Sunday , May 4 2025

चमत्कारी मानसून मंदिर

चमत्कारी मानसून मंदिर

कानपूर में हमें बताया गया   कि घाटमपुर तहसील में पड़ने वाले  बेहटा (भीतरगांव )  गांव में जगन्नाथ भगवान का एक  प्राचीन   चमत्कारी मानसून मंदिर है जो लगभग  ५००० वर्ष  (पांच हजार वर्ष  ) पुराना है   इसकी विशेषता ये है कि  ये बरसात शुरू होने के पंद्रह दिन  पहले ही ये भविष्यवाणी कर देता है की इस वर्ष कितनी वर्षा  होनी है। भविष्यवाणी वाली बात जो भी   सुनेगा  एक पल के लिए अचरज में पड़  जायेगा की कोई मंदिर भविष्यवाणी  कैसे  कर सकता है।  और अगर करता है तो कैसे ? हम भी सुनकर एक मिनट के लिए विस्मित हुए  पर उस समय मेरे पिताजी अस्पताल में भर्ती थे अतः  बात आयी गयी हो गई।

कुछ दिनों बाद ही पिताजी  का देहांत इटावा में हो गया उधर हमारी बुआ सास भी जो कानपूर में ही रहती थी अचानक चल बसी।  उनके श्राद्ध क्रम में शामिल होने के लिए हम लोग कानपुर गए। शुक्रवार का दिन श्राद्धकर्म में ही व्यतीत हो गया।  अच्छे बुरे दिन के चलते सोमवार से पहले हम अपने मायके जा नही सकते थे। शनिवार ,रविवार कानपूर में ही बिताना होगा ये सोच -सोच कर मेरा  एक -एक पल भारी हो रहा था  करने के लिए कुछ नही था। बैठ कर रह नही सकते। पार्क ,पिक्चर ,मॉल सब बेकार क्योंकि दिल  को ये गवारा नही था।  दिमाग में पिताजी के साथ जुड़े हुए पलो का जखीरा  हमे पागल करने के लिए काफी था। हमने अपने मन की बात मनोज जी को बताई और साथ ही उनसे कहा की क्यों न हम लोग कुष्मांडा देवी और मानसून मंदिर के दर्शन कर ले।  उन्हें ये बात जच गयी।

हमारे नन्द -नंदोई हमारे साथ ही थे उन्होंने सुनते ही जाने के कार्यक्रम पर अपनी मोहर लगा दी और इस तरह हम पांच लोग दूसरे दिन ही मानसून मंदिर के लिए निकल लिए। ५००० वर्ष पुराने मंदिर की इतने वर्षों तक किसी ने खोज खबर नही ली लेकिन जैसे ही मीडिया ने इसे ढूंढ निकाला वैसे ही  रातो -रात ये सुविख्यात हो गया।  इसका सुखद फल ये हुआ की हम लोगो को खोजने में तकलीफ नही हुयी।  दिन का समय और जुलाई का महीना।  उमस के साथ ही गर्मी अपने चरम पर थी।  तीन बजे के लगभग हम लोग चमत्कारी मानसून मंदिर पहुँच गए। छोटा सा संस्कारी  गांव। संस्कारी  गांव इसलिए क्योंकि वहां आये हुए आगंतुको को ससम्मान  उनके गन्तव्य पर पंहुचा दिया जाता है नाकि मजा लेने के लिए उन्हें उनके मार्ग से भटका  दिया जाये। हम लोग जब पहुंचे उस समय मंदिर पूरा खाली था।   गर्मी के चलते सभी अपने – घरों में विश्राम कर रहे थे। एक ऊँचे से प्रांगण में स्तूप के स्वरूप में न बहुत छोटा और न ही विशालकाय।  मध्यम आकार के स्वरूप का मंदिर अपनी प्राचीनता का आभास करा रहा था मंदिर के प्रांगण में ही दो घर बने हुए थे। हमने वहां  पर मौजूद बच्चे से उस मंदिर के पुरोहित के बारे में पूछा ताकि पुरोहित आकर मंदिर के पट खोले और हम लोग उस रहस्मय मंदिर के दर्शन कर ततपश्चात उसके बारे में प्रश्न पूंछ कर अपनी जिज्ञासा शांत कर सके। थोड़ी ही देर में मंदिर के पंडित जी अपने पुत्र के साथ उपस्थित हो गए।  हम लोगो को देखकर कुछ लड़के -लड़कियां कौतुहल वश आ गए।  शांतपूर्ण वातावरण में विराजे  भगवन जगन्नाथ जी की प्रतिमा काफी सुन्दर थी उस प्रतिमा का सौन्दर्य  पुरी के जगन्नाथ मंदिर में स्थित जगन्नाथ जी की हूबहू नक़ल थी।  पूछने पर पंडित जी ने बताया की ये मंदिर बहुत पुराना है पिछले पचास वर्षो से इसे पुरातत्व विभाग ने अपने  कब्जे में  ले  रखा है हमको इस मंदिर की देखभाल के लिए रखा गया है । पूछने पर की क्या ये सच है की मानसून आने के पहले ही ये मंदिर भविष्यवाणी करदेता है  की इस बार बारिश कैसी होगी?   इस पर पंडित जी ने कहा की ये सत्य है मानसून के पंद्रह दिन पहले से ही मंदिर की छत से पानी टपकना आरम्भ हो जाता है।  जिस वर्ष  कम वर्षा होती है उस वर्ष पानी भी कम टपकता है और जिस वर्ष ज्यादा होनी होती है उस वर्ष पानी भी ज्यादा टपकता है।  मंदिर में गिरने वाले पानी को देखकर आस -पास के जितने गांव है वे सब बरसात के आने के पहले ही समझ जाते है की इस बार का मानसून क्या लेकर आएगा।  हमने उनसे पूछा की यहाँ कोई भी नाला -नाली नही है , पानी कैसे बाहर जाता है। इस पर बच्चों ने उत्तर दिया की हम लोग बाल्टी भर -भर कर पानी बाहर फेकते है। आश्चर्य की बात ये है की उस मंदिर की छत पर न कोई पानी की टंकी है और न ही पानी का नल।  न जाने कितने वैज्ञानिक आ कर चले गए लेकिन आजतक कोई  ये नही जान सका की मंदिर की छत से गिरने वाले पानी का स्रोत क्या है। पचास किलोमीटर के दायरे में पड़ने वाले लगभग पैतीस गांव के लोग इस मंदिर  की अलौकिक कृपा का लाभ उठा रहे है।  यहां गिरने वाली  पानी की बूंदो से वे  सुनिश्चित करते है की  खेतों में जुताई कब करनी है और उसी अनुसार खाद व बीजो की व्यवस्था करते है।

आस -पास के स्थानीय लोग भी हम लोगो की बात -चीत में शामिल हो गए और बताने लगे की ये छोटा सा गांव है यहां के लोग काफी मिलनसार और शांति प्रिय है। यहाँ लगभग हजार घर हिन्दुओ के और तीनसौ मुस्लिमो के है।  हम लोग मिलजुलकर एक दूसरे का त्यौहार मनाते है और शांति से साथ -साथ रहते है । लगभग तीस मिनट  उनलोगों के साथ बैठ कर हम लोग वापसी की ओर निकल पड़े।

 

–  शकुन त्रिवेदी 

About Shakun

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *