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डाक्टर कुंवर बेचैन, प्रतिष्ठित, लोकप्रिय कवि

प्रश्न, आप अभी अभी मॉरीशस में तीन दिनों के लिए ११ वे विश्व हिंदी सम्मलेन का हिस्सा बने ,क्या आप बता सकते है की इस तरह के आयोजन हिंदी के प्रचार -प्रसार में कितने सार्थक होते है ?
उत्तर, इस तरह के आयोजन हिंदी के प्रचार -प्रसार में हमेशा ही सार्थक होते है , क्योंकि देश -विदेश से अनेक लोग इस तरह के सम्मलेन में भाग लेने आते है वे अपने देश में जाकर हिंदी का प्रचार करते है जो की हमारे देश के लिए सम्मान की बात है। दूसरी अहम बात की किसी दूसरे देश में इस तरह का आयोजन जब किया जाता है तो वहां महीनों से तैयारी चलती है जिस दिन से ये तैयारी आरम्भ होती है उसी दिन से हिंदी का प्रचार -प्रसार आरम्भ हो जाता है। हम लोग भी जब उस देश में पहुंचते है तो हिंदी की धूम देखकर हम सबका मन खुश हो जाता है।

प्रश्न,आप अब तक कितनी बार मॉरीशस गए है और तब से अब तक क्या परिवर्तन आये है ?
उत्तर ,मॉरीशस मै अनेक बार गया हूँ लेकिन सबसे पहली बार १९८४ में गया था एक चार्टर प्लेन भर कर लोग भारत से गए थे। उसमे, कवि, लेखक, पत्रकार, राजनीतिज्ञ आदि थे, सबने उस यात्रा का बहुत आनंद उठाया। प्लेन में ही कवि सम्मलेन हुआ मैंने भी वही बैठे -बैठे कविता लिखी और सबको सुनाई, “नीचे बादल ऊपर हम ” दूसरे दिन ये पंक्तियाँ मॉरीशस के प्रत्येक अख़बार की मुख्य खबर बनी। बड़ा ही उल्लास पूर्ण आयोजन था। उस समय हम बीस दिन रहे थे तब होटल में ठहराने का चलन नहीं था। हम लोग वहां के स्थानीय भारतीय समुदाय के लोगो यहाँ ठहरे थे। इस तरह से हमने मॉरिशस को अंदर से समझा जिन घरों में मै रुका वे लोग शुद्ध हिंदी बोलते थे ये देखकर बड़ी सुखद अनुभूति हुयी। 2018 में होटल में ठहराया गया। बड़ा ही व्यस्त कार्यक्रम था, कब तीन दिन गुजर गए पता ही नहीं चला। बाहर से आये लोगो को देखने सुनने और समझने का मौका मिला अनेक देशों के लोगो ने हिस्सा लिया था वे हिंदी में ही बात करते। हिंदी समुदाय के लोगो में मानसिक आदर्श देखने को मिला। वे वापस अपने देश जाकर हिंदी का ही प्रचार करेंगे। अतः अगर हिंदी को विश्व भाषा बनाना है तो इस तरह के आयोजन अत्यंत आवश्यक है।

प्रश्न, कुछ लोगो का कहना है कि वहां के प्रधानमंत्री ने अंग्रेजी में भाषण दिया जो की उचित नहीं था ?
उत्तर, जिन लोगो को जानकारी नहीं है वे ही इस तरह की बात करते है। मै अब तक २२ देशों के हिंदी कार्यक्रमों में जा चुका हूँ ,वहां के राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री अपने देश की भाषा बोलते है। हमारे यहाँ भी जब कोई विदेश से आता है तो हम सब भी अपने ही देश की भाषा बोलते है। मॉरिशस की ऑफिशियल भाषा अंग्रेजी है और बोलचाल की भाषा क्रेयोल है। लगता है लोगो ने ध्यान नहीं दिया क्योकि जब प्रधानमंत्री आये तो उन्होंने सबसे पहले हिंदी में नमस्कार किया ,उसके बाद उन्होंने अपना वक्तव्य अंग्रेजी में दिया मगर बीच -बीच में अनेक वाक्य हिंदी में भी थे। हम सबको उनके इस प्रयास की सराहना करनी चाहिए। दूसरी बात की वो जो भी बोलते उसका अनुवाद संग -संग हिंदी में हो रहा था। भारत से जो नेता गए उन्होंने हिंदी में ही अपना वक्तव्य प्रस्तुत किया। ऐसी बातें सुनकर मुझे लगता है की लोगो को अपना दृष्टिकोण सकारात्मक रखना चाहिए क्योंकि एक सकारात्मक सोच ही आपको सफलता के पायदान पर ले जा सकती है।

प्रश्न, क्या हिंदी भाषा अपना स्वरूप बदल रही है , जैसे की हिंदी की जगह हिंगलिश का चलन बढ़ रहा है ?
उत्तर ,जिस भाषा का विकास होता है उसे ही बेहतर माना जाता है और किसी भी भाषा को विकास के लिए दूसरी भाषा के शब्दों अंगीकार करना ही पड़ता है। अंग्रेजी भाषा में भी बहुत से शब्द दूसरी भाषाओँ के है। अंग्रेजों ने जहाँ -जहाँ शासन किया उन्होंने वहा के शब्दों को अपनी भाषा में सम्मिलित किया इसी लिए उसका विकास भी हुआ । हिंदी में भी उर्दू के शब्द बहुत है। अगर ये कहा जाये की अब कोई शुद्ध हिंदी नहीं बोलता तो आजकल न शुद्ध हिंदी बोलने वाले मिलेंगे न सुनने वाले। जो शब्द आसानी से जुबान पर चढ़ जाये उसे ही बोला जाता है। लौह पथ गामिनी जैसे शब्द प्रचलित नहीं हो सकते। वैसे भी बोलचाल की भाषा अलग होती है और लिखने की अलग। बोलने में सारी भाषाओँ के शब्दों को समेट कर बोला जाता है .

प्रश्न, अन्य देशों की तुलना में मॉरिशस का उद्घाटन समारोह कैसा रहा ?
उत्तर, मॉरिशस उद्घाटन समारोह बहुत ही भव्य था किन्तु पूर्व प्रधानमंत्री अटल जी के निधन के कारण उसे शांति से मनाया गया. कविसम्मेलन को काव्यांजलि के नाम से सम्बोधित किया गया। सभी कवियों ने काव्य पाठ से पहले अटल जी को श्रद्धांजलि स्वरूप कविता की चार-छह पंक्तियाँ उनकी कर्मठता और जीवन को समर्पित की। शोर -गुल न करके सादगी की बानगी देते हुए कवियों ने अपनी गरिमा रखी। विदेशों की तुलना में एक ही अंतर कि इस बार अटल जी का निधन हो गया।

प्रश्न, इस सम्मेलन में आपको क्या नई बात देखने को मिली ?
उत्तर ,वहां छोटे -छोटे अनेक कक्ष बनाये गए थे जिनमे गोष्ठिया आयोजित की जाती, चूँकि लोग ज्यादा थे और सबके विषय भी अलग थे अतः किसी को पता ही नहीं चलता की कहाँ क्या हो रहा है। लेकिन समापन समारोह के समय समस्त कार्यक्रमों की रिपोर्ट पेश की गयी जिसमें प्रत्येक गोष्ठी से सम्बंधित विषय और उसमे भाग लेने वालों के नाम बताये गए यहां तक की निष्कर्ष क्या निकला उस पर भी चर्चा हुयी। तीन दिनों का निचोड़ पेश किया गया और आगे क्या करना है और उनपर क्या निर्णय लिए गए वो भी बताएं गए। बहुत सी ज्ञानवर्धक बातें सुनने को मिली जिन्हे सुनकर मन प्रफ्फुलित हो गया।

प्रश्न, आप अपने और अपने साहित्य के बारे में कुछ बतायें ?
उत्तर ,मै बहुत संघर्षों से निकला हूँ, मेरा नजरिया सकारात्मक है। मै कमियों पर ध्यान नहीं देता जब तक की वे जानबूझकर न की जाये। व्यवहारिकता मेरी पूंजी है। मेरा मानना है कि सोच का क्षितिज विस्तृत होना चाहिए। १६ वर्ष की आयु से मै मंचो पर जाने लगा था। मेरी अबतक ३५ पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। २१ लोगो ने मेरे अंडर में पी एच् डी की है जबकि २२ लोग मेरी गजलों कविताओं पर पी एच् डी कर रहे है।

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