Sunday , August 3 2025

Literature

काबा जाए कि काशी

काबा जाए कि काशी– पंडित धर्मराज के तीन बेटे हिमाशु ,देवांशु ,प्रियांशु थे तीनो भाईयों में आपसी प्यार और तालमेल था पुरे गाँव वाले पंडित जी के बेटो के गुणों संस्कारो का बखान करते नहीं थकते । पंडित जी के पास एक अदद झोपडी कि तरह घर था खेती बारी …

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दो सितारे गिरते नजर आते खुले आसमानों में

*दो बदन* चेहरे से चेहरा मिला एक अजीब खामोशी दो लहरे रात अँधेरी एक समुन्दर सी | दो बदन चेहरे से चेहरे का मिलन कभी लगता पहाड़ सा और रातें मरुभूमि सी   दो बदन आँखो आँखों से दिल की जुबान कहती ले जाती जिन्दगी की जड़ो तक फैलाती लड़ियाँ …

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संन्यासी का तप

सन्यासी का सत्य तप — गोकुल खानाबदोश परिवार में जन्मा था जिसके समाज के लोग मन मर्जी के अनुसार जहां अच्छा लगा वहीं डेरा जमा लिया कुछ दिन रहे मन उबा तो दूसरी जगह चल दिए यही जिंदगी थी पेट भरने के लिए भीख मांगना कबूल नही हाथ कि छोटी …

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तरबूज सस्ते है..

       तरबूज सस्ते है.. ये क्या मां ! चार (4 )तरबूज वो भी इतने बड़े -बड़े! कौन खायेगा यहां? पहले से ही घर में तरबूज मौजूद हैं लेकिन खाने वाले मौजूद नही। अब तुम्ही बताओ मां, मैं अकेली कितने तरबूज खा सकती हूं।   अरे बेटा, इसमें नाराज …

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ममतामई मां

महानिशा कि ममतामयी माँ— जीवेश से जब भी उसके सहपाठी पूछते तुम्हारे पिता का नाम क्या है ? जीवेश कुछ भी बता पाने में खुद को असमर्थ पाता और सहपाठियों के बीच लज्जित होता लौट कर माँ से सवाल करता माँ मेरे पिता कौन है? स्वास्तिका बताती भी तो क्या …

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विपश्यना

समीक्षा— विपश्यना लेखिका– इंदिरा दांगी विपश्यना कहानी संग्रह विदुषी इन्दिरा दांगी जीवन की अनुभूतियों अनुभव को समेटे काल कलेवर के परिवर्तित आचरण कि अभिव्यक्तियो कि बेहद सुंदर संकलन है जो प्रत्येक व्यक्ति समाज को स्पर्श एव स्पंदित करती है निश्चय ही इंदिरा दांगी जी का प्रयास सराहनीय है साथ ही …

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धूप के कतरे

समीक्षा– धूप के katare (गजलकार घनश्याम परिश्रमी ) नेपाली भाषा के ख्याति लब्ध साहित्यकार डॉ घनश्याम परिश्रमी     जिन्होंने नेपाल और हिंदी गज़लों का विशेणात्मक अध्ययन# विषय पर पी एच डी किया है । गजल विद्वत शिरोमणि से विभूषित डॉ घनश्याम परिश्रमी समालोचक नेपाली ग़ज़ल के शीर्ष शिखर ग़ज़लकार …

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दिल पूछता है

           दिल❤️ पूछता है …! पुछता है दिल किस बात पर रूठे हो, किस बात से हो खफा? इस तरह तुम क्यों खुद को दे रहें सजा हो। बेरूखी की मुझे वजह बताया तो होता, किस बात से खफा हो जताया तो होता खता कब और …

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