यह त्रासदी केवल एक विमान दुर्घटना नहीं
12 जून 2025 को अहमदाबाद का आसमान एक ऐसी त्रासदी का साक्षी बना, जिसने 145 करोड़ भारतीयों के दिलों को दहला दिया। एयर इंडिया की फ्लाइट AI-171, जो लंदन के लिए रवाना हुई थी, उड़ान भरने के केवल 59 सेकंड के भीतर आग का गोला बनकर धरती पर गिर पड़ी। इस भयावह हादसे में 242 में से 241 यात्रियों की जान चली गई। जो लोग चंद क्षण पहले अपने सपनों के साथ उड़ान भर रहे थे, वे पिघले हुए मलबे में तब्दील हो गए। केवल एक यात्री — रामविश्वास कुमार — इस मृत्यु के समंदर से किसी चमत्कार की तरह जीवित लौट पाए।
पर यह त्रासदी केवल एक विमान दुर्घटना नहीं थी। यह हमारे समय के उस गहरे डर की कहानी है जो अब हर उड़ान में हमारे साथ बैठेगा। हर बार जब कोई पायलट कहेगा — “We are ready for take-off” — तब हमारे दिलों में यह सवाल उठेगा कि क्या हम सही-सलामत लौटेंगे?
इस विमान में बैठे लोग कोई आकस्मिक यात्री नहीं थे। वे सपनों को आकार देने निकले थे। राजस्थान का जोशी परिवार — डॉक्टर प्रतीक, डॉक्टर कामिनी और उनके तीन मासूम बच्चे; नवविवाहिता खुशबू, जो शादी के तीन महीने बाद पहली बार अपने पति से मिलने लंदन जा रही थी; मणिपुर की 22 वर्षीय एयर होस्टेस नंगा थोई शर्मा, जिसने पिछले वर्ष ही अपने सपनों को पंख दिए थे; गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री विजय रूणी और उनका परिवार — सभी की जीवनगाथाएं अधूरी रह गईं। हर तस्वीर अब एक जली हुई याद बनकर रह गई है।
यह हादसा केवल मौत की गिनती नहीं है। यह सवाल है — कि उड़ान भरते ही विमान कैसे गिर पड़ा? प्रारंभिक जांच में संकेत मिला है कि विमान ने रनवे की पूरी लंबाई का उपयोग नहीं किया, जिससे आवश्यक टेक-ऑफ स्पीड नहीं मिल पाई। दोनों इंजनों का अचानक बंद हो जाना, पायलट द्वारा इमरजेंसी सिग्नल भेजने के बावजूद प्रतिक्रिया न मिलना — ये सारे संकेत किसी गंभीर तकनीकी गड़बड़ी की ओर इशारा करते हैं।
बोइंग 787 ड्रीमलाइनर, जो विश्व में अपने सुरक्षित रिकॉर्ड के लिए प्रसिद्ध है, इस हादसे में धधकता हुआ गिरा। जांच एजेंसियों की निगाह अब ब्लैक बॉक्स पर टिकी है। परन्तु सबसे बड़ा सवाल वही रह जाता है — यदि तकनीकी त्रुटियां थीं तो उड़ान भरने की अनुमति कैसे दी गई? क्या निरीक्षण प्रक्रिया इतनी लचर थी?
टाटा समूह ने मृतकों के परिजनों को एक-एक करोड़ रुपये की सहायता देने की घोषणा की है। पर क्या धन उन परिवारों की पीड़ा का मूल्य चुका सकता है? क्या कोई भी मुआवजा उस मां का आँचल फिर से हरा कर सकता है जिसने अपनी गोद का चिराग खो दिया? क्या किसी मासूम बच्चे की मासूम हंसी लौटाई जा सकती है जिसने अपने पिता को हमेशा के लिए खो दिया?
यह हादसा केवल अहमदाबाद का नहीं है। यह हर उस भारतीय का है जो कभी भी, किसी भी एयरपोर्ट पर अपने परिजनों को अलविदा कहता है। हर बार जब कोई विद्यार्थी विदेश पढ़ने जाता है, कोई दुल्हन ससुराल के लिए रवाना होती है, कोई व्यवसायी नए सपनों की खोज में निकलता है — हर बार अब यह डर भी साथ रहेगा।
हमारे देश का विमानन इतिहास पहले भी हादसों से दागदार रहा है। 1996 में चरखी दादरी की टक्कर में 349 जिंदगियाँ खत्म हो गई थीं। वर्षों बीतने के बाद भी हम इन हादसों से सीख नहीं पा रहे हैं। हर हादसे के बाद वही शब्द — तकनीकी खराबी, मानवीय त्रुटि, सिस्टम फेल्योर, और कभी-कभी साजिश की अटकलें। परंतु मूल प्रश्न वही रहता है — यात्रियों की जान इतनी सस्ती क्यों है?
यह समय है कि भारत अपने विमानन तंत्र में व्यापक सुधार करे। रनवे, मेंटेनेंस, निरीक्षण, पायलट ट्रेनिंग, और एयर ट्रैफिक कंट्रोल — हर स्तर पर शून्य सहिष्णुता की नीति लागू करनी होगी। हमें केवल मुआवजा बांटने के लिए नहीं, बल्कि हादसों को रोकने के लिए तैयार रहना होगा।
क्योंकि हर हादसे के बाद हम बस यही सोचते रह जाते हैं — कि उस विमान में कोई अपना भी हो सकता था… या हम खुद हो सकते थे।
अब हमें इस डर के साथ जीना नहीं सीखना चाहिए, बल्कि ऐसे कदम उठाने चाहिए कि फिर कोई अहमदाबाद हादसा न दोहराया जाए।
नमन उन 241 दिवंगत आत्माओं को। प्रार्थना है कि फिर कभी किसी उड़ान में ऐसी विभीषिका न घटे, जिसमें समूचे राष्ट्र की आत्मा ही जल उठे।
आदित्य तिक्कू
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