बाहरी कहना बंद करे, हम यही के भूमिपुत्र – जितेंद्र तिवारी

हिंदी भाषी पूर्वज यहां आए थे अपना घर -द्वार छोड़कर। उन्होंने यहाँ की संस्कृति – खान -पान,भाषा, बात -व्यवहार सब अपनाया किन्तु आज उनके परिवार, बच्चों की स्थिति बहुत खराब है. यहां हिंदी भाषियों को बाहरी लोग कहाँ जाता है. अपनी विफलताओं – असफलताओं का ठीकरा हिंदीभाषियों के सर पर फोड़ा जाता है । हिंदी भाषी मेहनती होते है वे आराम नहीं करते बल्कि सारे दिन मेहनत से काम करते है यहां वो शारीरिक, मानसिक, आर्थिक सभी तरह का योगदान देते है किन्तु इसे स्वीकार नहीं किया जाता।
बंगाली कंपलसरी किंतु बांग्ला पढ़ाए तो। न्यू नोटिफिकेशन 2025 में हिंदी में एग्जाम नही देने देंगे मतलब सरकारी नौकरी से हिंदीभाषी बाहर। आने वाले दिनों में ये हमारे बच्चों के सामने बहुत बड़ी समस्या होगी। हिंदी दिवस कार्यक्रम के दौरान ये विचार व्यक्त किये वेस्ट बंगाल लिंगुइस्टिक माइनॉरिटी एसोसिएशन के अध्यक्ष जितेंद्र तिवारी ने.
कार्यक्रम में उपस्थित अनेक लोगो ने अपने सुझाव साझा किये जैसे-
विजय शर्मा – कानूनी – संवैधानिक स्थिति देखनी चाहिए और उसी अनुरूप अपनी बात रखनी चाहिए। राज्य को कोई अधिकार नहीं किसी को भी बाहरी कहने का. हमारा योगदान साहित्य, ज्ञान के क्षेत्र में भी बढ़ना चाहिए।
आर के श्रीवास्तव- अल्पभाषी समाज को अपने प्लस और माइनस पर ध्यान देना चाहिए। बौद्धिक विकास आवश्यक उसके ऊपर भी ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
शिव कुमार गुप्ता – पहले प्रतियोगी परीक्षाओं में वैकल्पिक भाषा के रूप में हिंदी, अंग्रेजी,बंगाली का प्रावधान था। जिससे प्रतियोगी के लिए परीक्षा पास करना आसान था किन्तु अभी बांग्ला भाषा अनिवार्य कर दी गई इससे दूसरी भाषाओं के माध्यम से शिक्षा ग्रहण करने वाले प्रतिभागियों के लिए समस्या हो गई है.
सुभाष झा – समस्या समझे और फिर उसका समाधान खोजना आवश्यक।
प्रीतम – उद्देश्य स्पष्ट होना चाहिए हमें करना क्या है.
डाक्टर चंद्रमणि शुक्ला – बांग्ला भाषा पढ़ाने की मांग रखनी होगी, अपने लक्ष्य को केंद्रित करके उसी दिशा में कार्य करने की आवश्यकता।
मनोज त्रिवेदी – वोटबैंक की खातिर किसी भी भाषा के साथ पक्षपात नहीं होना चाहिए। बच्चों को अगर बंगाल का कल्चर जानना है तो बांगला पढ़ना आवश्यक किंतु स्कूल में अध्यापक का होना भी जरुरी है पढ़ाने के लिए।
ओम प्रकाश सिंह – बंगाली योग्यता को सम्मान देते है, योग्यता को आगे बढ़ाए और हिंदी भाषी अपनी कमियों को सुधार कर आगे बढ़े।
संस्था के उपाध्यक्ष, लक्ष्मण तिवारी कविता के माध्यम से अपनी बात रखी “कटते भी चलो बढ़ते भी चलो बाज़ू भी बहुत है सर भी बहुत। ” अपने अंदर जुनून पैदा करे कुछ करने का : ” कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों।”
हरी मिश्रा- वसीम बरेलवी के शब्दों में अपनी बात कही कि ” उसूलों पे जहाँ आँच आये टकराना ज़रूरी है, जो ज़िंदा हों तो फिर ज़िंदा नज़र आना ज़रूरी है.”
उपस्थित थे, शशि कांत शुक्ला, विनोद शर्मा , आशुतोष चतुर्वेदी, राजेंद्र राजा, लल्लन सिंह, पीयूष मिश्रा आदि .

एक सटीक और सही चित्रण। पश्चिम बंगाल में हिंदी भाषीय के भविष्य को लेकर मंथन समाज हित में एक जरुरी पहल है। आने वाले पीढ़ियों को हम एक अच्छी परंपरा छोड़ कर जा पायेगें। द वेक हिंदी भाषीय आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभा रहा है। जय हिंद।