उनकी नजर में जो स्त्रियां पाककला में कुशल नही होती थी वे गवाँर या फूहड़ के नामों से पहचानी जाती थी।
आज भी छोटे शहरो और गाँवो में बाहर से खाना खरीद कर खाने का चलन नही है। लेकिन अगर यही आलम रहा तो वो दिन दूर नही जब घर -घर पिज्जा, बर्गर , मोमो ,चाउमिन भोजन का स्थान ग्रहण कर ठीक वैसे ही जैसे लस्सी, शरबत का स्थान सॉफ्ट ड्रिंक ने ले रखा है। गाँवो की छोटी – छोटी दुकानों पर धूप की मार सहती कोल्ड ड्रिंक की बोतले लोग इतने गर्व से खरीदते है जैसे इन बोतलों में इनका सम्मान छिपा हो। हम कहाँ जा रहे है और क्यों जा रहे है बिना विचारे हर कोई दौड़ रहा है जो स्वस्थ है वो जंक फ़ूड के लिए जो इन्हें खा कर बीमार पड़ गए वे डॉक्टर के पास बिना ये सोचे की उनकी बीमारी की वजह क्या है। पढ़े -लिखे लोग भी ये जानने की आवाश्यकता नही समझते की वो जो खा रहे है उसमे क्या है और वो उनके स्वस्थ्य के लिए कितना हानिकारक है।
जंक फ़ूड या फ़ास्ट फ़ूड ` खाने से केलोस्ट्रोल बढ़ता है। अतिरिक्त नमक जाने से हाई ब्लॉडप्रेशर का शिकार बन जाता है। मोटापा बढ़ जाता है , थकान मह्सूस होने लगती है , हाँफने लगता है। सर में दर्द होता है ,घबराहट बढ़ जाती है हृदय रोग की सम्भावना दिखने लगती है। लेकिन स्वाद के आगे सब हारे है ठीक वैसे ही जिस तरह सिगरेट पीना हानिकारक है उस के ऊपर लिखा होने के बावजूद भी लोग सिगरेट पीते है। आवश्यकता है ये समझने की कि अच्छी सेहत अमूल्य धन है इसे संजो कर रखना प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है इस दिशा में सर्व प्रथम कदम उठाने वाला राज्य पंजाब है जिसने स्कूल और उसके आस- पास जंक -फ़ूड स्टाल पर रोक लगा दी।
सीबीएससी बोर्ड ने भी बच्चों की सेहत को ध्यान में रखते हुए जनवरी 2016 में एक सर्कुलर जारी किया जिसमे स्कूल केंटीन में जंक फ़ूड बिक्री करने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। इसी तरह दूसरे राज्य और स्कूल प्रतिबन्ध लगाना आरम्भ कर दे एवं बच्चे के माता पिता ये सोच ले की हम इन्हें रोज नही खरीदेगे महीने में एक -दो बार ठीक है तो अपने बच्चों औए स्वयम को इस धीमे जहर से बचा सकते है।
जंक फ़ूड की जगह लेने वाले पौष्टिक आहार,
- लहिया ( मूडी या लाइ ) ,चना ,मुमफली तीनो को मिला कर किसी डब्बे में भर कर रख ले।
- अंकुरित अनाज (चना, मुंग दाल ,मुमफली ) इन्हें रात भर भिगो कर रखे , सुबह निकाल कर साफ कपडे में बांध कर रख दे। अंकुर आने पर उन्हें धोकर लहसुन ,प्याज, नमक हरी मिरच नीबू मिला कर खाये।
- सत्तू का मीठा या नमकीन शरबत प्रोटीन का अच्छा स्रोत है ये सेहत के लिए सर्वोत्तम है।
- नीबू शहद पानी ऊर्जा देता है।
- गुलाब ,बादाम शरबत ,केसर वाला दूध।
- पोहा, उपमा ,हलुवा जल्दी पकने वाले स्वादिष्ट व् सेहत वाले खाद्य पदार्थ है।
- फल , मेवे आदि।